Jabalpur. जब भी जबलपुर में नगरीय निकाय चुनाव की बात होती है तो महापौर के नाम पर एक ही व्यक्ति का नाम सभी के जहन में आता है पंडित भवानी प्रसाद तिवारी का। एक या दो बार नहीं 7 बार महापौर रहे जबलपुर के पंडित भवानी प्रसाद तिवारी किसी पहचान के मोहताज नहीं है। क्योंकि एक दौर ऐसा भी रहा है जब जबलपुर शहर की बात चलती थी तो कहा जाता था कि अच्छा पंडित भवानी प्रसाद तिवारी का शहर। जबलपुर शहर की पहचान ही पंडित तिवारी के नाम से थी। अद्भुत प्रतिभा के धनी पंडित भवानी सरल और सहज भाव के व्यक्ति थे। 1952 में जबलपुर के प्रथम नागरिक बनने के बाद वे 1953, 1955, 1958 और 1961 में महापौर रहे है। चुनाव जीतने के बाद वे आम जनता के बीच रहकर काम करते थे। उनके घर जाते थे और चर्चा कर समस्या का समाधान करते थे। इसी स्वभाव ने उन्हें 7 बार महापौर बनने का मौका दिया। जनता पंडित भवानी प्रसाद तिवारी से बेहद खुश थी। इतना ही नहीं पक्ष के साथ विपक्ष के नेता भी उनका बहुत सम्मान करते थे। इसलिए मिलनसार व्यक्तित्व पंडित तिवारी आज भी सभी के जहन में बसे हुए है।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहते गए थे जेल
12 फरवरी 1912 में पंडित भवानी प्रसाद तिवारी का जरूर जन्म सागर में हुआ लेकिन उनकी शिक्षा-दीक्षा से लेकर उनकी कर्मभूमि जबलपुर ही रहा। साल 1930 से ही भवानी प्रसाद तिवारी राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गए थे। 18 साल की कम उम्र में ही जेल यात्रा की और इसके बाद कई बार राष्ट्रीय आंदोलन के लिए संघर्ष करते हुए फिर जेल गए। भारत छोड़ो आंदोलन के अंतर्गत शहर की तिलक भूमि तलैया में हुए सिग्नल कोर के विद्रोह की अगुवाई के साथ ही शहर में होने वाले प्रत्येक आंदोलन की अगुवाई भवानी प्रसाद तिवारी ने ही की। त्रिपुरी अधिवेशन के दौरान हितकारिणी स्कूल में शिक्षक की नौकरी छोड़ अधिवेशन में सक्रिय भूमिका निभाई। तिलक भूमि तलैया में हुए तीन दिन के अनशन में शामिल रहे।
गीतांजलि का भी किया है अनुवाद
पंडित भवानी प्रसाद तिवारी ने रवींद्रनाथ टैगोर की नोबल पुरस्कृत कृति 'गीतांजलि' का सबसे अच्छा अनुगायन किया था। जेल में बंद रहते हुए हरि विष्णु कामथ की प्रेरणा से यह इसकी रचना की थी। इसका प्रकाशन होने पर स्वयं टैगोर के अलावा अनेक समकालीन रचनाकारों ने इस कृति की सराहना की थी। इसी के साथ जबलपुर के तिवारी की ख्याति देशभर में फैल गई। उन्होंने टैगोर की अंग्रेजी गीतांजलि से भाव ग्रहण करके हिंदी गीतांजलि की रचना की थी। इसीलिये उसे महज अनुवाद के स्थान पर उन्हें सम्मानित किया गया था। रवींद्र नाथ टैगोर की कृति गीतांजलि का हिंदी अनुवाद उनके जीवन को और भी अलंकृत कर देता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही वर्ष 1947 में 'प्रहरी समाचार पत्र' का संपादन उनके भीतर के पत्रकार का परिचय भी कराता है। साल 1972 में पद्मश्री का दिया जाना विभिन्न् क्षेत्रों में उनकी सक्रिय भूमिका का प्रमाण है और रचना के सृजन में पंडित भवानी प्रसाद तिवारी का नाम प्रमुख स्थान है।