MP: बेकार गई बाड़ाबंदी, बगावत पर सख्ती भी बेअसर, जिसे मिला मौका फौरन पाला बदलकर बन गया अध्यक्ष-उपाध्यक्ष

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Praveen Sharma
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MP: बेकार गई बाड़ाबंदी, बगावत पर सख्ती भी बेअसर, जिसे मिला मौका फौरन पाला बदलकर बन गया अध्यक्ष-उपाध्यक्ष

BHOPAL. पंचायत चुनावों में सदस्यों का चुनाव होते ही अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर कब्जा जमाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस द्वारा पखवाड़े भर से उठाई जा रहे सारे कदम लगभग हर जिले में नाकाम साबित हुए। कुर्सी देखते ही हर जिले में निर्वाचित सदस्यों ने बाड़ा तोड़ने में देर नहीं की और पार्टियां हाथ मलते रह गईं। इस मामले में जहां कांग्रेस को खासा नुकसान उठाना पड़ा। वहीं बीजेपी अपनों से ही कई जिलों में हार गई। तमाम सख्ती के बाद भी न बगावत रुकी और न भितरघात। एक दर्जन से अधिक जिलों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनने बीजेपी को अपनों से ही मात खाना पड़ी। मंत्री, विधायक और वरिष्ठ नेता भी पार्टी को अपनी ताकत दिखाने से नहीं चूके। दूसरी तरफ सत्तारूढ़ बीजेपी अधिक से अधिक जिलों में अपना अध्यक्ष बनाने के चक्कर में उपाध्यक्ष पद को ही भूल गई और अध्यक्ष की तुलना में उपाध्यक्ष के पांच पद खोकर भी उसे संतोष करना पड़ा है।





प्रदेश में शुक्रवार को हुए जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के लिए हुए चुनावों ने निचले स्तर पर उठापटक को भी खोलकर रख दिया। अध्यक्ष पद हथियाने के लिए कैसे-कैसे दांवपेंच चले गए यह तो राजधानी की सड़कों से लेकर सीहोर के बाजारों तक सामने आ ही गया। जब कांग्रेस के सारे दिग्गज चीखते ही रह गए और अध्यक्ष बीजेपी आंखों से काजल की तरह कांग्रेस के तीन सदस्यों को अपने साथ मिलाकर अध्यक्ष भी बना ले गई। इसी तरह 7 और जिलों में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा है और इक्का-दुक्का सदस्य जीतने के बाद भी बीजेपी ने कांग्रेस के ही सदस्यों को तोड़कर अध्यक्ष पद अपने खाते में कर लिया। दूसरी तरफ 8 जिलों में बीजेपी को अपने ही लोगों के आगे झुकना पड़ा है। नगरीय निकाय चुनावों के लिए बनाए गए सारे फार्मूले और बंधन पंचायत चुनावों में धराशायी हो गए। मैदानी कार्यकर्ता तो दूर प्रदेश सरकार में मंत्री और विधायक तथा बड़े नेता भी पार्टी की लाइन को रौंदने में पीछे नहीं रहे। कई जिलों में तो प्रदेश संगठन को अपने ही बागियों को अध्यक्ष चुनने की मजबूरी का भी सामना करना पड़ा है।





यहां बीजेपी ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल





राजधानी भोपाल सहित खरगौन, उज्जैन, शिवपुरी, अलीराजपुर, शाजापुर और छतरपुर में कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी। बीजेपी के पास कांग्रेस की तुलना में आधे सदस्य भी नहीं थे। मगर शुक्रवार को चुनाव प्रक्रिया शुरू होते ही सुबह-सुबह ही बीजेपी ने ऐसा खेल बिगाड़ा की कांग्रेस की सारी बाड़ाबंदी रखी रह गई और बीजेपी ने खुलकर सेंधमारी कर कांग्रेस के हाथ से उसके सदस्य और अध्यक्ष पद भी छीन लिया। इन सात जिलों में कांग्रेस मजबूत होने के बाद भी हारी--



भोपाल -  राम कुंवर 



खरगौन - अनुबाई तंवर 



उज्जैन - कमला कुंवर 



शिवपुरी - नेहा यादव



आलीराजपुर - अनीता चौहान 



शाजापुर - हेमलता सिसौदिया 



छतरपुर - विद्या देवी अग्निहोत्री।





इन जिलों में बीजेपी के बागी रहे हावी





नगरीय निकाय चुनावों में जहां कटनी में बीजेपी की बागी प्रत्याशी प्रीति सूरी महापौर चुनी गई। अब चुनाव के बाद बीजेपी प्रीति को दोबारा पार्टी में शामिल करने जा रही है। फाइनल दौर की चर्चा हो चुकी है। संगठन के साथ ही सरकार की ओर से भी हरी झंडी मिल चुकी है। मगर जिला और जनपद अध्यक्ष चुनावों में तो अध्यक्ष बनने के लिए बीजेपी को अपने बागियों से समझौता करना पड़ा है। बावजूद इसके चार जिलों में बतौर निर्दलीय चुनाव जीते सदस्य ही अध्यक्ष बने हैं। अब बीजेपी इन निर्दलीयों पर अपनी मुहर लगाने की कोशिश में जुटी है। वहीं आठ जिलों में बीजेपी से बगावत कर  चुनाव जीते सदस्यों से ही बीजेपी को समझौता करना पड़ा है। जबकि डिंडोरी में भितरघात के कारण बीजेपी को अध्यक्ष पद गंवाना पड़ गया है। यहां से तीन बार की जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं ज्योति प्रकाश धुर्वे को लाटरी के कारण हार का सामना करना पड़ा। डिंडोरी के अलावा दमोह, देवास, बालाघाट, सिंगरौली और नर्मदापुरम में भी यही स्थिति बनी। इन जिलों मंे भी अपने बागियों के कारण ही बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। दूसरी तरफ उपाध्यक्ष पद के लिए भी बीजेपी को अपने बागियों से समझौता करना पड़ा। टीकमगढ, भिंड, बालाघाट, अशोकनगर सहित आधा दर्जन जिलों में भी बीजेपी को अध्यक्ष पद के लिए अपने बागियों का नाम आगे बढ़ाना पड़ा तो उपाध्यक्ष पद के लिए खंडवा सहित कई जिलों में बीजेपी को अपने ही बागी सदस्यों के आगे झुकना पड़ा।





अध्यक्ष-उपाध्यक्ष में नहीं बना बैलेंस





जिला पंचायतों के लिए शुक्रवार को हुए चुनावों में बीजेपी दिनभर जोड-तोड़ के बाद 41 जिलों में अपने अध्यक्ष बनवाने में कामयाब रही। वहीं इस दौड़भाग में वह उपाध्यक्ष पद पर बैलेंस नहीं बना सकी। इसके चलते जहां उसके 41 अध्यक्ष बने तो उपाध्यक्ष 36 ही जीत सके। जबकि कांग्रेस को 



उपाध्यक्ष भी अध्यक्ष के बराबर ही मिले। कांग्रेस को अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के 10-10 पद मिले। दोनों दलों के अलावा जयस, गोंगपा और निर्दलीय भी अपना उपाध्यक्ष बनवाने में सफल रहे हैं।





कहां किसके बना उपाध्यक्ष





बीजेपी - भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, भिंड, सागर, दतिया, उज्जैन, खंडवा, मुरैना, नर्मदापुरम, सीहोर, बुरहानपुर, रीवा, बैतूल, शिवपुरी, हरदा, कटनी, नीमच, पन्ना, अनूपपुर, नरसिंहपुर, सतना, मंदसौर, धार, खरगोन, अलीराजपुर, श्योपुर, उमरिया, रायसेन, गुना, कटनी, निवाड़ी, शाजापुर, विदिशा, छतरपुर।





कांग्रेस - जबलपुर, छिंदवाड़ा, देवास, अनूपपुर, राजगढ़, सिंगरौली, सिवनी, डिंडोरी, आगर मालवा, झाबुआ।





जयस - रतलाम, गोंगपा - मंडला  



निर्दलीय - बालाघाट, दमोह,  शहडोल। 



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