Jabalpur. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में बीते 3 दिनों से चल रही जिला अदालतों में 1255 पदों पर भर्ती से जुड़े मामले की सुनवाई पूरी कर ली है। प्रशासनिक न्यायाधीश शील लागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की डबल बेंच ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। उल्लेखनीय है कि इस मामले में 20 से अधिक याचिकाएं दायर हुई थीं। इसके जरिए जिला अदालत में स्टेनो व सहायक ग्रेड 3 के 1255 पदों पर लागू सौ फीसद कम्युनल आरक्षण और महिला व दिव्यांगों के लिए आरक्षण लागू न किए जाने को चुनौती दी गई थी। एडवोकेट यूनियर फॉर डेमोक्रेसी व सोशल जस्टिस सहित अन्य की ओर से दायर याचिका में उक्त भर्तियों को संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध बताया गया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा।
दलील दी गई कि 30 मार्च को हाईकोर्ट द्वारा जारी प्रारंभिक परीक्षा के रिजल्ट में कम्युनल आरक्षण लागू किया गया है तथा आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में चयनित नहीं किया गया है। हाईकोर्ट में उक्त भर्ती प्रक्रिया में असंवैधानिक रूप से आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4 के विरुद्ध रिजल्ट बनाया गया है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 का खुला उल्लंघन है।
सरकार को दें कार्रवाई का समय
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने उस जनहित याचिका को अपरिपक्व मानते हुए खारिज कर दिया। जिसमें राज्य के अपंजीकृत व अवैध डॉक्टरों व क्लीनिकों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश देने पर बल दिया गया था। मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने अपने आदेश में साफ किया कि जनहित याचिकाकर्ता ने हाल ही में इन डॉक्टरों व क्लीनिकों की शिकायत सरकार से की है। लिहाजा कार्रवाई के लिए सरकार को कुछ दिनों का अवसर दिया जाना चाहिए। यदि 90 दिनों तक कोई कार्रवाई न हो तो इस मामले में पुनः हाईकोर्ट की शरण ली जा सकती है।
मध्यप्रदेश नर्सिंग होम्स एसोसिएशन और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की जबलपुर ब्रांच ने यह जनहित याचिका दायर की थी। अधिवक्ता शिवेंद्र पांडे ने कोर्ट को बताया कि जबलपुर, भोपाल, छिंदवाड़ा समेत राज्य भर में अवैध रूप से अपंजीकृत डॉक्टरों के प्रैक्टिस करने की शिकायत सरकार से की गई थी। हाईकोर्ट ने सभी तर्क सुनने के बाद कहा कि इतने संवेदनशील मामले में सरकार को कार्रवाई करने में समय लग सकता है। इसलिए सरकार को यह अवसर देना चाहिए था।