BHOPAL: मंत्री के दांव से तिलमिलाए पूर्व मेयर ने दिखाया दमखम, राजनीति में बेटे की बोहनी बिगड़ी, ये संजय ‘बड़े दूर’ के वादे करता है

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The Sootr CG
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BHOPAL: मंत्री के दांव से तिलमिलाए पूर्व मेयर ने दिखाया दमखम, राजनीति में बेटे की बोहनी बिगड़ी, ये संजय ‘बड़े दूर’ के वादे करता है

हरीश दिवेकर। लीजिए, चलते-चलते साल का सातवां महीना आ गया। आषाढ़ बीतने को है, बारिश रंग में कब आएगी, लोग इसी की बाट जोह रहे हैं। महाराष्ट्र में आखिरकार सियासी उठापटक का पटाक्षेप हो ही गया। बीजेपी के समर्थन से एकनाथ शिंदे नए मुख्यमंत्री बन गए। अब उद्धव ठाकरे लगातार मन की बात कहे जा रहे हैं, पर सुनने वाला कोई नहीं। वहीं, उदयपुर में हुए हत्याकांड से पूरा देश सकते में है। इधर, हैदराबाद में बीजेपी की दो दिन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही है। दक्षिण में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग के कई मायने हैं। आगामी चुनावों में बीजेपी दक्षिण में कमल खिलाने की तैयारी में है। इधर, मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव चल रहे हैं और स्थानीय निकाय चुनाव का प्रचार जोरों पर हैं। निकाय चुनाव को दोनों पार्टियां 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल की तरह देख रही हैं। खबर तो इधर भी कई पकीं, आप तो सीधे अंदर चले आइए... 



तेरी लाइन मेरी लाइन से बड़ी कैसे...



पुरातन महापौर जी को शायद यह भ्रम होगा कि हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है, इसलिए कई बार लाइन तोड़कर इधर-उधर घुस जाते हैं। चुनावी चर्चा चल रही थी। सूबे के मुखियाजी भी थे और एक मंत्री भी। जाते हुए महापौर जी ने सीएम को सलाह दी, मध्य भोपाल में एक रोड शो हो जाए तो कैसा रहेगा। मामाजी हूं..हां करते, उससे पहले ही पास खड़े मंत्रीजी ने लाइन काट दी। जहां से जीतते ही नहीं हैं, वहां हाथ-पैर चलाने से क्या फायदा। रहने देते हैं। मामाजी भी बोले..हां, रहने देते हैं। इस काट-पीट से गुस्साए पुराने महापौर के अंदर परशुराम जाग गए। जुबानी फरसा लेकर पिल पड़े मंत्रीजी पर। हमारे सामने राजनीति का ककहरा सीखे हो और हमें ही सिखा रहे हो क्या करना, क्या नहीं...। हमारी लाइन हमारी होती है...आगे से काटोगे तो हम आपकी राजनीति इतनी जगह से काटेंगे कि जोड़ते-जोड़ते जीवन गुजर जाएगा। सकपकाए मंत्रीजी बस इतना बोल पाए कि...मेरा वो मतलब नहीं था...मेरा मतलब तो...। आपका जो भी मतलब हो...आगे अपने मतलब से मतलब रखना। हमारी बात का मतलब समझ गए ना..। मंत्री का नाम बताएं...अब रहने भी दो..किसी का विश्वास तोड़ना भली बात नहीं। 



राजनीति का बोहनी-बट्टा ही बिगड़ गया



वजीरे-आजम का परिवारवाद पर दिया नुस्खा याद है ना। नुस्खा बोले तो...बच्चों को टिकट नहीं दूंगा। हां, जिनके बच्चे पार्टी का काम करते रहे हैं, वो भविष्य में कमल...कमल...हो सकते हैं। बीजेपी के सयाने नेताओं ने इस नुस्खे में नुक्स ढूंढा...बच्चों को छोटे-छोटे चुनाव लड़वाकर नेता घोषित करने का। पंच, सरपंच, जनपद, जिला पंचायत जिसका जहां दांव लगा भैया, भौजाई, सुपुत्र-सुपुत्री को उतार दिए हजार-पांच सौ वोटों वाले चुनाव में। कहीं नुस्खा चल गया, कहीं दांव उल्टा पड़ गया। स्पीकर महोदय गिरीश गौतम जी इस नुस्खे के ताजे-ताजे पीड़ित हैं। बेटे जी को पंचायत चुनाव में उतार दिया। खुद भी खूब दौड़े-भागे, लेकिन जनता ने बेटे जी को दौड़ा-दौड़ाकर घर भेज दिया। राजनीति का बोहनी-बट्टा ही बिगड़ गया। बाकी काम उन विरोधियों ने.. बेटा हार गया...हार गया बेटा...चिल्ला-चिलाकर पूरा कर दिया, जिन्हें गौतमजी ने बिना दौड़ाए ही घर भेज दिया था। 



साफ छवि की चिंता में प्रीत लगाई



हमारे दुबले-पतले मुखियाजी अपनी सरकार की छवि की चिंता में और दुबले हुए जा रहे हैं। ना...ना...छवि भारद्वाज जी की नहीं। वे तो पधार गईं दिल्ली। उनके जाने के बाद साफ सुथरी छवि वाली महिला आईएएस की ढूंढ मची। दाएं-बाएं रहने वालों ने जितने नाम सुझाए, ज्यादातर में मुखिया जी श्रीमुख से ना-ना..ही निकला। अब सरकार में साफ छवि का अफसर ढूंढना कोई मामूली काम तो है नहीं। बस यूं समझिए भूसे में सुई गिर गई है और उसे ढूंढना है। अफसर भी कहां रुकने वाले थे। मुखियाजी के सामने अपनी छवि चमकाने के लिए लगे रहे। ये नाम..वो नाम...ये शर्मा, वो वर्मा..। आखिर प्रीति मैथिल पर आकर निगाह टिक गई। टिक क्या गई, जमा ही दी गईं। अब ये अलग बात है कि मुखिया जी केवल अपने आसपास की टीम में ही छवि ढूंढ रहे हैं, जिलों में जो मैदानी अफसर सरकार की छवि की छीछालेदार करवा रहे हैं, वहां की छवि सुधारने पर फोकस कीजिए सरकार। आपके असली श्रीमुख तो ये ही होते हैं, जिनसे जनता का पाला पड़ता है...। हम बता दिए हैं, अब आप जानो। 



भैयाजी स्माइल...करें की नहीं



नगर निगम के चुनाव का गणित चल रहा है। जनता से ज्यादा सरकार में। सरकार की खोजी टीम भी लगी है, ये खोजने में नगर सरकार में सरकार बच रही है, गिर रही है। राजधानी के एक बड़े अफसर से सूबे के अफसरों से पूछा है-क्या हाल है। अरे तबीयत नहीं जी, सरकार का हाल पूछा है। ये अफसर मुखियाजी को अग्रिम सूचना देना चाहते हैं कि कहां हम असरदार हैं, कहां असर खत्म हो रहा है। हमें जासूसों ने बताया 16 महापौर में से दस मामा एंड कंपनी के हाथ आ रहे हैं, पांच कांग्रेस के साहब ले उड़ेंगे और एक में केजरीवाल का कारनामा दिख रहा है। सरकारी खोजी कंपनी ने सरकार को 13-3-1 का हिसाब-किताब दिया है। यूं आंकड़ा सरकार के साथ है, लेकिन फिर भी सूझ नहीं रहा है, इस खबर पर स्माइल करें कि नहीं। अभी तक तो पूरे 16 महापौर की खुराक लेते रहे हैं अब 10-12 ही..। 6 महापौर छूटना मतलब सत्तर विधानसभा सीटें...। वैसे पार्टी के खबरियों ने तो साहब को 16 आउट ऑफ 16 का आंकड़ा परोसकर 17 जुलाई तक सुकून दे दिया है। तब तक हम भी सुकून से हैं। आप भी रहिए। अपन को का...ना लेना, ना देना ...।



सलीके की सरकार, दूसरी बार



ऐसे बैठो। वैसे खड़े रहो। चुप रहो। कम बोलो.। शांत रहो। अंदर की बातें, बाहर नहीं जाना चाहिए। गनर, ड्राइवर को कहें कि गोपनीयता सीखें। अरे, आपको नहीं कह रहे। सरकार कह रही है अपनी टीम को। मंत्रियों के स्टाफ को सलीके सिखाए जा रहे हैं। हंसते रहिए। फोन पर वैसे ही लायकी से बात करना है कि लगे किसी कॉल सेंटर पर बात हो रही है...। मतलब...कॉल करने के लिए धन्यवाद..आपकी समस्या का निराकरण शीघ्र ही हो जाएगा। और कोई समस्या हो तो बताएं। यह सब इसलिए हो रहा है कि लोगों को लगे कि हमारी सरकार सलीकेदार है। सज्जन है। संस्कारित है। पता नहीं, इतने सद्गुण पालने में सरकार को अठारह साल, चार पारियां क्यों लग गईं। लगता है मैदान से कुछ चिंताजनक खबरें आ रही हैं। वैसे कहने वाले कह रहे हैं, मुखियाजी के दूसरे कार्यकाल में भी संस्कारित सरकार का सिलसिला शुरू हुआ था, जो बाद में शिगूफा बनकर रह गया। अबकी बार..दूसरी बार...क्या होता है, देखते हैं।



भैया वाजिब लगा लो..



संजय शुक्ला इंदौर में कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी हैं। चुनाव ऐसे लड़ रहे हैं, जैसा पार्षद लड़ते हैं। ये कर दूंगा...वो कर दूंगा...। शहर को  सिंगापुर बनाने जैसे वादे कर रहे हैं। सलाहकार भी छांट छांट कर सलाह दे रहे हैं....अब बोल दिए...5 ओवरब्रिज जेब से बना दूंगा। 5 ओवरब्रिज मतलब 150 करोड़ रुपए। लोग कहने लगे हैं, भैया थोड़ा वाजिब लगा लो। विधानसभा चुनाव में अपनी विधानसभा में 600 बोरिंग जेब से करवाने का जो दम भरा था, उस वादे का क्या हुआ, ये तो पहले देख लो....कोरोना से मरने वालों, बीमार होने वालों को जेब से 20-20 हजार दूंगा। अरे...आप तो खुद को कोरोना योद्धा प्रचारित कर रहे हो ना। अभी तक मालूम नहीं पड़ा कि कौन मरा, कौन बीमार हुआ था। शुक्ला को आसपास घूमने वाले चीयर बॉयज जमीन देखने ही नहीं दे रहे...कह रहे हैं, भैया हिट हो रहे हो..घोषणाएं करते जाओ। इंतजार करिए..हिट होते हैं या हिट विकेट होते हैं।


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