GWALIOR.स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 के परिणाम भी आ गए। ग्वालियर को नंबर एक पर लाने के दावे तो हवा हवाई हो गए बल्कि उसका स्तर और नीचे की तरफ खिसक गया। ख़ास बात ये है कि ग्वालियर राजनीतिक रसूख के लिहाज से राजधानी भोपाल और आर्थिक राजधानी इंदौर से भी ज्यादा ताकतवर है। यह प्रदेश का सम्भवत: इकलौता शहर है जिसके केंद्र की मोदी सरकार में एक नहीं दो -दो केंद्रीय मंत्री है। मध्यप्रदेश में चौथी बार बीजेपी की सरकार बनाने की असली ताकत भी यहीं से मिली और स्वयं शिवराज सरकार में यहाँ के दो मंत्री और दो मंत्री दर्जे वाले नेता है लेकिन इसकी स्वछता के रैंकिंग ऊपर आने की जगह और नीचे चली गयी।
लगातार दूसरे साल गिरी रैंकिंग
शनिवार को घोषित किये गए परिणामों में इंदौर ने एक फिर न केवल प्रदेश बल्कि देश भर में अपना परचम लहराया। इंदौर ने सेवन स्टार हासिल करके लगातार छठी बार देश में अव्वल नंबर हासिल किया लेकिन तमाम दावों के बावजूद ग्वालियर और भी बेहाल हो गया। बड़े शहरों में ग्वालियर वह 18 वे नंबर आ गया जबकि 2021 में वह 15 वे स्थान पर था और और 2020 में रैंकिंग 13 थी। जबकि इस बार दस लाख की जनसंख्या वाले शहरों की रैंकिंग में ग्वालियर खिसककर अठारहवे नंबर पर पहुंच गया। यानी वह ऊपर जाने की जगह एक वर्ष में पांच पायदान और नीचे खिसक गया।
ओवरऑल रैंकिंग में बुरा हाल
ग्वालियर नगर निगम ने इस बार दावा किया था कि ग्वालियर बदल रहा है। इसी नारे के साथ उसने शहर में अपना प्रचार अभियान भी चलाया था लेकिन इसके नतीजे ठीक उलट आये। आंकड़े बदले तो लेकिन उलटे क्रम में बदल गए। शहरो में ओवर ऑल के नतीजे भी बहुत निराशाजनक आये। 4354 शहरों की दौड़ में ग्वालियर पिछली बार की तुलना में ग्यारह पायदान नीचे खिसक गया और उसकी रैंकिंग 53 वे स्थान पर पहुंच गयी।
यह किया था दावा
नगर निगम के अफसरों ने वर्ष 2022 के सर्वे में सेवन स्टार और वाटर प्लस के लिए दावा किया गया था। लेकिन सर्वे में दावे सच साबित नहीं हुए। इस केटेगरी में में ग्वालियर को थ्री स्टार ही दिया। वाटर प्लस की जगह ग्वालियर को ओडीएफ डबल प्लस ही मिल सका।
किस वजह से पिछड़ा ग्वालियर
बताते है कि केदारपुर में टीम लैंडफिल साइट करने गई थी यहाँ पर कचरे से जैविक खाद का उत्पाद होते तो दिखाई दिया लेकिन वहां पर कचरे के पूंछे ऊँचे टीलों ने इसके सतत चलने के दावे की पोल खोल दी ,शहर में सभी जगह आवारा पशु घूमते हुए दिखाई दिए ,सिटीजन फीड बैक में भी पिछड़ा हुआ था। इसकी जो लास्ट सूची प्रसारित हुई उसमें ग्वालियर छठे नंबर पर था लेकिन इसमें नंबर बहुत ही कम मिले। ग्वालियर को 1715 अंक ही मिले जबकि भोपाल का स्थान सूची में 15 पर था लेकिन उसे 1900 नंबर मिले। इस तरह ग्वालियर टॉप टेन में भी जगह नहीं बना सका बल्कि इससे बहुत दूर 53 वे स्थान पर पहुंच गया। केंद्रीय शहरी आवास और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी सूची में ग्वालियर शहर को 7500 में से महज 5205 अंक ही मिले।
करोड़ों रूपये होते हैं चर्च लेकिन नतीजे निराशाजनक
ग्वालियर नगर निगम सफाई व्यवस्था पर करोड़ों रूपये खर्च करता है। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि सफाई व्यवस्था से जुड़े अधिकारी और कर्मचारियों पर नगर निगम हर साल 42 करोड़ रूपये तो केवल वेतन और भत्तों पर ही व्यय करता है। इस काम में लगे वाहनों के डीजल आदि पर 15 करोड़ रूपये खर्च होते हैं जबकि इसके लिए 90 वाहन किराए पर लगे हैं इन पर भी पांच करोड़ सालाना का भुगतान हो रहा है। वाहनों की मरम्मत पर दो करोड़ ,आईईसी कार्यों पर डेढ़ करोड़ और ,पेंटिंग और होर्डिंग पर एक करोड़ ,हाथ -ठेले और डस्टविन खरीदी पर 70 लाख,और माइक आदि के संधारण पर पांच लाख का व्यय हुआ है। इतनी बड़ी धनराशि व्य होने के बावजूद नतीजे ऊपर जाने की जगह नीचे की तरफ आ रहे हैं।
आखिर पिछड़ने की बजह क्या है
दरअसल ग्वालियर विकास की दौड़ में ही अभी प्रदेश के इंदौर ,भोपाल और जबलपुर जैसे शहरों से पिछड़ा हुआ है। कहने को बीजेपी की सियासत में ग्वालियर की धाक बहुत ज्यादा है। यह देश का अकेला शहर है जहां से मोदी सरकार में तो केबिनेट मंत्री हों। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर मोदी के साथ पहले कार्यकाल से ही कैबिनेट मंत्री है और वर्तमान में कृषि मंत्री जैसे ताकतवर ओहदे पर बैठे हैं जबकि कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया भी ग्वालियर से ही है और अभी केंद्रीय नगर विमानन मंत्री हैं। लेकिन इसके बावजूद ग्वालियर शहर को विकास के पंख नहीं लग पा रहे हैं। इसकी बजह आपस की खींचतान और श्रेय लेने की लड़ाई है। शहर में न तो नेता लोग एक साथ लोगों से स्वच्छता में सहयोग करने की अपील करने निकलते हैं और न ही उसके लिए कोई राजनीतिक माहौल बनाते हैं जैसे इंदौर में होता है। अब इसका नुकसान शहर के साथ - साथ बीजेपी को भी होने लगा है। जुलाई में हुए नगर निगम चुनावों में 57 वर्ष बाद मेयर की सीट बीजेपी के हाथ से खिसककर कांग्रेस के हाथ चली गयी।
एक्सपर्ट क्या कहते हैं
ग्वालियर नगर निगम के कमिश्नर रह चुके भारतीय प्रशासनिक सेवा के निवर्तमान अधिकारी विनोद शर्मा का कहना है कि ग्वालियर के इंदौर की तुलना में पिछड़ने के अनेक कारण है क्योंकि मैं स्वयं इंदौर का आयुक्त भी रहा हूँ। एक तो इंदौर में राजस्व बसूली ग्वालियर की तुलना में दस गुना से भी ज्यादा है। इसलिए मैचिंग ग्रांट की व्यवस्था ज्यादा रहती है इसलिए वहां अरबों रुपये के प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाते हैं। दूसरा वहां के लोगों का भी प्रति बहुत सकारात्मक रहता है। शर्मा कहते हैं कि हालांकि इस बार सफाई लेकिन यह निरंतरता कायम होगी तब ही काम बनेगा। लम्बे समय से यहाँ निगम में निर्वाचित बॉडी नहीं थी इसलिए जनता की जागरूकता कम रह गयी। पार्षद अपने क्षेत्र में सफाई के लिए अफसरों पर दबाव बनाते हैं ,जो लम्बे समय से नहीं हो सका। स्वच्छता के लिए एक्सपर्ट की नियुक्ति करना चाहिए और वे सिर्फ स्वच्छता का काम ही देखें क्योंकि नगर निगम के जेड ओ काम के बोझ से लाडे होते हैं और वे यह काम ध्यानपूर्वक नहीं देख पाते।