अरुण तिवारी, भोपाल. मिशन-2023 को पूरा करना बीजेपी के लिए आसान नहीं है। ज्योतिरादित्य सिंधिया फैक्टर के चलते बीजेपी में अंदरूनी तौर पर बगावत की आग धधक रही है। इसका विस्फोट 2023 के चुनावों में देखने को मिल सकता है। पिछले दो चुनाव से टिकट बंटने के दौरान बीजेपी में जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे सुनाई देते रहे हैं। इस बार इन आवाजों की गूंज ज्यादा और देर तक सुनाई देगी। प्रदेश में करीब एक दर्जन सीटें ऐसी हैं। जहां पर सिंधिया समर्थकों का कब्जा हो गया है। इससे बीजेपी नेताओं की मेहनत पर पानी फिर गया है। इन सीटों में पांच तो वे मंत्री हैं, जिनको सिंधिया के कारण कुर्सी मिली है। इन सीटों पर बीजेपी नेताओं के अंदर विद्रोह पनप रहा है। इसके चलते बीजेपी की जीत आसान तो दिखाई नहीं देती।
दीपक जोशी, हाटपिपल्या
हाटपिपल्या पूर्व मंत्री दीपक जोशी की विधानसभा सीट रही है। 2018 में यहां से कांग्रेस के मनोज चौधरी चुनाव जीते। बाद में सिंधिया के साथ चौधरी बीजेपी में शामिल हो गए। उपचुनाव में बीजेपी ने दीपक जोशी को दरकिनार कर मनोज चौधरी को टिकट दिया। मनौज चौधरी फिर चुनाव जीत गए। दीपक जोशी अब 2023 के चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। जोशी कहते हैं कि इसके लिए वे सिंधिया तक से बात करेंगे। सूत्रों की मानें तो यदि दीपक जोशी को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया तो वे आप का दामन भी थाम सकते हैं। दीपक जोशी कहते हैं कि सर्वे के आधार पर टिकट मिलता है। यदि जरूरत पड़ी तो राष्ट्रीय अध्यक्ष तक से बात करेंगे। अंतिम निर्णय तो हमारे कार्यकर्ता करेंगे कि आगे क्या करना है।
भंवरसिंह शेखावत, बदनावर
बदनावर से भंवर सिंह शेखावत दूसरे रास्ते की तलाश में हैं। यहां भी स्थिति वही है। सिंधिया समर्थक राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव मंत्री हैं। शेखावत मानते हैं कि मौजूदा मंत्री का टिकट पार्टी नहीं काटेगी। सूत्रों के मुताबिक शेखावत दूसरे विकल्प पर विचार कर रहे हैं। वे निर्दलीय या फिर अन्य पार्टी से चुनाव लड़ सकते हैं।
जयभान सिंह पवैया, ग्वालियर
पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया के धुर विरोधी प्रद्युम्न सिंह तोमर अब उनकी ही सीट ग्वालियर से मंत्री हैं। मंत्री होने के चलते तोमर को फिर से टिकट मिल सकता है। इस सीट पर पवैया को मनाना बीजेपी के लिए जरूरी है। पवैया की नाराजगी बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है।
लाल सिंह आर्य, गोहद
पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य की गोहद सीट के हाल भी कुछ इसी तरह के हैं। 2018 में लाल सिंह आर्य को कांग्रेस के रणवीर जाटव ने हराया था। लेकिन बाद में वे सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हो गए। उपचुनाव में लाल सिंह की जगह जाटव को टिकट मिला लेकिन वे चुनाव हार गए। लाल सिंह आर्य कहते हैं कि टिकट का आधार पार्टी का सर्वे होता है और सर्वे में साफ हो जाएगा कि सीट पर किसका जनाधार है।
रामलाल रौतेल, अनूपपुर
अनूपपुर से रामलाल रौतेल तीन बार विधायक रहे हैं। उन्होंने हर बार कांग्रेस के बिसाहूलाल सिंह को हराया है। यहां भी हालात बदले और बीजेपी में शामिल हुए बिसाहूलाल सिंह रौतेल की सीट पर काबिज होकर मंत्री बन गए। अब रौतेल 2023 के चुनाव में अपना नया रास्ता तलाश रहे हैं।
मुदित शेजवार, सांची
सांची की जिस सीट पर गौरीशंकर शेजवार आठ बार चुनाव जीते, उसी सीट से उनको दरकिनार कर दिया गया है। सिंधिया के खास समर्थक प्रभुराम चौधरी उपचुनाव जीतकर मंत्री बन गए, तो सीट के प्रमुख दावेदार शेजवार के पुत्र मुदित की उम्मीदों पर पानी फिर गया। उपचुनाव में जैसे-तैसे बीजेपी नेताओं ने शेजवार को मना लिया लेकिन 2023 में बीजेपी को यहां बड़ी चुनौती मिल सकती है।
राकेश शुक्ला, मुकेश चौधरी, मेहगांव
मेहगांव सीट पर भी बीजेपी के लिए विरोध की आग तेज हो सकती है। यहां पर ओपीएस भदौरिया विधायक हैं और शिवराज मंत्रिमंडल के सदस्य भी। बीजेपी के राकेश शुक्ला पहले भी बीजेपी से बगावत कर चुनाव लड़ चुके हैं। मुकेश चौधरी भी यहां से विधायक रह चुके हैं।
ललिता यादव, बड़ा मलहरा
मलहरा विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी ने तत्कालीन मंत्री ललिता यादव को हराया था। प्रद्युम्न बीजेपी में शामिल हो गए। ललिता अब अपनी पुरानी सीट छतरपुर पर दावा ठोक रहीं हैं। ललिता कहती हैं कि छतरपुर में उनके अलावा कोई नहीं जीत सकता।
मुन्नालाल गोयल, ग्वालियर पूर्व
ग्वालियर पूर्व भी ऐसी सीट है, जहां पर विरोध का बिगुल बज सकता है। यहां पर सतीश सिकरवार ने कांग्रेस में शामिल होकर कांग्रेस से बीजेपी में गए सिंधिया समर्थक मुन्नालाल गोयल को हरा दिया। यहां त्रिकोणीय मामला है। सिकरवार की यदि घर वापसी होती है तो टिकट उनको दिया जाएगा, या फिर सिंधिया के लिए विधायकी कुर्बान करने वाले मुन्नालाल गोयल को चुनाव लड़ाया जाएगा। पूर्व मंत्री माया सिंह भी यहां पर बीजेपी के लिए चुनौती हैं।
जयंत मलैया, दमोह
जयंत मलैया के गढ़ दमोह में राहुल सिंह ने कांग्रेस की एंट्री करवा दी। राहुल सिंह कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए, तो दमोह से उनको उपचुनाव लड़वा दिया गया। वे चुनाव हार गए। उन्होंने आरोप लगाया कि मलैया के साथ न आने के कारण वे चुनाव हारे। अब बीजेपी के सामने मलैया और राहुल में से एक को चुनाव में उतारने की चुनौती है।
केपी सिंह, गुना
बीजेपी के सामने समस्या यहीं खत्म नहीं होती। बात यहां पर एक संसदीय सीट की भी है। गुना ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ रहा है लेकिन पिछली बार बीजेपी ने उनके ही समर्थक केपी सिंह को चुनाव लड़वा दिया, और सिंधिया हार गए। अब राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है। सिंधिया बीजेपी में आकर ताकतवर स्थिति में हैं। अब केपी सिंह के राजनीतिक भविष्य पर संकट आ गया है।