सीहोर में गायत्री फूड के घातक केमिकल वेस्ट से ग्रामीण बीमार, प्रशासन खामोश

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Aashish Vishwakarma
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सीहोर में गायत्री फूड के घातक केमिकल वेस्ट से ग्रामीण बीमार, प्रशासन खामोश

राहुल शर्मा. भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के गृह जिले सीहोर में एक प्राइवेट फूड फैक्टरी से निकलने वाला केमिकल वेस्ट आस-पास रहने वाले ग्रामीणों के जीवन में जहर साबित हो रहा है। मामला सीहोर के पास पिपलिया मीरा गांव में स्थित जयश्री गायत्री फूड फैक्टरी का है। इससे निकलने वाले घातक केमिकल से ग्रामीण किडनी फेल, लीवर और कैंसर जैसी गंभीर बामीरियों के शिकार हो रहे हैं। इनमें से ज्यादातर युवा हैं। पीड़ित ग्रामीण इसकी शिकायत जिला प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक कर चुके हैं लेकिन उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। द सूत्र ने जब इस मामले में जिले के सीएमएचओ और कलेक्टर से सवाल किए तो उन्होंने गांव में हेल्थ चेकअप लगवाने की बात कही लेकिन वातावरण में जहर फैला रहे फैक्टरी मैनेजमेंट के खिलाफ कार्रवाई के सवाल पर चुप्पी साध ली। इससे स्पष्ट हो रहा है कि पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और एनजीटी के निर्देश के बाद भी जिला प्रशासन जयश्री गायत्री फूड के खिलाफ कठोर कदम का साहस नहीं जुटा पा रहा है। 





गांव में मौत का तांडव, क्या कर रहा स्वास्थ विभाग का मॉनीटरिंग सिस्टम: गांव में बीते 5 सालों से मौत तांडव कर रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यही उठता है कि स्वास्थ विभाग का मॉनीटरिंग सिस्टम क्या कर रहा है। गांव में विभाग स्वास्थ कार्यकर्ता की तैनाती करता है। वहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी टीकाकरण में सहयोग करती है। यह दोनों ही ग्रामीणों के स्वास्थ की मॉनीटरिंग करते हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि पिपलिया मीरा गांव में बड़ी संख्या में बीमार हो रहे लोगों की जानकारी अब तक स्वास्थ विभाग को क्यों नहीं पहुंची। पूरे मामले में सीहोर के मुख्य चिकित्सक एवं जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सुधीर डहेरिया यह कहते अपनी जिम्मेदारी से बचते नजर आए कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं। जब उनसे स्वास्थ कार्यकर्ता की जिम्मेदारी को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा कि वे मामले को दिखवाते हैं।





तीन घटना से समझे किस नर्क में जी रहे ग्रामीण...





पहली घटना- दो छोटे बच्चों और रोती हुई पत्नी को छोड़ गया अशोक: पिपलिया मीरा गांव से बड़नगर जाने वाली सड़क के पास एक टूटे-फूटे घर के बाहर खटिया पर बैठा एक बुजूर्ग, पास में खेलते दो छोटे बच्चे और घर के अंदर रोती हुई एक महिला... यह तस्वीर मृतक अशोक मेवाड़ा के घर की है, जिसकी 36 साल की उम्र में 23 फरवरी को कैंसर से लड़ते लड़ते मौत हो गई। अशोक के पिता नारायण ने बताया कि 3 महीने से अशोक का भोपाल में ईलाज चल रहा था। फैक्टरी से निकलने वाले गंदे पानी के कारण उसे यह बीमारी लग गई। अशोक के दो बेटे हैं, 10 साल का शिव और 4 साल का शिवम। मासूस शिवम घर के बाहर खेल रहा है, उसे पता ही नहीं कि उसके सिर से बाप का साया उठ चुका है। उसे खेलता देख अशोक की पत्नी रचना के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। 





दूसरी घटना- 35 साल की उम्र में बेटे ने छोड़ा बुजुर्ग पिता का साथ: फैक्टरी से निकलने वाले केमिकल युक्त पानी का खामियाजा सिर्फ अशोक ने ही नहीं भुगता। लिस्ट लंबी है। एक पिता के लिए इससे बड़ा दर्द नहीं हो सकता कि उसकी आंखों के सामने ही उसका बेटा दम तोड़ दें। गांव के ही चंदर सिंह मेवाड़ा के बेटे महेश ने करीब पांच साल पहले दम तोड़ दिया। महेश को फेफड़े से संबंधित रोग था। अशोक के पिता नारायण की तरह ही महेश के पिता चंदरसिंह मेवाड़ा भी इसके लिए दोषी फैक्टरी से निकल रहे गंदे पानी को ही मानते हैं। 





तीसरी घटना- कांताबाई 6 फरवरी को हार गई जिंदगी से जंग: पिपलिया मीरा गांव के मोहन मेवाड़ा के सिर से मां की ममता की छांव छिन चुकी है। मोहन ने इसके लिए फैक्टरी को जिम्मेदार ठहराया है। मोहन ने बताया कि 6 फरवरी 2022 को उसकी मां कांताबाई का निधन हुआ। वह हृदय रोग से पीड़ित थी। हमेशा घबराहट और बीपी की शिकायत रहती थी। कुछ समय से इलाज चल रहा था, लेकिन वह उनको बचा नहीं सका। 





बीते 5 सालों में फैक्टरी से निकलने वाले जहर के असर का ऑडिट: ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार 5 सालों में प्रदूषित पानी पीने से ग्राम पीपलिया मीरा के सवाई सिंह, शंकरलाल, अशोक, महेश, कांताबाई सहित करीब एक दर्जन की मौत हो चुकी है। भागीरथ, कालूराम और अशोक कैंसर से पीड़ित हुए। सतीष और चंदर सिंह की पत्नी को किडनी संबंधित रोग हुए। सोहनलाल सहित दर्जनों को पेटरोग और चर्मरोग जैसी बीमारी है। किसान चन्दर सिंह और रमेश की गाय, खुशीलाल के मवेशी सहित अनेकों किसानों की गाय-भैंस दूषित पानी पीने से मर गई। जहरीले पानी के सेवन से मोर और मछलियां भी मर गई। 





कम से कम कैंप लगाकर ग्रामीणों के स्वास्थ की जांच तो हो: द सूत्र ग्रामीणों के आरोपों की पुष्टि नहीं करता, पर अधिकारियों को चाहिए कि वह गांव में कैंप लगाकर एक बार गांव के लोगों के स्वास्थ की जांच तो करें। ग्रामीणों के आरोपों को इसलिए भी सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि मांगीलाल मेवाड़ा का साफ कहना है कि फैक्टरी का गंदा पानी यदि इसके लिए जिम्मेदार नहीं है तो फिर क्या कारण है कि आसपास के तीन चार गांव में इस तरह की बीमारी नहीं। वहां कम उम्र में युवा दम नहीं तोड़ रहे। कोई कारण तो है जिससे पिपलिया मीरा में बीमारी फैली है। 





मुख्यमंत्री के ग्रह जिले में यह हाल: पिपलिया मीरा गांव में लगातार लोग गंभीर बीमारी से पीड़ित हो रहे हैं, मर रहे हैं, पर अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंगी। वह भी उस जिले में जो स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ग्रह जिला भी है। सीएमएचओ साहब को तो मामले की जानकारी ही नहीं थी तो द सूत्र ने सीहोर कलेक्टर चंद्र मोहन ठाकुर से बात की। कलेक्टर ने कहा कि गायत्री फूड फैक्टरी को ट्रीटमेंट प्लांट शुरू करने के लिए हमने समय दिया था, हम चेक करा रहे हैं कि वह शुरू हुआ या नहीं। शुरू नहीं हुआ होगा तो उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। स्वास्थ विभाग का कैंप हम लगवा देंगे। मुख्य समस्या फैक्टरी से निकलने वाला कचरा है। उनका ट्रीटमेंट प्लांट बन चुका है। 15 दिन का समय मांगा था, अब हम उसे चेक करवा लेते हैं।





कलेक्टर साहब! जयश्री गायत्री फूड फैक्टरी पर यह दरियादिली क्यों? कलेक्टर साहब... यहां सवाल सिर्फ स्वास्थ्य कैंप लगाने का नहीं और न ही फैक्टरी का ट्रीटमेंट प्लांट शुरू हुआ या नहीं इसकी जांच करने का है। सवाल यह है कि यदि फैक्टरी ने ट्रीटमेंट प्लांट शुरू कर दिया और आपने गांव में स्वास्थ्य कैंप लगा दिया तो क्या अब तक जितने लोगों ने अपनी जान गंवाई, जो लोग बीमार हैं, उन्हें इंसाफ मिल जाएगा। लोगों की जिंदगी से खेलने वाली जयश्री फैक्टरी पर इस दरियादिली की वजह क्या है। चर्चा यह भी है कि सीएम ऑफिस से दबाव होने से ही इतनी बड़ी लापरवाही बरतने पर भी फैक्टरी संचालकों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।





सीएम हाउस गुहार लगाने पहुंचे ग्रामीण: ग्रामीणों की कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। जिसके बाद पिपलिया मीरा गांव के करीब एक दर्जन लोग अपनी तकलीफ सुनाने 25 फरवरी, शुक्रवार को सीएम हाउस पहुंचे, पर यहां से भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। ग्रामीणों को अंदर जाने नहीं दिया। सीएम तो छोड़िए उनके कोई अधिकारी तक इन ग्रामीणों से नहीं मिले। ग्रामीणों के अनुसार वे अपना ज्ञापन गार्ड को देकर ही वापस लौट आए। ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने एक ज्ञापन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी दिया है।



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