हरीश दिवेकर। अमूमन पहाड़ों में बादल फटने की घटनाएं सुनने को मिलती हैं, लेकिन इस बार तो मध्य प्रदेश की राजधानी में बादल फटने जैसा नजारा देखने को मिला। हर आदमी के मुंह से त्राहि माम, त्राहि माम निकल गया। भोपाल में बीजेपी की एक बड़ी बैठक होने वाली थी, लेकिन आसमान में घिरी घटाओं ने कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ही नहीं पहुंचने दिया। विद्वान सही कह गए हैं, प्रकृति पर किसी का वश नहीं। उसके अपने कायदे होते हैं, लेकिन बीजेपी से बाहर निकाले गए प्रीतम लोधी को आखिर ‘शक्ति’ कहां से मिल रही है? एक कार्यक्रम में नरोत्तम किसके करीब बैठे थे और फिर कहां बैठा दिए गए? ‘बड़े साहब’ रिटायर होंगे या एक्सटेंशन पाएंगे? एक चिट्ठी कैसे मप्र की सियासत में हड़कंप मचाए है...खैर! उथल-पुथल के दौर से गुजर रही कांग्रेस को बीते दिनों एक बड़ा झटका लगा। लंबे समय से पार्टी के वफादार रहे गुलाम नबी आखिरकार आजाद हो गए। आलाकमान को पांच पेज की चिट्ठी लिखी, जिसमें राहुल गांधी पर बड़े सवाल उठाए। कई अन्य राज्यों में भी उथल-पुथल मची है। झारखंड के मुख्यमंत्री की विधानसभा सदस्यता पर तलवार लटक रही है। उन्होंने टूट-फूट के डर से विधायक बाहर भेज दिए हैं। इधर मध्य प्रदेश में भी कुछ राज्यों के विधायक ‘छुट्टी’ मनाते देखे गए। ...ऐसी तमाम खबरों से जुड़ी अंदरखाने की बातों को पढ़ने के लिए द सूत्र पर क्लिक करें- बोल हरि बोल...
प्रीतम के कंधे पर किसकी बंदूक
कल तक गुमनामी राजनीति करने वाला प्रीतम प्यारे अचानक जननेता कैसे बन गया। क्या ये वाकई लोधी वर्सेज ब्राह्मण का फैक्टर है या फिर प्रीतम प्यारे के कंधे पर किसी ने अपनी बंदूक रख दी है। जिसकी एक ठांय से वीडी शर्मा, नरोत्तम मिश्रा और बागेश्वर की मूर्ति खंडित करने का प्रयास है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो प्रीतम का ब्राह्मण विरोधी बयान उस पर बागेश्वर का पलटवार एक सामान्य घटना हो सकती है, लेकिन इसके बाद जो कुछ घटा वो साधारण नहीं था, क्योंकि मामला अचानक लोधी वर्सेज ब्राह्मण की जगह...पिछड़ा वर्सेज अगड़ा हो गया। लोधी के आंदोलन में किरार, रावत, गुर्जर, यादव सहित अन्य लोग शामिल हो गए। ये ऐसे समय हुआ है, जब प्रदेश में सियासी उठापटक की बयार चल रही है। ऐसे में अब सियासी हलकों में गुणा भाग लगना शुरू हो गए कि ब्राह्मण चेहरे को डैमेज करने में किसे फायदा मिलेगा। हमने तो इशारा कर दिया अब आप गुणा भाग लगाकर जोड़ हासिल निकालिए।
बात तो जवाईं जी से ही जमेगी
सरकार चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की। भोपाल में एक बंगला ससुर-जवाई के लिए सदा लाभ-शुभ का केंद्र रहता है। पहले इसमें कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री रहते थे। उनके जवाई उर्फ दामाद जी इतने ताकत में रहते थे कि कभी-कभी लगता था कि ससुर पीए हैं और जवाई मंत्री। सरकार गई, बंगला वहीं रहा। अभी इसमें बीजेपी के वरिष्ठ मंत्री रहते हैं। जी...जी...सही पकड़े हैं, अब भाजपाई जवाई मजे में हैं। मंत्रीजी के विभाग के काम कराने के इच्छाधारी सीधे जवाई जी की शरण में जाते हैं। लक्ष्मी-प्यारे पर बात बन गई तो फाइल सरपट दौड़ती है और अगर लक्ष्मी ठिठक गई तो फिर पीड़ित पक्ष कितने ही दरबार में हाजिरी दे दे, काम नहीं होगा। भरोसा ना हो तो बिना जवाई एकाध कागज इधर से उधर करवाकर देख लीजिए समझ में आ जाएगा, जमाई जी का जलवा।
किसने बदली नरोत्तम की कुर्सी?
भोपाल के रवींद्र भवन मे हुए कार्यक्रम में प्रदेश गृह मंत्री की कुर्सी बदलने का किस्सा चर्चा में है। पुलिस महकमे ने तो अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दाएं में सीएम शिवराज सिंह चौहान को और बाएं में प्रदेश मंत्री नरोत्तम मिश्रा की कुर्सी लगाई थी। सीएम के पास भोपाल के प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह को बैठाया गया था, लेकिन कार्यक्रम के शुरू होने से पहले अचानक कुर्सी को बदला गया। अमित शाह के बाएं नरोत्तम की जगह भूपेंद्र सिंह को बैठाया गया, वहीं नरोत्तम को भूपेंद्र सिंह की जगह यानी सीएम के पास। अब ये चर्चा चल रही है कि अमित शाह के करीबी नरोत्तम को किसने दूरी बनाने के लिए दूर बैठा दिया। कुछ कह रहे हैं कि स्थानीय राजनीति में खेला हो गया तो कुछ कह रहे हैं कि दिल्ली से सीटिंग अरेंजमेंट बदल गया। वजह जो भी हो, लेकिन पंडित जी के साथ तो खेला हो ही गया ना...।
दिलजले की चिट्ठी....
मंत्रालय से लेकर खबरनवीसों के घर दिलजले की चिट्ठी चर्चा का विषय बनी हुई है। चिट्ठी लिखने वाले ने खुद को रिटायर आईएएस और आरएसएस का कट्टर समर्थक बताया है। इन साहब ने पीएमओ को भी चिट्ठी से संदेशा भेजा है। इन साहब का कहना है कि पूरे कुएं में भांग मिली हुई है। उपर से नीचे तक भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है। भ्रष्टाचार से कमाई गई काली कमाई दिल्ली से लेकर पंजाब में जमीन खरीदने में निवेश की जा रही है। इन साहब ने इस पत्र में कुछ मंत्री और अफसरों के नाम के आगे उनकी काली कमाई भी लिखी है। चिट्ठी में कितनी सच्चाई है ये तो लिखने वाला और जिसके बारे में लिखा है, वो ही जानते हैं। इतना जरूर है इस चिट्ठी के संदेशे ने कई लोगों को बैचेन जरूर कर दिया है।
अफसर उड़ा रहे पतंग
बड़े साहब नवंबर में रिटायर हो रहे हैं, ऐसे में अब पूरे मंत्रालय में चर्चा है कि पहले वाले साहब की तरह क्या सीएम इन्हें भी एक्सटेंशन दिलाएंगे। उधर, मंत्रालय में उनके कुछ चहेते अफसर बड़े साहब का एक्सटेंशन प्रपोजल दिल्ली जाने की बात फैलाकर पतंग उड़ा रहे हैं। साहब का एक्सटेंशन होगा कि नहीं, ये सिर्फ सीएम और साहब ही जानते हैं, लेकिन साहब के एक्सटेंशन की उड़ती खबर से कई अफसरों की नींद जरूर उड़ी हुई है। उनसे प्रताड़ित कुछ अफसर एक्सटेंशन ना होने की अगरबत्ती लगा रहे हैं तो उनके राज में मलाई खाने वाले अफसर उनके एक्सटेंशन की दुआ मांग रहे हैं।
आईजी के खिलाफ बगावत का बिगुल
खाकी मतलब अनुशासन, लेकिन अब हालात के साथ इसका मतलब बदल रहा है। अब खाकी मतलब बगावत भी दिखने लगा है। बगावत के सुर भी संस्कारधानी से उठे हैं, यहां अफसर अपने अपने स्वार्थ के लिए असंस्कारी रवैऐ पर उतर आए हैं। आईजी की अफसरशाही उतारने के लिए दो कप्तानों ने बगावत का बिगुल बजा दिया। दोनों ने आईजी के काले चिट्ठों का पुलिंदा बनाकर पुलिस मुख्यालय से लेकर गृह विभाग को भेजा है। उधर आईजी ने दोनों कप्तानों के जिलों के विभीषण रूपी टीआई से उनकी कुंडली बनवाकर भेज दी। गृह विभाग के मुखिया ने खाकी का मतलब अनुशासन बनाए रखने के लिए इन सभी का बिस्तर बंधवाने का मूड बना लिया है। इनकी रिपोर्ट सीएम को भेजने की तैयारी है।