ललित उपमन्यु, इंदौर. इन दिनों चैत्र नवरात्र में मां दुर्गा की आराधना की जा रही है। इंदौर की सबसे महंगी कॉलोनी स्कीम नंबर-140 में बने श्री वैष्णव धाम मंदिर में भी भक्तों का तांता लगा है। नवरात्र में भजन-कीर्तन का दौर चल रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये मंदिर कैसे बना, इसके पीछे की वो अनोखी कहानी क्या है, कैसे एक खाने की मेज पर मंदिर बनाने की बात सोची गई और मैदान में मंदिर बन गया। हम आपको बताएंगे श्री वैष्णव धाम मंदिर बनने की पूरी कहानी।
खाने की मेज पर आया विचार
ये बात साल 1995-96 की है। कांग्रेस के एक विधायक थे जगदीश पटेल। राजनीति के साथ-साथ बेहिसाब खेती-बाड़ी के मालिक थे। बिचौली गांव में उन्हीं की जमीन थी, जहां अब स्कीम-140 बन गई है। एक बार उनके घर मित्र अशोक अहलूवालिया सप्तनीक भोजन पर आए। उनकी पत्नी विनोद अहलूवालिया भजन मंडली चलाती थीं। भोजन की टेबल पर बातों-बातों में अशोक अहलूवालिया ने जगदीश पटेल से कहा- जगदीश भाई, मैं चाहता हूं कि माताजी का एक मंदिर बनाया जाए। उनका इतना कहना था कि जगदीश पटेल कुर्सी से उठकर बोले-बनाओ, मैं मुफ्त जमीन दूंगा। अहलूवालिया भौचक्के रह गए। उनका ये बिल्कुल मतलब नहीं था कि जमीन मुफ्त मिले या पटेल दें। खाने की मेज पर अपने सपने को साकार होता देख वे खुशी से झूम उठे। अब सवाल था कि मंदिर कहां और कितना बड़ा बनाया जाए। विधायक जगदीश पटेल ने कहा कि भजन मंडली के साथ मेरी बिचौली वाली जमीन पर आ जाना।
बहनों, एक गोल घेरा बनाओ
अगले दिन जगदीश के मित्र की पत्नी विनोद अहलूवालिया अपनी भजन मंडली की करीब 500 महिलाओं को लेकर बिचौली वाली जमीन पर पहुंच गईं। विधायक जगदीश पटेल ने कहा कि जितनी बहनें आई हैं, सब हाथ पकड़कर एक गोल घेरा बना लो; चाहे कितना भी बड़ा बने। सभी महिलाओं ने गोल घेरा बना लिया। जैसे ही घेरा बना विधायक जगदीश पटेल ने कहा ये सारी जमीन आज से आपकी है।
विधायक जगदीश ने दी थी करोड़ों की जमीन
महिलाओं के बनाए घेरे के हिसाब से जब जमीन नापी गई, तो वो करीब 6 हजार फीट जमीन थी। आज के समय में इस जमीन की कीमत करीब 9 करोड़ रुपए है। स्वर्गीय विधायक जगदीश पटेल के बेटे विशाल पटेल और पत्नी सुलोचना पटेल अब भी मंदिर संचालन में सहयोग कर रहे हैं।
भव्य श्री वैष्णव धाम मंदिर
मंदिर से जुड़ी विनोद अहलूवालिया, सरिता छाबड़ा और दीप्ति शर्मा ने कहा कि मंदिर के लिए जागृति महिला मंडल नाम की संस्था गठित है, जिसे महिलाएं ही चलाती हैं। ये सदस्य कभी घर-घर जाकर भजन करती थीं, तब कल्पना भी नहीं थी कि वे एक भव्य मंदिर का संचालन करेंगी। यहां नवरात्र में हजारों लोग दर्शन करने आते हैं। आम दिनों में भी मेला लगा रहता है। मंदिर संचालन का खर्च भी आपसी सहयोग से उठाया जाता है। संस्था से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हजारों महिलाएं जुड़ गई हैं। मंदिर संचालन समिति गरीब बच्चों की पढ़ाई, इलाज आदि का खर्च भी अपने सामर्थ्य के हिसाब उठाती है। बच्चों की पढ़ाई के लिए एक लाइब्रेरी तैयारी हो रही है।