इंद्रपाल सिंह, Hoshagabad. वैसे तो पचमढ़ी का नाम ही मन में उमंगें उफान मारने लगती हैं। मध्यप्रदेश का सबसे फेमस हिल स्टेशन। बारहों महीने देशी-विदेशी पर्यटकों की मौजूदगी में जिंदगी के पलों को रंगीन बनाने वाली हसीन वादियां। मगर आज यानी नागपंचमी के दिन सतपुड़ा की घनी वादियों का नेचर ही बदला-बदला सा नजर आता है। पर्यटकों की जगह पचमढ़ी की पहाडियां चढते हैं भक्त। पूरी पहाड़ी भक्ति रस में डूब जाती है और चारों ओर सुनाई पड़ते हैं केवल बाबा महादेव के जयकारे। वजह , पचमढ़ी का प्राचीन नागद्वारी मंदिर में नाग देवता के दर्शन। घने जंगलों में टाइगर रिजर्व के बीच से होने वाली करीब 30 किलोमीटर की इस पवि़त्र यात्रा के बाद मिलते हैं भोले नाथ और नागराज पद्म शेष के दर्शन। सैकड़ों सालों से मान्यता है कि इस सर्पीली पहाड़ी को चढ़ने से मिट जाता है कालसर्प दोष तो शिवलिंग पर काजल लगाते हैं पूरी हो जाती है मनोकामनाएं।
नागराज श्री पद्म शेष के होते हैं दर्शन
प्रदेश के नर्मदापुरम जिले अंतर्गत आने वाली सतपुडा की रानी यानी पचमढ़ी को लेकर कई किवदंतियां भी आदिकाल से जुड़ी हुई है। साल भर पर्यटन का केंद्र रहने वाली यहां की पर्वत श्रंखला धार्मिक नगरी में तब्दील हो गई है और इन दिनों पैर रखने की जगह नहीं है। खास बात यह है कि यहां लगा जमघट सैलानियों का नहीं, भोले बाबा के भक्तो का है। आज मंगलवार को नाग पंचमी के दिन तो यहां पहुंचने वालों की संख्या लाखों में पहुंच गई है। यहां मुख्य रूप से महाराष्ट्र, विदर्भ सहित देश के कई हिस्सों से लोग पहुंचते हैं। भक्त अपनी मन्नत पूरी करने यहाँ आए हैं। सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में हर-हर महादेव का जयघोष दुर्गम पहाड़ों और विपरीत मौसम पर भी भारी पड़ गया हे। 1 लाख से अधिक श्रद्धालु नागद्वारी यात्रा में चल रहे हैं। तीस किलोमीटर का दुर्गम सफर नागद्वारी यात्रा क्या बूढ़े और बच्चे और क्या महिलाएं सब पूरे जोश और जुनून के साथ नागराज श्री पद्म शेष के दर्शन करने दुर्गम रास्तों से अपनी यात्रा कर रहे हैं। यह नजारा हर नागपंचमी के पहले से दस दिनों तक बना रहता है। ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व से लबरेज यह मंदिर साल में केवल 10 दिन ही खुलता है।
मिनी अमरनाथ यात्रा, दो दिन में होती है पूरी
घने जंगल और खड़े पहाडों पर होने वाली इस धार्मिक या़त्रा को देश का मिनी अमरनाथ यात्रा भी कहा जाता है। यह नागद्वारी मेला कई किवदंती और कहानियो से भरपूर हे। इस मंदिर से जुड़ी कहानियां भी यात्रा में आये श्रद्धालुओं में नई ऊर्जा का संचार कर देती हैं। साल में केवल 10 दिन खुलने वाले इस मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए लोग हजारों किलो मीटर दूर से आते हे। पचमढ़ी में हर साल नागपंचमी पर मेला लगता है। नागद्वारी में लगने वाले इस मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। 16 किमी की पहाड़ी की पैदल यात्रा पूरी कर लौटने में भक्तों को दो दिन लगते हैं। नागद्वारी मंदिर की गुफा करीब 35 फीट लंबी है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग नागद्वार जाते हैं, उनकी मांगी गई मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। नागद्वारी की यात्रा करते समय रास्ते में श्रद्धालुओं का सामना कई जहरीले सांपों से होता है, लेकिन नागदेवता के भक्तों को यह जहरीले नाग कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
आम दिनों में वर्जित है प्रवेश
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र होने के कारण यहां आम स्थानों की तरह प्रवेश वर्जित होता है। श्रद्धालुओं को साल में सिर्फ एक बार ही 10 दिनों के लिए नागद्वारी की यात्रा और दर्शन का मौका मिलता है। जिसका लाभ लेने के लिए श्रद्धालु जान जोखिम में डालकर कई किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचते हैं। सावन के महीने में नागपंचमी के 10 दिन पहले से ही कई राज्यों के श्रद्धालुओं का आना प्रारंभ हो जाता है। दुर्गम जंगलों व पहाड़ियों में 10 दिनों तक चलने वाला नागद्वारी मेले में सुविधाओं की कमी भी रहती है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधाएं मुहैया करने का जिम्मा जिला प्रशासन के हाथो में रहता है। प्रशासन इंतजाम तो करता है, लेकिन हर साल यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या इतनी बढ़ जाती है कि सारे इंतजाम नाकाफी होते हैं। वहीं सुरक्षा की बात की जाए तो 750 से अधिक पुलिस के जवान मेले की सुरक्षा में लगे हुए हैं।
इसलिए कई पीढ़ियों से आ रहे हैं भक्त
इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि पहाड़ियों पर सर्पाकार पगडंडियों से नागद्वारी की कठिन यात्रा पूरी करने से कालसर्प दोष दूर होता है। नागद्वारी में गोविंद गिरी पहाड़ी पर मुख्य गुफा में शिवलिंग में काजल लगाने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नागद्वारी मंदिर की धार्मिक यात्रा को सैकड़ों साल हो गए हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु कई पीढ़ियों से मंदिर में नाग देवता के दर्शन करने के लिए आ रहे हैं। पचमढ़ी में 1959 में चौरागढ़ महादेव ट्रस्ट बना था। 1999 में महादेव मेला समिति का गठन हुआ था, जो अब मेले का संचालन करती है।