दमोह में पहले निकली थी दूध की धार, फिर निकली थी मां हरसिद्धी की प्रतिमा, एक झोपड़ी में हैं विजरामान

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Rajeev Upadhyay
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दमोह में पहले निकली थी  दूध की धार, फिर निकली थी मां हरसिद्धी की प्रतिमा, एक झोपड़ी में हैं विजरामान

Damoh. मां की महिमा अपरंपार है वह अपने भक्तों को दर्शन देने कहीं से भी उनके बीच प्रकट हो जाती हैं। ऐसी ही एक मां हरसिद्धि की दिव्य प्रतिमा दमोह से 80 किमी दूर एक झोपड़े में विराजमान है। कहा जाता है एक पत्थर के नीचे दूध की धार निकली थी उसके नीचे यह प्रतिमा प्रकट हुई थी और सबसे बड़ी बात मातारानी की सेवा बुजुर्ग आदिवासी दंपत्ति कर रहे हैं।



ऐसे हुई थी प्रतिमा प्रगट




जिला मुख्यालय से 80 किमी दूर तेंदूखेड़ा ब्लाक के ग्राम धनगौर में मां हरसिद्धी की प्रतिमा विराजमान है।  जहां पिछले 28 वर्षों से मां भक्तों को दर्शन दे रही हैं। यहां एक दंपत्ति पिछले 25 वर्षों से मातारानी की सेवा करते आ रहे हैं। माता की प्रतिमा 28 वर्ष पूर्व जंगल में एक पत्थर के नीचे से दूध की धार के नीचे से निकली थी। माता की पूजा करने वाले परम आदिवासी और उनकी पत्नी ने बताया कि पत्थर के नीचे से दूध निकलने की जानकारी ग्रामीणों को लगने के बाद यहां हजारों लोगों की भीड़ इस नजारे को देखने उमड़ पड़ी थी। ग्रामीणों ने जब पत्थर उठाया तो मां हरसिद्धी की छोटे आकार की प्रतिमा मिली थी। जिसे बाद में उसी जगह स्थापित कर दिया और बाद में यहां पूजन, पाठ के साथ मेला लगना शुरू हो गया।दूर, दराज के लोगों ने यहां आकर जो मन्नत मांगी वह पूरी हुई। हालांकि कुछ समय बाद दूध की धारा बंद हो गई। धनगोर में आज भी यह परंपरा है कि किसी भी त्यौहार या आयोजन के पहले माता हरसिद्धी का पूजन होता है।



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23 वर्ष बाद मिला उजाला




इस सिद्ध स्थान पर पति- पत्नी का एक जोड़ा पिछले 25 वर्ष से रह रहा है हालांकि आज दोनों बुजुर्ग अवस्था में पहुंच गये हैं। महिला रामरानी आदिवासी ने बताया वह 25 वर्षों से माता की सेवा कर रही हैं। माता गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर बिराजी हैं। जहां न बिजली थी, न पानी अंधेरे में महिला अपने पति के साथ रहती थी, लेकिन दो वर्ष पूर्व जबेरा विधायक धर्मेद्र सिंह लोधी ने इस स्थान पर लाइट लगवा दी। इसलिये अब स्थान पर उजाला रहने लगा है। महिला के साथ उनके पति परम आदिवासी भी माता की सेवा करते आ रहे हैं और नवरात्र में पंडा बनकर जवारे बोते हैं। उन्होंने बताया

कि देवी माता की कृपा से वह इस दुर्गम स्थान पर 25 वर्षाे से रह रहे हैं। मां की महिमा अपरंपरा हैं, लेकिन दुख इस बात का है कि आज भी मातारानी झोपड़ी में विराजान हैं। यहां कई बड़े आयोजन होते हैं, लेकिन लोगों के सहयोग न करने से यहां सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।



 ग्रामीणों की माने तो धनगोर के जंगल में बिराजी हरसिद्धि माता का स्थान सच्चा है। यहां मन से कोई मन्नत मांगता है तो उसकी मनोकामना पूरी होती है। बहेरिया ग्राम के

धनगोर से लगा हुआ है वहां के मालगुजार सुभाष बड़कुल ने बताया कि हरसिद्धी माता की कृपा अपरंपार है। 28 वर्ष पूर्व मैने बेटी की मन्नत की थी उसके एक वर्ष बाद मेरे घर बेटी ने जन्म लिया जो आज 27 वर्ष की हो गई है।


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