उज्जैन की माता हरसिद्धि का विश्व प्रसिद्ध मंदिर, जागृत शक्तिपीठों में है शुमार

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उज्जैन की माता हरसिद्धि का विश्व प्रसिद्ध मंदिर, जागृत शक्तिपीठों में है शुमार

नासिर बेलिम रंगरेज, उज्जैन. जहां नित्य प्रतिदिन हजारों भक्त झुकाते हैं शीश, देवी मां जहां देती है मनोवांछित आशीष। यहां है माता का शक्तिपीठ। शक्तिस्वरूपा साक्षात हैं, जहां विराजित। ऐसी ही महिमा है, नगर के विख्यात हरसिद्धि मंदिर की है। माना जाता है कि यहां देवी सति की कोहनी गिरी थी। तभी से यह जागृत पीठ अस्तित्व में है। महाकाल मंदिर से पश्चिम की ओर प्राचीन रूद्रसागर के पार ऊंचे स्थान पर मां हरसिद्धि का मंदिर है। जहां बड़ी संख्या में प्रतिदिन भक्त दर्शनलाभ लेते हैं। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं को अद्भुत और अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है। 



जागृत शक्तिपीठों में एक



पुराणों में वर्णित मान्यता के अनुसार जब माता सती के शव को श्रीविष्णु के आदेश पर शिवजी का मोहभंग करने की दृष्टि से सुदर्शन चक्र द्वारा विच्छेदित किया गया, तब देवी मां की कोहनी उज्जैन स्थित इस क्षेत्र में गिर गई। शक्तिपीठ के रूप में यह मंदिर विकसित हुआ। 



सजती हैं दीपों की मालाएं



मंदिर परिसर में दीपों की मालाएं भी आकर्षण का केंद्र हैं। इन दीपों की मालाओं को दो स्तभों पर बनाया गया है, जिसमें से एक शिव व एक शक्ति का प्रतीक है। यूं तो नवरात्रि के समय इन दीपों की मालाओं को प्रज्वलित किया जाता है लेकिन अधिकांश समय दीपों की मालाओं को प्रज्वलित करने वालों की लंबी कतार के चलते दीपों की मालाओं को बारह माह ही प्रज्वलित किया जाता है। दोनों दीपों की मालाओं में कुल ग्यारह सौ दीपक हैं। माता हरसिद्धि के दरबार में दूर-दूर से भक्त आते हैं। मन्नत मांगते हैं और जब मन्नत पूरी होती है तो भक्तों द्वारा माता के मंदिर में आकर इन दीपों की मालाओं को रौशन करवाया जाता है। इन दीपों की मालाओं को रौशन करवाने में आज साढ़े आठ हजार रुपए का खर्चा होता है। मंदिर मे विशेष टीम है, जो इन दीपकों में तेल और बाती रखती है। उसके बाद महज दस मिनट में ऊपर से नीचे तक की दीपकों को एक साथ रौशन किया जाता है। इन दीप मालिकाओं को रौशन करवाने के लिए भक्तों द्वारा नंबर लगाया जाता है। भक्त दीपों की मालाओं के प्रज्वलन की व्यवस्था कर मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। 



विशेष आरती



माता हरसिद्धि की दिव्य प्रतिमा का नवरात्रि पर विशेष श्रृंगार किया जाता है। सुबह और शाम विशेष पूजन-अर्चन किया जाता है। उसके बाद शाम सात बजे माता हरसिद्धि की भव्य आरती होती है। ढोल नगाड़ों के साथ माता के दरबार में नवरात्रि के नौ दिनों में विशेष आरती होती है। इस आरती में शामिल होने के लिए भक्तों की भारी तादात मंदिर में मौजूद रहती है।



समय समय पर होती है आराधना



वैसे तो माता हरसिद्धि के दरबार में रोजाना भक्तों का मेला लगता है लेकिन नवरात्रि में इनकी संख्या खासी बढ़ जाती है। नवरात्रि में माता हरसिद्धि के दरबार में नौ दिनों तक विशेष अनुष्ठान चलते हैं। देश-विदेश से भक्त आते है और माता हरसिद्धि से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। माता हरसिद्धि भी अपने दरबार में आने वाले भक्तों की मुरादें पूरी करती है। इस अवसर पर कन्यापूजन और भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। 



विक्रमादित्य की आराध्य देवी 



देवी मां को सम्राट और न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी कहा जाता है। किंवदंती है कि यहां देवी को विक्रमादित्य द्वारा प्रसन्न करने के उद्देश्य से करीब 11 बार अपना शीश चढ़ाया गया है। विक्रमादित्य इन्ही माता की आराधना कर चक्रवती सम्राट बने थे। 




 


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