MP : डॉक्टर के प्रमोशन से बढ़ी मरीजों की मुसीबत, मेडिकल ऑफिसर बने स्पेशियलिस्ट, अब कौन करे इमरजेंसी ड्यूटी ?

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The Sootr CG
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MP : डॉक्टर के प्रमोशन से बढ़ी मरीजों की मुसीबत, मेडिकल ऑफिसर बने स्पेशियलिस्ट, अब कौन करे इमरजेंसी ड्यूटी ?

मनोज जैन, BHIND. लोक स्वास्थ्य विभाग में असिस्टेंट सर्जन और मेडिकल ऑफिसर के पद पर कार्यरत करीब 450 डॉक्टर्स को बरसों बाद स्पेशियलिस्ट का प्रमोशन नसीब हुआ है। इनमें से कई डॉक्टर तो 30-30 साल की नौकरी के बाद पहला प्रमोशन पाकर स्पेशियलिस्ट (क्लास वन) बने हैं। लेकिन उनके प्रमोशन से सरकारी अस्पतालों में मरीजों की मुसीबत बढ़ गई है। कारण ये है कि प्रमोशन से अस्पतालों में इमरजेंसी ड्यूटी के लिए जरूरी डॉक्टरों की कमी हो गई है। भिंड जिला अस्पताल में ही 11 मेडिकल ऑफिसर के प्रमोशन के बाद इमरजेंसी ड्यूटी के लिए सिर्फ 5 डॉक्टर ही बचे हैं। अब अस्पताल प्रबंधन के सामने समस्या है कि वो इमरजेंसी में कैसे 24 घंटे मेडिकल ऑफिसर की उपलब्धता सुनिश्चित कराए। खासकर अस्पताल में रात में आने वाले मरीजों को इमरजेंसी में डॉक्टर नहीं मिलने से प्राइवेट अस्पताल का रुख करना पड़ रहा है।



इमरजेंसी ड्यूटी में 5 डॉक्टर



11 मेडिकल ऑफिसर के प्रमोशन के बाद इमरजेंसी ड्यूटी में 5 डॉक्टर ही बचे हैं जिससे मैनेजमेंट गड़बड़ा गया है। रात में आने वाले मरीजों के लिए डॉक्टर नहीं हैं। जो डॉक्टर नाइट ड्यूटी करते हैं उनका अगले दिन ऑफ होता है। रात में आने वाले मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा रहा है।



भिंड में मेडिसन विभाग में कोई डॉक्टर और विशेषज्ञ नहीं



भिंड के 400 बेड के जिला चिकित्सालय में विशेषज्ञों के 22 पद हैं जिनमें से केवल 6 पदों पर विशेषज्ञ पहले से हैं।  11 चिकित्सा अधिकारियों की पदोन्नति हो जाने से अब इमरजेंसी ड्यूटी करने वाले मात्र 5 डॉक्टर ही बचे हैं। जिन चिकित्सकों को पदोन्नत किया गया है उनका स्थानांतरण कहीं नहीं किया गया है इस कारण विशेषज्ञ चिकित्सकों का जो लाभ मिलना चाहिए वो आम जनता को नहीं मिल रहा है क्योंकि जिला चिकित्सालय भिंड में मेडिसिन विभाग में ना तो कोई डॉक्टर है और ना ही कोई विशेषज्ञ। ये पद लंबे समय से खाली होने के कारण मरीज इलाज के लिए ग्वालियर या अन्य स्थानों पर जाने को मजबूर होता है।



'इमरजेंसी ड्यूटी का संकट'



सिविल सर्जन डॉक्टर अनिल कुमार गोयल ने द सूत्र से बातचीत में स्वीकार किया कि चिकित्सा अधिकारियों की कमी से हमारे यहां इमरजेंसी ड्यूटी का संकट पैदा हो गया है। सबसे बड़ी बात ये है की रात में जब मरीज गंभीर स्थिति में होता है तो वो जिला चिकित्सालय  इस आस में जाता है कि उसे बेहतर चिकित्सा मिलेगी और यहां जब उसको देखने वाले डॉक्टर ही नहीं होंगे तो उसका इलाज भगवान भरोसे ही होगा।



मरीजों को हो रही भारी परेशानी



400 बेड के जिला चिकित्सालय में इमरजेंसी ड्यूटी पर डॉक्टर उपलब्ध ना होने के कारण रात में मरीजों को बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है। इमरजेंसी में उपलब्ध एक ही डॉक्टर के ऊपर पूरे अस्पताल का लोड होने के कारण मरीजों को बेहतर चिकित्सा उपलब्ध नहीं हो पाती है, जिसके कारण मरीज निजी चिकित्सालय या ग्वालियर जाकर भारी भरकम खर्चा करके इलाज कराने के लिए मजबूर हो जाता है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तथा सिविल अस्पतालों से चिकित्सा अधिकारियों को पदोन्नति के बाद जिला अस्पताल स्थानांतरित किया गया है, क्योंकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और सिविल अस्पताल में क्लास वन का पद नहीं होता है।



कोई 30 साल की सेवा के बाद बना विशेषज्ञ, कोई 5 साल में ही बना



मध्यप्रदेश में चिकित्सा विभाग में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी को देखते हुए शासन ने 451 चिकित्सा अधिकारियों को विशेषज्ञ के पद पर पदोन्नत कर दिया है। लंबे समय के बाद चिकित्सा अधिकारियों को विशेषज्ञों के पदों पर हुई पदोन्नति में अपनाई गई प्रक्रिया को लेकर चिकित्सा अधिकारियों में असंतोष व्याप्त है। किसी विभाग में कोई चिकित्सा अधिकारी 30 साल की सेवा के बाद विशेषज्ञ बना है तो कोई 5 साल की सेवा के बाद ही विशेषज्ञ बन चुका है।



मध्यप्रदेश में चिकित्सा अधिकारियों की कमी लेकिन फिर भी भर्ती नहीं



मध्यप्रदेश में 3 हजार 615 विशेषज्ञों के पद हैं जिनमें से 2 हजार 949 पद खाली हैं जिनमें से 451 पदों पर चिकित्सा अधिकारियों को विशेषज्ञ बनाया गया है जबकि सबसे बड़ा सवाल ये है कि पहले से ही प्रदेश में चिकित्सा अधिकारियों के रिक्त पदों को नहीं भरा गया है, ऐसे में जिला चिकित्सालयों में चिकित्सा अधिकारियों की भारी कमी के कारण मरीजों को परेशानी हो रही है।


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