Jabalpur. सामाजिक न्याय और पंक्ति के आखिर में खड़े व्यक्ति तक लाभ पहुंचाने वाली अंत्योदय की अवधारणा क्या यही है कि एक छोटी सहायता के लिए दिव्यांगों को कई किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय तक आकर अरज लगानी पड़े। जबलपुर जिला मुख्यालय में मंगलवार को एक ऐसा ही नजारा दिखाई दिया जिसने कई सारे सवाल खड़े कर दिए। जब कुंडम के मखरार गांव से 70 किलोमीटर की दूरी तय करके एक बाप अपने दिव्यांग बेटे को ट्रायसाइकिल देने की गुहार लेकर पहुंचा। पैरों से दिव्यांग बेटे को कंधे पर बैठाकर लाए पिता ने अपने बेटे की व्यथा सुनाई।
ट्राईसाइकिल के लिए सालों से इंतजार
दरअसल सुकरण बचपन से ही दिव्यांग है लेकिन दिव्यांगों को सामाजिक न्याय के तहत मिलने वाली मदद की दरकार सालों से इंतजार कर रही थी। स्थानीय स्तर पर जब उसे ट्राइसाइकिल नहीं मिल पाई तो उसने सीधे जिलाधीश के सामने अपनी गुहार लगाई।
जिला कलेक्टर ने दिलाई ट्राईसाइकिल
सुकरण की गुहार जब कलेक्टर डॉ इलैयाराजा टी के सामने पहुंची तो उन्होंने उसे तत्काल ट्राईसाइकिल मुहैया करा दी। सुकरण की समस्या का आंशिक निदान तो हो गया लेकिन समाज में हजारों सुकरण अब भी मौजूद हैं जो ऐसी ही लालफीता शाही के चलते शासकीय मदद से अछूते हैं। सवाल यह है कि क्या उन्हें भी जिला मुख्यालय तक आकर चीखना होगा तब कहीं उनकी फरियाद पर मदद की आमद दर्ज हो पाएगी।