GWALIOR : बीजेपी बनाम सिंधिया ,पंचायत चुनाव से निकलकर संघर्ष अब सोशल मीडिया में छाया ,पढ़ें पूरा किस्सा

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Dev Shrimali
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GWALIOR :  बीजेपी बनाम सिंधिया ,पंचायत चुनाव से निकलकर संघर्ष अब सोशल मीडिया में छाया ,पढ़ें पूरा किस्सा

GWALIOR.  पहले कांग्रेस में दिखाई देने वाली बर्चस्व की लड़ाई का आखाड़ा अब बीजेपी बन गयी है। जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया ( JYOTIRADITY SCINDIA )  कांग्रेस की कमलनाथ ( KAMAL NATH ) के नेतृत्व वाली सरकार गिराकर बीजेपी में आये है उन्होंने अंचल में बीजेपी के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक भयभीत कर रखा है। संगठन से लेकर स्थानीय निकाय चुनाव और सत्ता में भागीदारी में अब सब कुछ सिंधिया के हिसाब से हो रहा है लिहाजा बीजेपी नेताओं में खलबली है। ग्वालियर के स्थानीय निकाय (LOCAL BODY ) के चुनावों में इमरती देवी ने जिस दबंगई से नगर पालिका और परिषदों पर बीजेपी के अधिकृत प्रत्याशियों की जगह अपने प्रत्याशियों को जीतकर यह भय और बढ़ाया और अब यह जंग बड़े नेताओं तक पहुँच गयी। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने रेलवे हॉकी स्टेडियम पर हुए एस्ट्रोटर्फ के जीर्णोध्दार काम का उदघाटन  कर दिया तो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर के बेटे सोशल मीडिया पर लिखा यह काम उनके पिता ने स्वीकृत कराया। पिता का काम पूरा हुआ।



हर जगह संघर्ष



सिंधिया के आने के पहले इस अंचल में केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (NARENDR TOMAR ), गृहमंत्री (HOME MINISTER ) डॉ नरोत्तम मिश्रा ,सांसद विवेक नारायण शेजवलकर जैसे नेताओं का एकछत्र राज्य था। चूंकि इस अंचल में बीजेपी की जड़ें जनसंघ के जमाने से ही काफी गहरीं थी और संगठनात्मक ढांचा मजबूत था लिहाजा सामान्यतौर पर सत्ता हो या संगठन ,सभी से जुड़े मुद्दे आपस में ही तय करके निपटा लिए जाते थे। लेकिन अब हालात एकदम बदले हुए है। कांग्रेस के बड़े नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद बनी राज्य की सरकार के बावजूद ग्वालियर -चम्बल  अंचल में बीजेपी के नेता से लेकर कार्यकर्ता तक हांसिये पर चले गए हैं। प्रशासनिक ताना -वाना ठीक बैसा ही है जैसा कांग्रेस के समय रहता था। सिंधिया  के इर्द -गिर्द। नयी सरकार बनने के बाद जो भी नियुक्तियां संगठन में हुई उनमें से पच्चीस फीसदी पर सिंधिया समर्थक काबिज हो गए। निगम मंडल में जितनी नियुक्तियां हुईं उनमें से फिलवक्त सभी नाम  सिंधिया समर्थकों के  ही रहे उनमें बीजेपी का एक भी नेता स्थान नहीं पा सका। ग्वालियर नगर निगम में 66 पार्षदों के टिकट में से लगभग बीस सिंधिया समर्थकों के खाते में गए और इस घमासान का नतीजा ये रहा कि बीजेपी 57 साल बाद ग्वालियर नगर निगम में मेयर पद पर करारी हार के दंश से गुजरी। इसके बावजूद सभापति पद अगर बीजेपी के मनोज तोमर को मिला तो बदले में सिंधिया ने नेता प्रतिपक्ष का पद अपने समर्थक हरी पाल को दिलवाकर अपनी ताकत का अहसास करवाया।



पंचायत और निकायों में रहा घमासान



सिंधिया बनाम बीजेपी नेताओं के बीच का घमासान तब खतरनाक मोड़ पर आ गया जब नगर परिषद् और नगर पालिकाओं के साथ जिला पंचायत के चुनाव हुए। सिंधिया समर्थक पूर्व मंत्री जिन्हे उप चुनाव हारने के बाद सिंधिया ने लघु उद्योग निगम का अध्यक्ष बनवाकर केबिनेट मंत्री का दर्जा दिलवाया है ,इमरती देवी ने डबरा नगर पालिका में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के चुनाव में गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा के साथ बीजेपी को ही चुनौती दे डाली। इमरती यहाँ से पहले ही पार्षदों को ले उड़ीं और दिल्ली में सिंधिया के सामने परेड करा दी। यहाँ बीजेपी ने अपने प्रत्याशी लिखित में जारी किये। इसमें अध्यक्ष पद पर इमरती देवी का और उपाध्यक्ष पद पर बीजेपी के पार्षद का नाम घोषित हुआ। अध्यक्ष पद पर तो सबने इमरती देवी के प्रत्याशी को वोट दे दिए जिससे वे भारी बहुमत से जीत गए लेकिन जैसे ही उपाध्यक्ष का चुनाव हुआ उसमें क्रॉस वोटिंग हुई और कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हो गयी। इसको लेकर इमरती पर उंगलियां उठ ही रहीं थी और पूरी बीजेपी हतप्रभ थी तब अचानक इमरती ने सबको चौंका दिया जब चुनाव के महज आधा घंटे बाद जीते कांग्रेस नेता के बीजेपी में शामिल होने की घोषणा कर दी। ख़ास बात ये कि इसके बाद बीजीपी ग्रामीण के जिला अध्यक्ष कौशल शर्मा ने कहाकि उन्हें इस बारे में पता ही नहीं है और वे क्रॉस वोटिंग करने वालों की तलाश कर उनके खिलाफ कार्यवाही करेंगे। उपाध्यक्ष के बीजेपी में शामिल होने पर उन्होंने अनभिग्यता जाहिर की।

इसके बाद जिला पंचायत के चुनाव में हालाँकि इमरती देवी अपने समर्थक  सदस्यों को साथ लेकर सिंधिया के पास गयीं लेकिन इस बार नरोत्तम मिश्रा  समर्थक जिला अध्यक्ष कौशल शर्मा और नरेंद्र तोमर समर्थक उद्यानिकी मंत्री भारत सिंह ने आपस में एकता कर ली और इमरती को केंडिडेट ही खड़ा नहीं करने दिया। इससे नाराज इमरती समर्थक वोट डालने ही नहीं गए और चुनाव निर्विरोध हो गया। लेकिन इसके बाद आंतरी,बिलौआ ,पिछोर ,मोहना और भितरवार नगर परिषदों में सिंधिया समर्थकों ने बीजेपी को फटकने भी नहीं दिया और अपने समर्थकों को जीत दिला दी। पिछोर में अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ जब इमरती ने अपना प्रत्याशी जीता दिया तो बीजेपी  के कार्यकर्ताओं ने उनके मुरादाबाद के नारे भी लगाए। इससे उन्होंने उन्हें सरेआम धमकाते हुए कहाकि अगर किसी का मुंह चलेगा तो किसी के हाथ भी चलेंगे। इसका वीडियों खूब वायरल हुआ।



अब तोमर बनाम सिंधिया



लेकिन अब यह लड़ाई सिर्फ कार्यकर्ताओं तक सीमित नहीं रही। इसके किरदार दिल्ली वाले भी बन गए। सोशल मीडिया पर यह जंग फिलवक्त खूब छाई हुई है। इसकी वजह  बना रेलवे हॉकी स्टेडियम में ख़राब हो गयी एस्ट्रोटर्फ के जीर्णोध्दार के बाद का उदघाटन। इसका उदघाटन केंद्रीय नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया।  इस मौके पर सांसद विवेक नारायण शेजवलकर तो मौजूद रहे लेकिन शहर में मौजूद होते हुए भी केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इसमें शिरकत करने नहीं पहुंचे । मेयर श्रीमती डॉ शोभा सिकरवार को तो इसमें आमंत्रण ही नहीं दिया गया जबकि प्रॉटोकॉल के अनुसार उन्हें आमंत्रण दिया ही जाना चाहिए था। इसके उदघाटन के समय सिंधिया ने हॉकी स्टिक से गोल भी किया और स बात का स्मरण भी कराया कि उनके स्वर्गवासी पिताजी माधव राव सिंधिया ने रेलमंत्री रहते इसमें एस्ट्रोटर्फ बिछवाया था।



तोमर के बेटे का निशाना



इस समारोह के तत्काल बाद ही केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर रामू की सोशल मीडिया पर डाली गयी एक पोस्ट से अंचल की बीजेपी राजनीति की प्याली में तूफ़ान आ गया। सामान्यतौर पर पर रामू तल्ख़ टिप्पणियां नहीं करते है और सादगी से ही बात करते है।  वे हॉकी इण्डिया के एसोसिएट वाइस प्रेजिडेंट भी है। उन्होंने अपनी पोस्ट में में नए एस्ट्रोटर्फ की उपलब्धि को तोमर की उपलब्धि बताया। उनकी पोस्ट में कहा गया कि - ग्वालियर के सांसद के रूप में नरेंद्र तोमर ने तत्कालीन खेलमंत्री विजय गोयल के समक्ष एलएनआईपी के एक कार्यक्रम में यह मामला उठाकर इसकी जीर्णोद्धार की घोषणा करवाई थी। यह घोषणा 13 अप्रैल 2017 को की गयी थी। इसके बाद जब मीडिया ने उनसे पूछा तो उन्होंने कहाकि जो हकीकत है वही लिखा है।



ग्वालियर में रहे लेकिन कार्यक्रम में नहीं गए तोमर



केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र तोमर इस आयोजन के एक दिन पहले ही ग्वालियर पहुँच गए थे। वे  समर्थकों के घर भी गए लेकिन इस आयोजन में नहीं गए। जब उनसे इस बावत पूछा तो उन्होंने भी दो टूक शब्दों में कहाकि - काम तो मैंने कराया है ,उदघाटन कोई भी कर सकता है। आयोजन में न जाने को लकर उन्होंने कहाकि वे दो  दिन पहले ही कार्यक्रम में न जाने को लेकर मना कर चुका था।


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