भोपाल. बीजेपी के पूर्ववर्ती संगठन भारतीय जनसंघ की कद्दावर नेता रहीं राजमाता विजया राजे सिंधिया की आज (25 जनवरी) 21वीं पुण्यतिथि है। उनका जन्म 12 अक्टूबर 1919 को सागर में हुआ था। जीवाजीराव सिंधिया से 1941 में उनकी शादी हुई। दोनों के तीन बच्चे हुए- एक बेटा माधव राव सिंधिया और चार बेटियां पद्मावती राजे, ऊषा राजे, वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे। विजया राजे राजनीति में कैसे आईं, राजनीति में उनका क्या कद था, आज हम आपको बताने जा रहे हैं...
लेखा से बन गई विजया राजे: राजमाता का सही नाम लेखा दिव्येश्वरी देवी था। विजयाराजे का सियासत में आना ही किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था। उनके राजनीति में आने का कारण अपने पति जीवाजीराव को सरकार के गुस्से से बचाना था। 1957 के चुनाव से पहले ग्वालियर महत्वपूर्ण क्षेत्र इसलिए था, क्योंकि यहां 8 लोकसभा और 60 विधानसभा सीटें थीं। यहां हिंदू महासभा का गढ़ बन चुका था और 1962 के चुनावों में जीवाजीराव सिंधिया का समर्थन इस संगठन को मिल गया।
यह गठजोड़ कांग्रेस को रास नहीं आ रहा था। वहां से लगातार ऐसे संदेश भेजे जा रहे थे, जो ग्वालियर के जीवाजीराव के पति के लिए भविष्य में खतरनाक साबित हो सकते थे, लेकिन जीवाजी अपने घुड़दौड़ के शौक में मसरूफ थे। विजयाराजे ने खतरे को भांपकर दिल्ली का रुख किया और नेहरू से मुलाकात कर बताया कि महाराज कांग्रेस के विरोधी नहीं हैं।
कुछ ऐसी हुई बातचीत
- नेहरू : ठीक है, महाराज हमारे खिलाफ नहीं हैं तो अब वो साबित करें कि हमारे साथ हैं। कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर उन्हें संसद में आना होगा।
डीपी मिश्र से गतिरोध और जनसंघी हुईं विजयाराजे: विजयाराजे ना चाहते हुए भी कांग्रेस से जुड़कर राजनीति में आने पर मजबूर हुईं, क्योंकि जीवाजीराव ने भी यही तय किया था। लेकिन नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस के साथ उनके मतभेद तेजी से सामने आए और 1967 के चुनाव से पहले ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के साथ उनके गतिरोध बढ़े।
विजयाराजे राजनीति में नई थीं और उस वक्त कांग्रेस का विकल्प तलाशने की कवायद देश की राजनीति में प्रयोग जैसी थी, इसलिए विजयाराजे ने जनसंघ के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा और स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव। दोनों चुनाव जीतने वाली विजयाराजे ने आगे का राजनीतिक सफर जनसंघ के साथ तय करने पर मुहर लगा दी।
मिश्र की सरकार गिराई: मिश्र के बर्ताव को विजयाराजे दिल पर ले चुकी थीं और प्रदेश की राजनीति में अब वो राजमाता का दर्जा पा चुकी थीं। मिश्र की सरकार को गिराने के लिए उन्हीं के मंत्री गोविंद नारायण सिंह ने 30 कांग्रेस विधायकों को साथ लेकर एक सीक्रेट प्लान बनाया, जिसमें राजमाता की अनकही सहमति थी। अचानक मिश्र की सरकार गिर गई और मध्य प्रदेश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी।
'संयुक्त विधायक दल' नाम के गठबंधन ने सरकार बनाई। इसमें राजमाता सर्वोच्च नेता बनीं और गोविंद नारायण मुख्यमंत्री। हालांकि यह प्रयोग डेढ़ साल चल सका। फिर राजमाता और गोविंद नारायण के बीच मतभेद हो गए और वे फिर कांग्रेस में चले गए।
वाजपेयी को नहीं जिता पाईं: विजयाराजे के लिए कहा जाता था कि मध्य प्रदेश में वो जिस सीट से खड़ी हो जाएं, वहां से जीत सकती थीं। राजमाता के बेटे माधवराव कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार हो चुके थे। 1984 के चुनाव में राजमाता के सामने धर्मसंकट की स्थिति बनी, क्योंकि माधवराव के खिलाफ अटल बिहारी वाजपेयी ने पर्चा भरा।
बेटे के खिलाफ चुनाव अभियान छेड़ने में राजमाता पसोपेश में थीं। इधर, वाजपेयी ने खुद को राजमाता का 'धर्मपुत्र' घोषित किया और कुछ ही समय के भीतर राजमाता अपने बेटे माधवराव के खिलाफ वाजपेयी के प्रचार में उतरीं। हालांकि, वाजपेयी ये चुनाव बड़े अंतर से हार गए।
शालीन छवि: राजमाता को करीब से जानने वाले बताते हैं कि वो बेहद सहज महिला थीं। कोई उन्हें 'प्रिंसेस' या 'राजकुमारी' कहता तो वो इसका विरोध करती थीं। कहतीं- मुझे सब लेखा देवी ही कहते हैं, वही कहिए।
राजमाता की जिंदगी के कुछ Facts
- नौ साल की उम्र में मां को खोया।