INDORE : 22 साल पहले मल्टी तोड़ने की अजब-गजब कहानी, अधिकारियों की तिकड़म अब पड़ रही भारी

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The Sootr CG
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INDORE : 22 साल पहले मल्टी तोड़ने की अजब-गजब कहानी, अधिकारियों की तिकड़म अब पड़ रही भारी

संजय गुप्ता, INDORE. 23 जून 2000 को मनोरमागंज में तोड़ी गई भार्गव परिवार की प्रिंसेस पैराडाइज मल्टी को तोडने के पीछे की कहानी अधिकारियों की तिकड़म के साथ ही, कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और अपने आकाओं को खुश करने की कोशिश और खुद की पावर दिखाने की कहानी है। आइए देखते हैं, कैसे तीनों बिंदु एक साथ चले।



राजनीतिक आकाओं को खुश करने की पहल



इस जमीन के पास ही रुचि सोया के मालिक सुरेश शाहरा की भी जमीन है। शाहरा पूर्व सीएम अर्जुन सिंह के खास माने जाते थे, साल 2000 में सीएम दिग्विजय सिंह थे। कलेक्टर मनोज श्रीवास्तव सीएम के खास। जब उनके पास ये बात पहुंची की शाहरा मल्टी बना रहा है और ये नजूल की जमीन है, इसे तोड़ेंगे तो भोपाल तक संदेश अच्छा जाएगा। ये बात जंच गई और शाहरा के साथ ही इसी सर्वे नंबर से जुड़े अलग-अलग पांचों प्लॉट मालिकों को नोटिस थमा दिए। शाहरा के खिलाफ फैसला भी कर दिया अतिक्रमण हटाने का। इसी फैसले को मौके पर कलेक्टर के साथ ही अन्य अधिकारियों द्वारा मौके पर बिना जांचे ही पास में बनी भार्गव की मल्टी को उड़ा दिया गया, स्टे मिल गया तो भी किसी की कोई सुनवाई नहीं की गई, स्टे लेकर आए भार्गव परिवार को मौके पर मौजूद अधिकारियों ने ये कहकर टरका दिया कि ये तहसीलदार नजूल के लिए हैं, मैं तो कानून व्यवस्था के लिए यहां आया हूं। आप कलेक्ट्रेट जाकर ऑर्डर दो, वो भागे-भागे वहां गए लेकिन कलेक्ट्रेट में प्रवेश ही नहीं करने दिया गया और मल्टी टूट गई। क्योंकि बड़े लोगों को यही लगता रहा कि वो तो शाहरा की मल्टी तोड़ रहे हैं। उन्होंने अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत होती दिखी।



अधिकारियों की तिकड़म, बैकडेट में आदेश



मार्च 1999 में भार्गव परिवार की जमीन पर मल्टी बना रहे डेवलपर विनोद ललवानी को नोटिस नजूल तहसीलदार कोर्ट से आया कि यह जमीन नजूल की है और अवैध अतिक्रमण कर मल्टी बनाई जा रही है, जवाब दीजिए। अप्रैल 1999 में जवाब दे दिया गया। कानूनी सुनवाई जारी रही। फिर एक नोटिस तहसीलदार नजूल एचएस खरे (इनका निधन हो चुका) आया कि सात जून को आपको अंतिम सुनवाई का अवसर दे रहे हैं। आश्चर्यजनक तथ्य ये कि इसमें पक्षकार की ओर से वकील पेश हुए और उन्होंने 12 जून की तारीख भी ली। सुनवाई चल रही थी कि 23 जून की सुबह इन्हें मल्टी में रह रहे रहवासी से फोन आता है कि यहां दल आया है और मल्टी में ड्रिल कर रहा है। चिंतन भार्गव बताते हैं हम सभी भागे-भागे पहुंचे और बताया कि हमारी सुनवाई चल रही है लेकिन कहा गया कि आपके खिलाफ तो मार्च 2000 में ही आदेश हो चुका है। हम कोर्ट गए स्टे लेकर आए, लेकिन तत्कालीन अतिरिक्त कलेक्टर आरसी पटेल ने स्टे लेने से मना कर दिया कि ये तो तहसीलदार नजूल के नाम पर है आप कलेक्ट्रेट जाकर उन्हें दो हम तो लॉ एंड ऑर्डर के लिए आए हैं। मौके पर अतिरिक्त कलेक्टर नीरज मंडलोई भी थे, एडीएम के तौर पर मनीष सिंह (वर्तमान कलेक्टर) भी मौजूद थे। बाद में कुछ दिन बाद हमें 14 मार्च 2000 का पारित आदेश दे दिया गया, जिसमें अतिक्रमण हटाने का आदेश था। ये आदेश बैकडेट में बना था, क्योंकि साफ है यदि अंतिम सुनवाई 7 जून को लगा रहे हैं तो आदेश मार्च का कैसे हो सकता है। ये इसलिए क्योंकि 23 जून को मल्टी तोड़ी तो कम से कम 40 दिन पहले का आदेश जरूरी था, इसलिए आदेश पुराना बनाया गया लेकिन भूल गए कि अंतिम सुनवाई का पत्र जारी कर चुके हैं।



राज टावर के बाद अवैध बिल्डिंग की मुहिम चाहते थे कलेक्टर



तत्कालीन कलेक्टर मनोज श्रीवास्तव कुछ माह पहले ही संघवी परिवार का प्रसिद्ध अवैध निर्माण राज टावर तोड़ चुके थे, इससे पूरे प्रदेश और देशभर में उनके नाम का डंका बजने लगा था। ये उस समय की सबसे चर्चित कार्रवाईयों में से एक थी। इसके बाद तो उन्होंने अवैध बिल्डिंग को चिन्हित करने की मुहिम चला दी। ऐसे में किसी ने उन्हें शाहरा की जमीन की जानकारी दी और फिर कलेक्टर ने अधिकारियों को इस मुहिम में लगा दिया, लेकिन अधिकारी से लेकर कलेक्टर तक इस दौरान शाहरा की जमीन कौनसी और भार्गव की कौनसी ये भौतिक सत्यापन करना ही भूल गए।



नगर निगम से भी नक्शा पास जमीन नजूल की नहीं



ये जमीन सिटी इम्प्रूवमेंट बोर्ड की थी, जो बाद में भार्गव परिवार के नाम पर हुई। यहां सारी जमीन लीज पर आवंटित हुई थी। पहले यहां भार्गव परिवार ने मकान बनाया था, बाद में 6 अप्रैल 1999 को नगर निगम से मल्टी का नक्शा भी पास हुआ और इसके बाद भार्गव परिवार ने डेवलपर बॉम्बे कंस्ट्रक्शन कंपनी विनोद लालवानी को यहां मल्टी बनाने का काम दिया। प्रशासन से सारे नोटिस भी ललवानी के नाम पर आए थे, उन्होंने भार्गव परिवार की एक बात भी नहीं सुनी और यही कहा सिटी इन्प्रूवमेंट बोर्ड द्वारा लीज पर दी गई जमीन पर ये सर्वे नंबर दर्ज ही नहीं है लेकिन शासकीय अभिलेख में दर्ज नजूल जमीन में ये सर्वे नंबर दर्ज है। इसलिए अतिक्रमण है।



नगर निगम से झूठी जानकारी देने का मामला भी हुआ खारिज



बाद में प्रशासन ने एक और शिकायत कराई कि भार्गव परिवार ने नगर निगम को झूठी जानकारी देकर मल्टी का नक्शा पास कराया लेकिन निगम की जांच में पाया गया कि भार्गव परिवार ने सभी सत्यापित जानकारी दी थी।



तत्कालीन एडीएम ने समझाया था गलत है जानकारी



चिंतन भार्गव ने बताया कि वर्तमान कलेक्टर मनीष सिंह जो उस समय एडीएम थे उन्हें जमीन की सही जानकारी थी, इसलिए उन्होंने कलेक्टर श्रीवास्तव को बताया भी था लेकिन उनकी नहीं सुनी गई।


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