Damoh. दमोह से करीब 20 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत सीतानगर के पास स्थित भगवान शिव का मड़कोलेश्वर धाम है यहां भगवान शिव की विशाल पिंडी स्थापित है।जहां पूरे प्रदेश से श्रद्धालु आते हैं। ऐसी मान्यता है कि मंदिर का निर्माण स्वयं देवताओं के द्वारा किया गया था। इसके अलावा इस स्थान पर 3 नदियों का संगम होने के कारण इस स्थान को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। यहां पर सुनार, कोपरा नदी आकर मिल जाती हैं कुछ दूरी पर इन दोनों नदियो में जुड़ी नदी भी मिल जाती है जिस कारण से त्रिवेणी संगम कहते है।
दिन प्रतिदिन अपना आकार बदलती है भोलेनाथ की मूर्ति !
यहां पर दूर-दूर से भक्त दर्शन करने आते हैं तथा भगवान भोलेनाथ के सामने अपनी मनोकामना रख कर उन्हें पूरी करते हैं। यहां के लोगों की माने तो यह मंदिर बड़ा रहस्मयी माना जाता है क्योंकि इस मंदिर को बनाने के लिए सिर्फ पत्थर का उपयोग किया गया है जिसमें कहीं भी जोड़ नहीं है। वही मंदिर में विराजमान भगवान भोलेनाथ की मूर्ति दिन प्रतिदिन अपना आकार बदलती ओर बढ़ती जा रही है।
हजारों वर्ष पुराना है इतिहास
इस स्थान के बारे में लोग बताते है कि करीब 1000 वर्ष पूर्व यहां पर एक गांव हुआ करता था जिसका नाम था मड़कोला। जहां पर जहरीले, कीड़े तथा भयंकर जानवर रहा करते थे जिसके बाद यहां के लोग किसी तरह यहां पर मौत से लड़ते रहे और जिंदगी गुजारते रहते थे। किंवदंती है कि यहां पर एक चबूतरा बना हुआ था जिस पर भगवान भोलेनाथ भगवान दिखाई दिए जिसके बाद एक रात्रि में स्वयं देवताओं के द्वारा मंदिर बनाया जा रहा था। तभी इसी गांव की एक महिला के द्वारा आटा पीसने वाली हाथ चक्की चला दी। जिसकी आवाज सुनकर देवता अंतर्ध्यान हो गए और यहां से चले गए। हालांकि तब तक मंदिर तो पूरा बन चुका था, लेकिन सिर्फ कलश नहीं रख पाया।
वही इस घटना के बाद इस गांव में किसी अज्ञात बीमारी का प्रकोप कहर बनकर टूटा और पूरा गांव वीरान हो गया तथा कुछ लोग बचे थे जो इस गांव को छोड़ कर चले गए। इस घटना के बाद यहां पर लोग आने तक से डरने लगे। कुछ समय बाद यहां पर एक संत आये जिनका नाम था शिवोहम महाराज। उन्होंने यहां पर कठिन तपस्या करके भगवान भोलेनाथ को मनाया तथा उनकी साधना की जिसके बाद यहां पर अनेक चमत्कार होने लगे और आसपास के पड़ोसी गांव से लोग आने लगे और यह स्थान जागृत होकर भक्तों के प्रति आस्था का केंद्र बन गया। यहां पर मकर संक्रांति और शिवरात्रि पर मेला भी लगता है। हजारों की संख्या में दूर-दूर से भक्त आते रहते हैं।