Jabalpur. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि परीक्षा में इंटरव्यू के न्यूनतम अंकों का निर्धारण करने का अधिकार परीक्षा संचालकों को है। अदालत ने यह भी कहा कि उम्मीदवार के बैकग्राउंड को जाने बिना नियुक्ति नहीं दी जा सकती। इस मत के साथ चीफ जस्टिस रवि मलिमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने सिविल जज के लिए इंटरव्यू में न्यूनतम 20 अंक पाने की अनिवार्यता को याचिका के जरिए दी गई चुनौती खारिज कर दी।
सिवनी मालवा निवासी आनंद कुमार लोमवंशी की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि वह विधि स्नातक है। साल 2017 में उसे राज्य अधिवक्ता परिषद में पंजीकृत किया गया था। उसने साल 2021 में सिविल जज जूनियर डिवीजन के लिए परीक्षा दी थी। प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया, लेकिन इंटरव्यू में उसे न्यूनतम 20 अंक नहीं मिले। जिस वजह से उसका चयन नहीं हो पाया।
याचिका में तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के मुख्य परीक्षा के आवेदन पत्र में न्यायपालिका से जुड़े उसके परिजनों के संबंध में जानकारी मांगी गई। इसकी वजह से उसका इंटरव्यू में प्रदर्शन प्रभावित हुआ। यह जानकारी नहीं मांगी जानी चाहिए थी। सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि कोई रिश्तेदार न्यायपालिका में है या नहीं, इससे चयन प्रक्रिया पर कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन चयनकर्ता की यह जिम्मेदारी है कि वह उम्मीदवार के बारे में हरसंभव जानकारी हासिल करे। इंटरव्यू के न्यूनतम अंक भी पहले ही निर्धारित किए जा चुके थे। यह कहकर अदालत ने याचिका निरस्त कर दी। बता दें कि सिविल जज और एडीजे की भर्ती के मामले में दायर याचिकाओं पर जस्टिस शील नागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की डबल बेंच में सुनवाई जारी है। जिस पर आने वाले दिनों में फैसला किया जाएगा।