दमोह में अष्टभुजा रूप में विराजमान है भगवान गणेश की प्रतिमा, 500 वर्ष प्राचीन बताई जाती है मूर्ति 

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Rajeev Upadhyay
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दमोह में अष्टभुजा रूप में विराजमान है भगवान गणेश की प्रतिमा, 500 वर्ष प्राचीन बताई जाती है मूर्ति 

Damoh. गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे देश के साथ दमोह जिले में भी हर्षोल्लास के साथ शुरू हो रहा है। जहां गणेश पंडालों में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाएगी तो वहीं मंदिरों में भी भगवान गणेश का पूजन किया जाएगा।  वैसे तो जिले में भगवान गणेश के कई मंदिर हैं,  लेकिन जिले के तेंदूखेड़ा ब्लॉक के तेजगढ़ गांव में भगवान गणेश का एक अति प्राचीन मंदिर है।  जहां प्रथम पूज्य भगवान गणेश अष्टभुजा रूप में विराजमान है। तेजगढ़ में स्थापित गणेश प्रतिमा अपने आप में दुर्लभ है भगवान की कई भुजाएं हैं और इस प्रकार की मूर्ति शायद कहीं और देखने नहीं मिल सकती है।





500 वर्ष प्राचीन है भगवान गणेश की प्रतिमा







तेजगढ़ में विराजमान भगवान गणेश की अष्टभुजा प्रतिमा के बारे में  बट्टू यादव, डाक्टर अनूप सिंह, महेंद्र दीक्षित  ने बताया  कि यह मंदिर एतिहासिक है और प्रतिमा काफी प्राचीन है।  जिसकी जानकारी उन्हें भी बुजुर्गों से मिली है। गांव  के लोगों द्वारा बताया गया है कि 500 साल पहले ओरछा के हरदोल का जन्म हुआ था और उसी समय तेजगढ़ के  राजा तेजी सिंह का भी जन्म हुआ और उन्हीं के राज में यह प्रतिमा स्थापित हुई थी।  तेजगढ़ में 75  वर्ष से ग्रामीण क्षेत्रों में गणेश प्रतिमाएं स्थापित होने लगी है नहीं तो तेजगढ़ सहित आसपास के 50 गांव में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं होती थी।  भगवान गणेश के मंदिर के पास ही एक प्रतिमा स्थापित की जाती थी जो रस्म आज भी चली आ रही है।  आज भले ही क्षेत्र में कई स्थानों पर गणेश प्रतिमाओं की स्थापना होने लगी है,  लेकिन तेजगढ़ मंदिर में पूजा आज भी उसी पुराने रीति रिवाज के अनुसार होती है।  जनवरी माह में तिलया गणेश के अवसर पर मंदिर में विशेष पूजा होती है। 





मंदिर से नीचे जाने लगी थी प्रतिमा





गणेश प्रतिमा की स्थापना के बारे में तो गांव का कोई भी व्यक्ति नहीं बता पा रहा, लेकिन जो नए मंदिर निर्माण के लिए समिति बनी है उसमें तेजगढ़ के गणमान्य लोगों की अहम भूमिका है।  शिक्षक महेंद्र दिक्षित ने बताया कि भगवान गणेश की स्थापना राजा तेजी सिंह ने की थी।  इस प्रकार की जानकारी ग्रथों में है।  80 वर्ष पहले प्रतिमा मंदिर के नीचे की ओर धसने लगी तब फतेहपुर गांव के कोई संत यहां आए थे।  इसके बाद प्रतिमा को बाहर निकाला गया प्रतिमा के ऊपर काफी बड़ी मात्रा में सिंदूर निकला था जिसे नर्मदा नदी में बहाया गया था और फिर सभी के सहयोग से नए मंदिर का आकार दिया गया जो काफी विख्यात है। 





अष्टभुजा रुप में विराजमान हैं भगवान गणेश





तेन्दूखेड़ा मुख्यालय से 22 किमी दूर तेजगढ़ गांव में भगवान की अति प्राचीन प्रतिमा मंदिर में स्थापित है।  यहां भगवान अष्टभुजा के रूप में विराजमान हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी कर रहे हैं।  आज तक इस प्रतिमा के बारे में कोई पता नहीं लगा पाया कि आखिर यह प्रतिमा यहां कैसे आई । गांव के बुजुर्गों की अपनी अपनी अलग अलग राय है।  वृद्ध कहते हैं कि उनके पूर्वजों ने उन्हे बताया कि यहां भगवान गणेश की अष्टभुजा प्रतिमा 500 वर्ष पूर्व जमीन के नीचे से प्रकट हुई थी जिसे तेजगढ़ के राजा तेजी सिंह ने गणेश घाट के समीप स्थापित कराया था। उसी समय से उस घाट का नाम भी गणेश घाट पड़ गया।  इसके साथ तेजगढ़ गांव को भी राजा तेजी सिंह ने ही बसाया था। 





दुर्लभ है गणेश प्रतिमा





वृद्ध बताते हैं कि तेजगढ़ में जो अष्टभुजा के रुप में भगवान गणेश की प्रतिमा स्तापित है वैसी प्रतिमा दूसरी कहीं और देखने नहीं मिलेगी।  इसका प्रमाण यह है कि गूगल पर जब भगवान गणेश की प्राचीन प्रतिमा खोजते हैं तो तेजगढ़ में स्थापित प्रतिमा के ही बारे में जानकारी आती है।



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