दमोह में आज भी निभाई जा रही शेर नृत्य की परंपरा, शेर लोकनृत्य प्रतियोगिता का हुआ आयोजन

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Rajeev Upadhyay
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दमोह में आज भी निभाई जा रही शेर नृत्य की परंपरा, शेर लोकनृत्य प्रतियोगिता का हुआ आयोजन

Damoh. बुंदेलखंड का दमोह जिला अपनी प्राचीन परम्पराओं को सहेजने के लिए भी पहचाना जाता है। बुंदेलखंड में जिस तरह से राई नृत्य की परंपरा है उसी तरह दोनो नवरात्र पर्व में शेर नृत्य की परंपरा भी अद्भुत है। आज यह लोक कला विलुप्त होती जा रही है, लेकिन दमोह में इस शेर नृत्य की परंपरा को जीवित रखने काफी प्रयास किया जा रहा है। 



युवा जागृति मंच द्वारा शेर नृत्य का आयोजन किया गया। लगभग 12 वर्षों से युवा जागृति मंच द्वारा बुंदेलखंड की विलुप्त होती प्राचीन लोककला को संरक्षित करने के लिए नवरात्रि की सप्तमी के दिन प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है। जिसमें प्रतिभागी माता के वाहन शेर का रूप रखकर मनमोहन नृत्य करते हैं। कीर्ति स्तंभ के पास आयोजित कार्यक्रम में सागर के दीवाले के प्रमुख दिलीप धारू एवं गड़रयाउ दीवाले के प्रमुख रघुनंदन पंडा के मार्गदर्शन में कलाकारों ने अपनी सुंदर प्रस्तुति दी। जिसमें शेर और शिकारी का खेल और आग में से शेरों का निकलना एवं माता रानी की आरती मुख्य आकर्षण का केंद्र रही। 



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कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में पहुंचे दमोह विधायक अजय टंडन ने आयोजन की सराहना करते हुए कहा की प्राचीन कला को संरक्षित करने और इन कलाकारों को प्रोत्साहित करने यह पहल बहुत ही सराहनीय है। शासन स्तर पर भी इस कला को प्रोत्साहित करने के प्रयास किए जाने चाहिए। देर रात तक चली प्रस्तुति में सैकड़ों की संख्या में दर्शकों ने विशेष रूप से बच्चों ने इस नृत्य का आनंद लिया। 



स्वर्गीय चंद्र शेखर पाठक की स्मृति में आयोजित इस कार्यक्रम में युवा जागृति मंच के नितिन मिश्रा, राजकुमार कुशवाहा, नरेश विश्वकर्मा, अजय सरवरिया सहित कई गणमान्य सदस्यों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम के अंत में प्रतिभागियों को मेडल एवं शील्ड से अतिथियों द्वारा सम्मानित किया गया।


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