GWALIOR.नामीबिया की राजधानी विन्डहोक से आठ अफ्रीकन चीतों को लेकर विशेष विमान भारत के लिए देर शाम रवाना हो गया। इन्हें नामीबिया के प्राणी विशेषज्ञों ने एयरपोर्ट पर भावुक विदाई दी। लगभग 68 साल बाद पहली बार कोई चीता 17 सितंबर को फिर भारत की धरती पर दिखेगा। इन्हें कूनो नेशनल पार्क में भेजने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं कूनो पहुंच रहे है । चीतों और पीएम के स्वागत के लिए श्योपुर जिले को दुल्हन की तरह सजाया गया है।
शाम को रवाना हुई फ्लाइट
नामीबिया से इन आठ चीतों को लेकर विशेष विमान बी 474 ने भारतीय समयानुसार लगभग साढ़े पांच बजे भारत के लिए उड़ान भरी। इस मौके पर नामीबिया के तमाम वन्य प्राणी विशेषज्ञ और वहां के ब्यूरोक्रेट तथा भारत के राजनयिक मौजूद थे। बताया गया कि यह क्षण अत्यंत भावुक था। यह विमान कल ही विंडहोक पहुँच गया था वहां विशेषज्ञों ने इसका लंबा तकनीकी परीक्षण किया और आज दोपहर में इनके अंतरण की कानूनी औपचारिकताएँ पूर्ण करने के बाद इन्हे शाम पांच बजे अलग-अलग कैब्स में कैद करके एयरपोर्ट पर लाया गया। इसके बाद इन्हें वहां पहले से मौजूद भारतीय वन्य प्राणी संस्थान के डीन डॉ वाय एस झाला के सुपुर्द किया गया गया वे अन्य विशेषज्ञों के साथ विमान में सवार हुए और फिर इस विमान ने भारत के लिए अपनी उड़ान भरी। नामीबिया सरकार ने इस कार्यवाही की जानकारी औपचारिक रूप से भारत सरकार से साझा की।
तड़के ग्वालियर पहुंचेगा यह विमान
सूत्रों के अनुसार चीतों को लेकर यह विशेष विमान शनिवार सुबह पांच से छह बजे के बीच भारतीय वायुसेना के अति सुरक्षित और आधुनिक तकनीक से लैस हवाई पट्टी पर लैंड करेगा। इसके लिए आज एयरफोर्स ने अपनी अनौपचारिक रिहर्सल भी की। यहाँ उतरते ही मेहमान चीतों का साथ आ रहे विशेषज्ञों द्वारा रूटीन चैक -अप किया जाएगा। इसके बाद इन्हें उतारा जाएगा और पहले से रनवे पर तैयार खड़े वायुसेना के अत्याधुनिक हेलीकॉप्टर में इन्हे शिफ्ट किया जाएगा। इतनी देर में विमान से साथ आ रहे विशेषज्ञों के दल में शामिल लोग फ्रेश होंगे और नाश्ता करेंगे और फिर हेलीकॉप्टर उड़ान भरेंगे। यह उड़ान सात बजाकर दस मिनिट पर शुरू होगी और महज बीस मिनिट में अपने गंतब्य पर पहुँच जाएंगे। इन्हें कूनो क्षेत्र में बनाये गए अस्थायी हेलीपेड पर लैंड करके पिंजरों को उतारा जाएगा और फिर यहाँ से उस बाद में ले जाया जाएगा जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन्हें समारोहपूर्वक रिलीज करेंगे।
कूनो में ही नाश्ता करेंगे चीते
इस अभियान से जुड़े सूत्रों की मानें तो चीतों को रास्ते में खाने को कुछ नहीं दिया जाएगा ताकि वे यात्रा के दर्जन शौचादि न करें। ग्वालियर में ट्रांजिट के दौरान भी उन्हें कुछ खिलाने का कोई प्लान अभी नहीं है लेकिन सुबह आठ बजे कूनो पहुंचने के बाद इनके पिंजड़ों में थोड़ा भोजन दिया जाएगा। इसके लिए भैंसे के मांस की व्यवस्था है। लेकिन इन्हे पूरा भोजन पिंजड़े से बाहर आने का बाद ही मिलेगा वह भी शिकार के जरिये नहीं बल्कि नेशनल पार्क में द्वारा बनाये गए प्लेटफार्म पर रखा हुआ मिलेगा।
क्वारंटाइन में दूर से ही भोजन मिलेगा
अभी यह चीते निर्धारित क्वारंटाइन में ही रहेंगे। इस दौरान इनको शिकार से पूरी तरह दूर रखा जाएगा और दूर रहकर ही बाहर से इनके लिए भोजन की व्यवस्था की जाएगी।
अभी मैन्यू में सिर्फ भैंसे का मांस
शुरुआती दिनों में इनको नए बसेरे की आबोहवा से परिचय होने में वक्त लगेगा इसलिए कम और लाइट फ़ूड ही इनके मैन्यू में शामिल किया गया है। इन्हे सप्ताह में दो दिन भैंसे का मांस परोसा जाएगा और इनके स्वास्थ्य और पाचन क्रिया की कड़ी निगरानी की जायेगी। इनको रोज दी जाने वाली डाइट का निर्णय इनके साथ ही आ रहे प्रो एड्रिन ,डॉ लारी मारकर और डॉ विन्सेंट की टीम करेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक इन्हे शिकार के लिए नहीं छोड़ा जाता तब तक भैंसे के मांस को ही इनके मैन्यू में शामिल करने का फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि एक तो यह हर जगह आसानी से उपलब्ध है और दूसरे इसके लाइसेंसी सप्लायर सब जगह आसानी से मिल जाते है।
अभी छोटे बाड़े में ही रहेंगे मेहमान
तय शेड्यूल के अनुसार नामीबिया से आ रहे यह अफ्रीकी चीते अपने क्वारंटाइन का समय एक माह तक कूनो नेशनल पार्क के छोटे बाड़े में ही काटेंगे। पीएम मोदी इन्हें इसी बाड़े में आज़ाद करेंगे। यह बाड़ा लगभग 1500 वर्गमीटर में बनाया गया है। इसके पीछे सोच यह है कि इनको इस अन्य आशियाने के हैबिटेट से और यहाँ के ईको से फ्रेंडली होने में कुछ समय लगेगा। इसके बाद इन्हे इससे बड़े बाड़े में शिफ्ट किया जाएगा और फिर नेशनल पार्क के वृहद इलाके में विचरण करने लगेंगे।
प्रशिक्षित दस्ता करेगा देखरेख
नामीबिया से आ रहे इन अफ्रीकी चीतों की कूनो में देखभाल भी सामान्य वन कर्मियों के हवाले नहीं रहेगी बल्कि एक प्रशिक्षित दस्ता यह व्यवस्था संभालेगा। यह दस्ता नामीबिया से ही इसकी ट्रेनिंग लेकर आया है। वन विभाग ने विगत मई माह में एक दल नाम्बिया भेजा था जिसने वहां इन्हीं चीतों के साथ रहकर इनकी मनोदशा और जीवन शैली का विसद अध्ययन किया और इनके देखरेख की औपचारिक ट्रेनिंग भी ली। अब इस दस्ते ने दो दिन पहले ही कूनो में जाकर अपनी कमान संभाल ली है।
काले हिरणों को नजरों से बचाने का इंतज़ाम
चीता के पसंदीदा काम में काले हिरणों का शिकार करना है और अभी एक माह तक उन्हें शिकार से दूर रखना है इसलिए पहले बाड़े का निर्माण इस ढंग से किया गया है कि नेशनल पार्क में मौजूद काले हिरणों का शिकार करना तो दूर वे इन चीतों की आँखों के सामने भी न आ पाएं। इसके लिए इसी तरह की लेंड स्केपिंग की गयी है और कंटीले तार भी लगाए गए हैं और गहरी खाई भी खोदी गयी है लेकिन इस बात का ख़ास ख्याल रखा गया है कि इनसे मेहमान चीतों को किसी तरह का कोई नुक्सान न पहुंचे।
फिलहाल भोजन का पर्याप्त बंदोबस्त
इस नेशनल पार्क से जुड़े सूत्रों के अनुसार कूनो में इन मेहमानों के लिए भोजन की पर्याप्त व्यवस्था है। इसकी तैयारी दो वर्ष से चल रही है। 1200 चीतल अलग-अलग जगह से लाकर छोड़े गए हैं। उम्मीद की जा रही है कि इनके कुनबे में भी इजाफा होने से इनकी संख्या भी बढ़ी होगी। सूत्रों का मानना है कि चीतों को भोजन में कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि इस क्षेत्र में पहले से भी बड़ी संख्या में हिरण ,चीतल और जंगली सुअर पाए जाते हैं। नामीबिया में भी काले हिरण और साम्भर से मिलते -जुलते कद और स्वरुप वाले जानवर पाए जाते है जो इन चीतों की सर्वाधिक पसंद है। चीते उन्हें ही समझकर इनके शिकार के लिए लालयित होंगे।