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भोपाल. चौथी पारी में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने आप को बदला हुआ और सख्त प्रशासक बताने का प्रयास तो जम कर रहे हैं। क्या, अफसरशाही पर उसका असर नजर आता है ? अफसरों के बीच वो पूरे रौब के साथ कहते हैं कि काम नहीं करने वाले अफसर टांग दिए जाएंगे। ताजा-ताजा जुमला ये है कि जो सरकार के हिसाब से काम नहीं करेंगे, वो बदल दिए जाएंगे। जब सीएम अफसरों को ये चेतावनी दे रहे थे, तभी मध्यप्रदेश के ही एक आईएएस अधिकारी ट्वीट कर देश-प्रदेश में बवाल काट रहे थे। ये अफसर है नियाज खान। इन दिनों द कश्मीर फाइल्स फिल्म जितनी सुर्खियां लूट रही है, उतनी ही सुर्खियों को खींचने में मध्यप्रदेश के ये प्रमोटी आईएएस भी लगे हुए हैं। द कश्मीर फाइल्स के बहाने वो समाचार पत्रों में खबर छपवाकर सीधे पीएम मोदी से मुखातिब हो गए। गृह मंत्री ने तो मौका लपककर कार्रवाई की बात कही लेकिन सीएम बंद कमरे में चेतावनी ही देते रह गए। अब सवाल तो उठना लाजमी है कि शिवराज सरकार में कब तक अफसर यूं ही बेलगाम रहेंगे। क्या चौथी पारी में अफसरशाही पर शिवराज की पकड़ ढीली हो गई है।
चर्चाओं में हैं नियाज खान: लोक निर्माण विभाग के उपसचिव नियाज खान का नाम आज की तारीख में उतना ही जाना माना है, जितना द कश्मीर फाइल्स मूवी का। खासतौर से एमपी में दो ही चीजों की चर्चा है, सियासी गलियारों में द कश्मीर फाइल्स गूंज रही है, तो मंत्रालय की छुटपुट बैठकों में नियाज खान की बेबाकी का जिक्र हो रहा है। वैसे तो विवाद और नियाज का गहरा नाता है लेकिन द कश्मीर फाइल्स के मामले में नियाज खान ने हद ही कर दी। वो पीएम नरेंद्र मोदी तक पहुंच गए। फिलहाल जानिए द कश्मीर फाइल्स और नियाज अहमद कैसे विवादों की कश्ती पर सवार हुए। फिल्म रिलीज होने के बाद नियाज खान ने ट्वीट किया कि भारत के कई राज्यों में बड़ी संख्या में मुसलमानों की हत्या हुई हैं। उन्हें दिखाने के लिए एक फिल्म बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मुसलमान कीड़े-मकोड़े नहीं, बल्कि इंसान हैं और देश के नागरिक हैं। नियाज खान ने द कश्मीर फाइल्स के निर्माता विवेक अग्निहोत्री से फिल्म से होने वाली पूरी कमाई दान करने की भी अपील की है। खान ने कहा कि ये महान दान होगा और कश्मीरी पंडितों के बच्चों की शिक्षा और उनके लिए कश्मीर में घरों के निर्माण के लिए काम आएगा।
IAS ने मोदी से मांगी कश्मीर में पोस्टिंग: विवेक अग्निहोत्री तक पहुंच कर ही नियाज रुक जाते तो ठीक था। नियाज नहीं माने और अखबार नवीसों से बात करते हुए उन्होंने ये तक कह दिया कि पीएम मोदी उन्हें कश्मीर में पोस्टिंग दे दें, ताकि वो कश्मीरी पंडितों की सेवा करें। नियाज की ये खबर प्रकाशित होते ही सरकार से लेकर अफसरशाही में खलबली मच गई। अब तक नियाज को हल्के में ले रहे मंत्रियों में उथल-पुथल थी। मामला अब बस से बाहर हो चुका था। बात पीएम मोदी तक पहुंच चुकी थी। अगर अब भी कार्रवाई न करते तो कब करते। तुरंत नियाज पर कार्रवाई करते हुए नोटिस जारी कर दिया गया।
सीएम शिवराज ने देरी कर दी: इस घटनाक्रम के चंद ही दिन बाद अफसरों से एक वर्चुअल मीटिंग में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने चेतावनी दी। चेतावनी में कहा कि जो अफसर सरकार के हिसाब से नहीं चलेंगे, वो बदल दिए जाएंगे। क्या शिवराज सिंह चौहान ये चेतावनी देने में कुछ लेट नहीं हो गए। हो सकता है कि ये चेतावनी सिर्फ नियाज खान वाले एपिसोड के बाद इमेज पर लगे दाग को कवरअप करने के लिए ही न हो। उसके बावजूद क्या शिवराज ने बहुत देर नहीं कर दी।
कार्रवाई क्यों नहीं हुई: ऐसे में सवाल उठता है कि नियाज खान को तब ही क्यों नहीं चेताया गया, जब उन्होंने पहली बार फिल्म पर ट्वीट किया था। कोड ऑफ कंडक्ट की याद तब क्यों नहीं आई, जब उन्होंने फिल्म पर पहला ट्वीट किया था। क्या भारतीय सेवा के एक अफसर का हिंदू और मुस्लिम के हवाले ट्वीट करना सरकार ने सही समझा। नोटिस जारी होने के बाद शिवराज सरकार में नियाज खान पर आगे क्या कार्रवाई हुई।
सवाल तो ये भी हैं: शिवराज सरकार ही क्यों सवाल तो ये भी उठता है कि नियाज से पहले जो अफसर बेवजह की बयानबाजियां करते रहे। उनके पीछे वजह चाहे जो भी रही हो, उसके बावजूद उन पर लगाम कसने के लिए शिवराज सरकार में क्या फैसले किए गए। सख्त फैसले लेने के नाम पर या सख्ती दिखाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ज्यादातर नए-नए जुमलों का प्रयोग ही करते नजर आ रहे हैं। गाड़ दूंगा, टांग दूंगा और अफसर बदल दिए जाएंगे। जैसी सख्त जुमलेबाजी की लंबी लिस्ट है। अफसरशाही इससे बेअसर ही नजर आती है। एक नियाज खान ही नहीं, प्रदेश के और भी कई अफसर हैं, जो शिवराज सरकार के कंट्रोल से बाहर हैं। इसकी बानगी ट्वीट या किसी दूसरे सोशल मीडिया पर दिखाने से नहीं चूकते।
शिवराज सरकार में अफसरशाही हावी: शिव के राज में बेलगाम हो रही अफसरशाही के एक नहीं ढेरों उदाहरण हैं। पीएम मोदी को लेकर सोशल मीडिया पर बयानबाजी करने वाले नियाज अहमद अकेले नहीं हैं। उनसे पहले भी प्रदेश के कई आईएएस ऐसा कर चुके हैं। एक आईएएस तो सीएम की पत्नी साधना सिंह चौहान का जिक्र करने से भी नहीं चूका। अफसरशाही का ये आलम उस प्रदेश में है, जो बीजेपी का गढ़ माना जाता है। जिस प्रदेश में शिवराज ने सबसे लंबे समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड बनाया हो। उसके बावजूद अफसर उनकी पकड़ से बाहर नजर आते हैं। तीसरी पारी तक तो शिवराज पर ये टैग लग ही गया था कि शिवराज सरकार में अफसरशाही हावी है। इसका उदाहरण प्रदेश की सीनियर आईएएस दीपाली रस्तोगी को माना जा सकता है।
एक अंग्रेजी अखबार के लिए दीपाली रस्तोगी ने लेख लिखा, जिसमें नौकरशाहों के काम करने के तरीके पर ही सवाल उठा दिए। उस वक्त दीपाली रस्तोगी आदिम जाति कल्याण विभाग की आयुक्त थीं। उन्होंने लिखा राजनीतिक आका के बोलने से पहले ही अफसर उसकी इच्छा जान ले, उसके अमल के लिए तैयार हो जाए। नेताओं के डर से ऐसे अधिकारी मुंह नहीं खोलते। समाज सेवा करने के लिए बने आईएएस सेवा का व्यवहार ही नहीं करते।
दीपाली रस्तोगी का लेख इतने पर ही खत्म नहीं हुआ। उन्होंने आगे लिखा लोग हमारा सम्मान सिर्फ इसलिए करते हैं, क्योंकि हमारे पास नुकसान और फायदा पहुंचाने की ताकत होती है। हम लोगों की कोई दूरदृष्टि नहीं, नेताओं को खुश करने वाले निर्णय लेते हैं। व्यवस्था सुधारने के लिए दरअसल हम काम ही नहीं करते और यह डर रहता है कि व्यवस्था बेहतर कर दी तो कोई पूछेगा ही नहीं। लेटरल एंट्री के सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि नेताओं को खुश करने उनके हिसाब से काम करने, झूठ और सच को सही और गलत में अंतर खत्म करने से मूल विचार खत्म हो गए हैं। इस मामले पर जमकर बयानबाजी हुई। इस लेख से पहले एक लेख लिखकर दीपाली रस्तोगी पीएम मोदी के स्वच्छता अभियान और पीएम की सोच पर भी सवाल खड़े कर चुकी हैं।
स्वच्छता अभियान पर की थी टिप्पणी: दीपाली रस्तोगी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) भारत अभियान को औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त बताया था। अंग्रेजी अखबार में लिखे लेख में लिखा था, 'गोरों के कहने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुले में शौचमुक्त अभियान चलाया, जिनकी वॉशरूम हैबिट भारतीयों से अलग है।' उनके इस बयान के बाद काफी हलचल मची थी। इसके बाद सरकार ने नोटिस जारी कर उनसे जबाव मांगा था।
आईएएस लोकेश जांगिड़: दीपाली रस्तोगी के बाद दूसरा नाम आता है आईएएस लोकेश जांगिड़ का। साढ़े चार साल में आठ ट्रांसफर झेल चुके लोकेश जांगिड़ तो सीएम की पत्नी साधना सिंह को ही निशाने पर ले चुके हैं। एक तबादले के बाद जांगिड़ ने एक ग्रुप में बड़वानी कलेक्टर और मप्र के कुछ अफसरों के कामकाज पर बातें लिखीं। इसी चैट में उन्होंने साधना सिंह का जिक्र भी किया। वायरल चैट में आईएएस लोकेश कुमार जांगिड़ ने बड़वानी कलेक्टर शिवराज वर्मा का जिक्र किया। उन्होंने लिखा कि कलेक्टर शिवराज वर्मा पैसे नहीं खा पा रहे थे। ऐसे में उन्होंने सीएम शिवराज सिंह चौहान के कान भरे। दोनों एक ही किरार समुदाय से आते हैं। किरार समुदाय की सेक्रेटरी कलेक्टर की पत्नी हैं और मुख्यमंत्री की पत्नी किरार समाज की अध्यक्ष हैं। ये चैट वायरल हुई तो सरकार का गुस्सा भी जांगिड़ पर फूटा। उन्हें भी नोटिस कर सवाल जवाब हुए।
सीएए और एनआरसी पर ये कहा था नियाज ने: नियाज खान की तो बात ही क्या है। द कश्मीर फाइल्स पर टिप्पणी करने वाले नियाज खान उससे पहले भी कई बार अलग-अलग बयानबाजियों के चक्कर में विवादों में रहे हैं। सीएए-एनआरसी लागू होने के वक्त मंडला में बतौर कलेक्टर पदस्थ नियाज खान ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री मोदी से अपील की थी कि सीएए-एनआरसी के जरिए उन लोगों का विरोध होना चाहिए, जो सरकारी धन की चोरी करते हैं। खान ने कहा था कि भारतीय नागरिक होने के नाते आपसे निवेदन कर रहा हूं कि इस बात पर विचार करें। उन्होंने आगे लिखा था सच्चे मन से इसे लागू किया तो बहुत से सरकारी पद खाली हो जाएंगे। उन पदों पर ईमानदार लोगों को भर्ती कर देना चाहिए। ये वक्त की जरूरत है कि केवल ईमानदार लोगों को ही भारत का नागरिक होना चाहिए।
आश्रम वेब सीरीज और हिजाब मामले पर भी नियाज खान खामोश नहीं रहे। आश्रम वेब सीरीज में क्रेडिट न मिलने पर उनका मेकर्स से विवाद हुआ। हिजाब मामले पर नियाज की राय थी कि हिजाब सुरक्षा के साथ-साथ प्रदूषण से भी बचाता है।
नियाज खान अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम और उसकी प्रेमिका मोनिका बेदी पर किताब लिखने की इजाजत सरकार से मांग कर भी चर्चा में आ गए थे। अब मुसलमानों के नरसंहार पर किताब लिखने की प्लानिंग कर रहे हैं। ये तीनों वो आईएएएस हैं, जो पीएम मोदी से लेकर सीएम के परिवार तक को बयानबाजियों का हिस्सा बनाते रहे हैं। लेकिन इन पर नोटिस देकर जवाब मांगने से आगे कार्रवाई नहीं बढ़ी।
अफसरों की बयानबाजी: अफसरशाही का ये हाल कमलनाथ सरकार में भी था और शिवराज सरकार में भी। कमलनाथ काल में विपक्ष में बैठे शिवराज सिंह चौहान हमेशा अफसरशाही के हावी होने का आरोप लगाते आए। लेकिन जब कुर्सी घूम कर वापस उनके पास आई। तब भी हाल वही दिखाई दिए। कांग्रेस हो या बीजेपी अफसरों के मामले बयानबाजी से आगे ठोस कार्रवाई तक नहीं बढ़ सकी है। बयानबाजियों का दौर कुछ यूं है कि मामा तो दावा करते हैं कि वो फुल फॉर्म में हैं, गलती करने वाले बख्शे नहीं जाएंगे। उनके मंत्री कहते हैं कि अधिकारियों को सरकार की सुननी ही होगी। लेकिन न मामा का फुल फॉर्म अब तक दिखाई दिया है, न मंत्रियों का वो दबदबा नजर आ रहा है कि अफसरशाही काबू में नजर आए। दीपाली रस्तोगी, नियाज खान और जांगिड़ तीनों मामलों में यही हुआ। बयानबाजी खूब हुई, सख्त कार्रवाई का दम भी भरा गया लेकिन बात नोटिस पर खत्म हो गई।
अफसरशाही विपक्ष का विरोध: कांग्रेस भी अफसरशाही पर विरोध दर्ज करवाती है लेकिन विरोध की वो कोशिश भी हर बार फुस्सी बम ही साबित हुए। किरार समाज की अध्यक्ष के जरिए सीएम की पत्नी पर निशाना लगा रहे अफसर जांगिड़ पर कांग्रेस ने बयान दिया कि उनके इस बयान को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। शिवराज के बयानों पर कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा भी बार-बार बेलगाम अफसरशाही की तरफ इशारा कर चुके हैं। लेकिन दमदार विरोध दर्ज करवाने में कांग्रेस भी नाकाम ही रही है।
पुरानी बैठकों में शिवराज सिंह चौहान से जुड़ी पुरानी सुर्खियां देखिए। अमूमन हर बैठक के बाद यही खबर नजर आएगी कि अफसरों पर भड़के शिवराज। बात चाहें किसी बड़े प्रोजेक्ट से जुड़ी हो, बदहाल सड़कों की हो या फिर बच्चों को कुत्ते काटने का मामला हो। हर बैठक से शिवराज की नाराजगी बाहर सुनाई देगी। पर नतीजा वही ढाक के तीन पात।
हाल ही में शिवराज सरकार की चौथी पारी के दो साल पूरे हुए, तो बुलडोजर का रेला निकला। यूपी की तर्ज पर शिवराज सिंह चौहान को योगी आदित्यनाथ की तरह पेश करने की पूरी कोशिशें जारी हैं। मामा की छवि रखने वाले शिवराज एंग्री मैन की भूमिका में नजर आना चाहते हैं। वो कितने कामयाब हुए ये साफ नजर आ ही रहा है। 18 साल सत्ता में रहने के बावजूद शिवराज नौकरशाही में अपना डर नहीं बना सके। अब बचे हुए एक साल में योगी का मुकाबला कैसे कर सकेंगे।