GWALIOR: जो जीती उनका पता नहीं,किसी के ससुर के तो किसी के पति के गले में पड़ रहें हैं जीत के हार

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Dev Shrimali
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GWALIOR: जो जीती उनका पता नहीं,किसी के ससुर के तो किसी के पति के गले में पड़ रहें हैं जीत के हार

GWALIOR News.  पंचायती राज को मजबूत बनाने और समाज की आधी आबादी को सत्ता में सक्रिय भागीदारी सौंपने की नेक मंशा से ही पंचायती राज कानून में संशोधन कर इसकी  त्रिस्तरीय चुनाव प्रक्रिया में पचास फीसदी पद महिलाओं के लिए आरक्षित करने की व्यवस्था की गई थी लेकिन इस नई व्यवस्था के तहत महिलाओं को चुनाव लड़ने का मौका तो मिला लेकिन देहात इलाको में वे सिर्फ नाम की ही प्रत्याशी रहीं। भिण्ड जिले में निकले चुनाव परिणामो के बाद शुरू हुए जीत के जश्न के दृश्य देखकर चौंक जाएंगे क्योंकि इस जश्न में प्रत्याशी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही । कहीं उसके ससुर मालाओं से लदे दिख रहे हैं तो कहीं पति।





ज्यादातर नेताओं के परिजन जीते





भिण्ड जिला पंचायत चुनावों के ज्यादातर नतीजे आ गए हैं । हालांकि अभी इनकी औपचारिक घोषणा नहीं हुई है लेकिन नतीजे आते ही जश्न शुरू हो गए हैं। लेकिन इन ज्यादातर जश्नों में विजेता प्रत्याशी की सूरत दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही । दरअसल इनमे ज्यादातर वे नेता सक्रिय थे जो एमएलए ,एमपी का टिकट हासिल न कर सके या सियासी हासिये पर है लेकिन  जिला पंचायत में उनकी सीट महिला के लिए आरक्षित है । वे पंचायत के जरिये अपना वजूद बचाने की गरज से अपनी पत्नी,बहु,बेटी या किसी अन्य परिजन के नाम से मैदान में कूदे । लेकिन चुनाव में प्रत्याशी तो अपवाद को छोड़कर घरों के रूटीन काम काज में व्यस्त रहीं नामांकन भरने से लेकर प्रचार, मतदान से लेकर काउंटिंग तक मे सक्रियता और नेतृत्व पुरुषों का ही रहा । यही बजह है जीत का जुलूस भी प्रत्याशी नही उनका ही निकला।





के पी सिंह भदौरिया





ये भिण्ड जिले में बीजेपी के कद्दावर नेता है । प्रदेश के रेत के बड़े कारोबारी है और जिला सहकारी बैंक, जनपद पंचायत मेंहगाव ,मंडी के अध्यक्ष रह चुके है । दशकों से मेहगांव सीट से बीजेपी से विधायक के टिकिट के दावेदार हैं लेकिन न पार्टी टिकट देती है और न वे अपनी ताकत दिखाने से बाज आते हैं। इस बार उन्होंने अपनी पुत्र वधू कामना सुनील भदौरिया को मैदान में उतारा। जाहिर है कामना सिर्फ उम्मीदवार थी ,बाकी चुनाव तो उनके ससुर के पी सिंह भदौरिया ने लड़ा । यही वजह है कि कल देर रात कामना के जीत का पता चला समर्थकों ने मालाएं कामना के नहीं बल्कि उनके ससुर के गले में डालीं। जुलूस भी उन्हीं का निकला।





अवधेश सिंह चौहान





अवधेश सिंह चौहान के पिता डॉ राजेन्द्र प्रकाश सिंह चौहान नब्बे के दशक में बीजेपी के कद्दावर नेता थे । वे भिण्ड जिले की रौंन विधानसभा सीट से कई दफा एमएलए रहे और नब्बे में  लाल पटवा के नेतृत्व में जब प्रदेश में बीजेपी सरकार बनी तो उन्हें पहली केबिनेट में जगह दी गई। वे स्वास्थ्य और सामान्य प्रशासन जैसे महत्वपूर्ण विभागों में मंत्री रहे । लेकिन वे अगला चुनाव हारे तो सियासत ही बेपटरी हो गई । कुछ वर्ष पहले उनका निधन हो गया । अब उनका बेटा बीजेपी में सक्रीय है लेकिन उसे कोई तबज्जो नहीं मिली। अवधेश ने जिला पंचायत के जरिये अब अपने पिता की विरासत संभालने का रास्ता खोजा लेक़िन उनकी सीट महिला के लिए आरक्षित होने के कारण उन्होंने अपनी पत्नी श्रीमती पुष्पलता को मैदान में उतारा । हालांकि पुष्पलता पढ़ी लिखीं और सक्रीय महिला हैं सो उन्होंने भी अपना थोड़ा बहुत प्रचार किया  लेकिन नाम से लेकर काम तक अवधेश ही संभाले थे सो पत्नी की जीत के सोशल मीडिया पर उनकी पत्नी नही बल्कि पुष्पाहारो से लदे उनके ही फोटो उतरा रहे हैं।





नरेंद्र सिंह कुशवाह





ये बीजेपी के कद्दावर नेता है । अनेक बार बीजेपी के टिकिट पर चुनाव लड़कर हार भी चुके हैं और विधायक भी बन चुके हैं। 2018 का विधानसभा चुनाव वे बीएसपी के संजीव सिंह कुशवाह संजू से हार चुके है। अब उनकी पार्टी  में भी सियासी राह कठिन हो चली क्योंकि उनके खांटी प्रतिद्वंद्वी संजीव सिंह बीएसपी छोड़ अपनी पुरानी पार्टी बीजेपी में शामिल हो गए । नरेंद्र सिंह अब जिला पंचायत के जरिये अपना सियासी रसूख कायम रखना चाहते है । उनकी पत्नी श्रीमती मिथलेश कुशवाह लगातार तीसरी बार जिला पंचायत सदस्य के रूप में निर्वाचित होने वालीं संभवतः पूरे प्रदेश की पहली महिला हैं । बावजूद इसके उनका राजनीतिक दखल,भागीदारी और सक्रियता शून्य ही है  । उनके चुनाव और उसके बाद के सभी काम उनके पति नरेंद्र सिंह ही देखते है। जाहिर है उनकी जीत के जश्न की मालाएं भी उनके ही लगे में पड़ीं । श्रीमती मिथलेश नरेंद्र कुशवाह को इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा है।





मान सिंह कुशवाह





ऐसा नही कि महिला प्रत्याशियों का यह हाल सिर्फ  बीजेपी या किसी दल विशेष में है बल्कि इस मामले में सबका तरीका एक सा है। कल  चुनाव परिणाम आये तो भीड़ ने फटाफट उनका गला फूल मालाओं से भर दिया । लेकिन इन मामलों को देखकर कोई यह धारणा बना ले कि वे कोई  चुनाव जीते हैं तो यह धारणा गलत ही होगी। दरअसल जीतीं तो उनकी माँ हैं।



मान सिंह कुशवाह भिण्ड जिला  के अध्यक्ष है । वार्ड पिछड़ी महिला के लिए आरक्षित होने के कारण उन्होंने अपनी  मां को मैदान में उतारा। वे सीधी सादी ग्रामीण है उनका चुनाव से कोई सरोकार भी नही है । उनका नाम था और उसके आगे लिखा था मान सिंह कुशवाह की माता जी को विजयी बनाइये । सारा प्रचार मानसिंह ही संभाल रहे तो समर्थकों ने विजयी जुलूस भी उनका ही निकाला।





लेकिन एक महिला प्रत्याशी ऐसी भी





लेकिन सभी महिला प्रत्याशी शैडो ही थीं यह कहना उचित नही होगा। भिण्ड जिले की जिला पंचायत वार्ड 15 कन्हारी क्षेत्र से विजयी हुईं संजू जाटव कांग्रेस से है। वे इकलौती महिला प्रत्याशी थी जिनकी प्रचार सामग्री में सिर्फ उनका नाम था न कि पति या पिता के साथ।



        गजराज जाटव की पत्नी संजू इस समय काँग्रेस में है । लेकिन उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता एक सी नही रही। उन्होंने सबसे पहले जनपद पंचायत भिण्ड के सदस्य का चुनाव जीता और वे जनपद अध्यक्ष बन गईं । लेकिन थोड़े समय बाद वे स्थानीय विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह के प्रयासों से बीजेपी में शामिल हो गईं। लेकिन वहां उन्हें कोई तबज्जो नहीं मिली तो वे कांग्रेस में शामिल हो गईं । वे गोहद से विधानसभा टिकट चाहतीं थी लेकिन नही मिला तो इस बार वे मेंहगाव के कन्हारी वार्ड से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ गईं । कहते हैं उन्हें पूर्व विधायक हेमंत कटारे का समर्थन मिला। संजू ने अपने परिजनों की छाया से मुक्त स्वयं ही अपना प्रचार अभियान संभाला और धमाकेदार जीत दर्ज की



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