पानी के लिए तरसता सीएम का इलाका ! शिवराज की फटकार के बाद भी अधिकारी लापरवाह

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Ruchi Verma
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पानी के लिए तरसता सीएम का इलाका !
शिवराज की फटकार के बाद भी अधिकारी लापरवाह

भोपाल: करीब एक महीने पहले यानी 22 अप्रैल,2022, रविवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भोपाल से करीब 90 किलोमीटर दूर अपने गृहक्षेत्र सीहोर जिले के नसरुल्लागंज का दौरा किया था। दौरा वैसे तो एक खेल प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए था। पर जब मुख्यमंत्री वहाँ पहुंचे तो पानी की भयंकर किल्लत से झूझ रहे स्थानीय ग्रामीणों ने अपनी समस्याओं की झड़ी लगा दी। मुख्यमंत्री से ग्रामीणों ने बताया था कि अधिकारी सुनते नहीं हैं...शिकायत करने के बाद भी हर घर जल योजना के तहत भी पानी नहीं मिल पा रहा है...हर घर जल योजना के कार्य भी बहुत धीमी गति से हो रहे हैं।ग्रामीणों की बात छोड़िये खुद भाजपा के ही अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष देवी सिंह धुर्वे ने पिपलानी गांव के पठार मोहल्ले और इटावा गांव के आदिवासी मोहल्ले में पानी का इंतजाम न होने की शिकायत की। अपने ही नेता से मिली शिकायत को CM आखिर कैसे नजरअंदाज करते। लिहाज़ा उन्होंने कार्यक्रम में ही पीएचई के अधिकारियों को बुलवाया, पर अधिकारी इतने बेफिक्र कि उपस्थित ही नहीं हुए। फिर क्या था....नाराज मुख्यमंत्री रविवार रात ही  करीब डेढ़ बजे भोपाल लौटे और सोमवार सुबह-सवेरे साढ़े छह बजे पीएस मनीष रस्तोगी, पीएस पीएचई मलय श्रीवास्तव, एमडी जल निगम तेजस्वी नायक, कमिश्नर भोपाल गुलशन बामरा, ईइनसी पीएचई, सीहोर कलेक्टर को आवास पर तलब कर लिया।





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बैठक में उन्होंने सभी अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई और कहा कि जनता को पानी हर कीमत पर मिलना चाहिए। मुख्यमंत्री के शब्द सीधे, साफ़ और सख्त थे...कि गर्मी के इन दो महीने में कहीं भी पानी का संकट नहीं आना चाहिए। फिर चाहे उसके लिए पेयजल परियोजना चालू करना पड़े, पानी परिवहन की व्यवस्था करनी पड़े, नए ट्यूबवेल-हैंडपंप लगाने पड़े, उनमें पाइप बढ़ानी पड़े, उनकी सफाई करनी पड़े, या फिर निजी नलकूप का अधिग्रहण करना पड़े। पानी सप्लाई करने के लिए जो करना पड़े वो सब करें। सख्त हिदायत थी कि हर घर जल योजना का ठीक से क्रियान्वयन हो। CM ने तल्ख लहजे में कहा कि तीन महीने में सभी ग्रामीणों के लिए पेयजल की समुचित व्यवस्था कराई जाए। इन सभी कार्यों की मॉनिटरिंग का जिम्मा CM ने भोपाल संभागायुक्त गुलशन बामरा को सौंपा था।





इतना ही नहीं...मुख्यमंत्री काफी भावुक होते हुए बोले थे कि: "मेरे मन में तकलीफ है कि लोगों को पानी समय पर नहीं मिल पा रहा है...लोग तो गर्मी में पानी पिलाने के लिए प्याऊ खोलते....आप अधिकारियों का भाग्य है, जो ईश्वर ने आपको यह दायित्व सौंपा है...आपको तो इस कार्य के पैसे भी मिल रहे हैं। कम से कम इसे ठीक से कर लो। समस्याओं का समाधान करना हमारी जिम्मेदारी भी है और धर्म भी।"





मुख्यमंत्री द्वारा बैठक में दिए गए निर्देश







  • गर्मी के मौसम में प्रदेश में नियमित जल आपूर्ति सुनिश्चित की जाए



  • ग्राउंड लेवल तक अमले को अलर्ट मोड पर रखे। अमले की और जरूरत है तो आवश्यकतानुसार पूर्ति करें


  • जितना इंफ़्रा बना हो उसका उपयोग कर पानी दे। यदि कोई समस्या हो तो समय पर अवगत कराए


  • वोल्टेज की प्रॉब्लम, लो प्रेशर बिजली के कारण टंकियों में पानी नहीं भर पाने जैसी समस्याओं और गैप्स को चिन्हित कर तत्काल समाधान किया जाए। विद्युत विभाग से समन्वय कर जल उपलब्ध कराए


  • समस्या ग्रस्त इलाकों में, जहां आवश्यक हो पानी का परिवहन कराए


  • जल जीवन मिशन के योजनाओं का आकलन कर इम्प्रूव करे






  • पर लगता है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अपने अफसरशाहों को दी गई हिदायत, समझाईश और फटकार भी उनके गृहक्षेत्र में पानी पहुंचाने के लिए काफी नहीं है। तभी तो इतना सब होने के बावजूद भी जिले के जिम्मेदार अधिकारी उन गावों की प्यास 'पूरी' तरह से बुझा नहीं पा रहे हैं जहाँ की शिकायत मुख्यमंत्री को उनके नसरुल्लागंज दौरे के दौरान की गई थी। फिर जब बात की जाए आस-पास के गाँवों की तो हालात और भी ख़राब है। देखिये मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र में फैले भारी जल संकट के जमीने हालत बयान करती द सूत्र की यह ग्राउंड रिपोर्ट:





    पाण्डा गांव के 1200 लोग पानी की बूँद-बूँद को तरस रहे, खरीद रहे रोज के 100-200 रुपए में पानी: ग्राम पाण्डा गांव, पंचायत बड़नगर, तहसील नसरुल्लागंज, जिला सीहोर







    • भू-जल स्तर के नीचे जाने से जबाव दे चुके बोर, ट्यूबवेल और हैंडपंप, भीषण गर्मी से सूखे पड़े नदी-तालाब और कुवें, खाली पानी की टंकिया, और ठीक से शुरू होने से पहले ही दम तोड़ चुकी नल जल योजना....यह राजस्थान के किसी गाँव का नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के सीप नदी के करीब ही बसा हुए गाँवों की तस्वीर है। नसरुल्लागंज तहसील के अंतर्गत आने वाला यह गांव कहने के लिए यूं तो सीप नदी के करीब ही बसा हुआ है, लेकिन किस्मत देखिये कि यहां के ग्रामीणों की जिंदगी सुबह उठने के साथ ही पानी की जुगाड़ करने में व्यस्त हो जाती है। तहसील मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर इंदौर-भोपाल हाईवे पर पांडा गांव का चार मोहल्लो में बसाहट में बसा हुआ है। करीब 1200 की आबादी और की आबादी और 200 से ज्यादा घर वाले बड़नगर ग्राम पंचायत के पाण्डागांव के केवट मोहल्ले में गर्मी की दस्तक के साथ ही जलसंकट की तस्वीर गहराने लगती है। स्कूल में एक होल है जिससे लोग थोड़ा बहुत पानी पाते हैं। बाकी जो बोर हैं उनमें मोटर ही नहीं डाली हैं। ग्रामीण 2-3 किमी दूरी पर जाकर पानी भरने के लिए मजबूर हैं।



  • गिरते भूजल स्तर के चलते गांव में लगे सभी हैंडपंप साथ छोड़ चले हैं। ग्रामीण बताते हैं, कि इस गांव में पेयजल सुविधा की दृष्टि से करीब 10 हैंडपंप लगाए गए हैं, लेकिन इनमें से कोई भी चालू हालत में नहीं है। शासन की उपेक्षा का हाल यह है कि इस गांव में अब तक न तो नल जल योजना संचालित नहीं की जा सकी है और न ही जल जीवन मिशन में कोई कार्य हो सका है। नर्मदा जल सप्लाई के लिए पानी की टंकी का निर्माण पिछले पांच सालों से घिसट रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि वर्ष 2017-18 में टंकी का निर्माण कार्य शुरू हुआ था जो अभी भी पूरा नहीं किया जा सका। 12-12  महीने टंकी का काम रुका रहता है। ग्रामीणों के पानी का एक ही साधन है....या तो किसी दूसरे मोहल्ले में किसी के घर में संचालित बोर से पानी भर कर लाओ या फिर 2 से 3 किमी दूरी पर खेतों में स्थित संचालित बोर/तालाब से ही पानी भरो।


  • इस मोहल्ले में सबसे बड़ी आबादी केवट परिवारों की है। ज्यादातर इन परिवारों की आजीविका खेती या फिर मजदूरी पर निर्भर है। कई बार पानी की तलाश के चक्कर में परिवारों के सामने रोजीरोटी का संकट तक आ जाता है क्योंकि इससे उनकी मजदूरी छूट जाती है। पानी आने के बाद ही महिलाएं घरों में खाना पकाने के लिए चूल्हा जला सकती हैं। महिलाओं का कहना है कि वह इतनी दूर जाने के बाद भी एक बार में सिर्फ एक दिन का पानी ही ला पाती हैं। वहीं बच्चों को पानी भरने जाने के लिए अपना पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। पानी की इस भयंकर कमी का मवेशियों और खेती पर भी बुरा असर हुआ है। मूंग की फसल सूख गई। गांव वाले बताते हैं कि इस बार काम पानी की वजह से उनकी मूंग की फसल में काफी नुकसान हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि साल दर साल यहां गहराते जल संकट पर न तो जनप्रतिनिधियों के द्वारा कोई ध्यान दिया जा रहा है और न ही अधिकारी इस समस्या पर ध्यान दे रहे हैं।  ऐसी स्थिति में ग्रामीणों में आक्रोश की स्थिति पैदा होती जा रही है।


  • बड़ी बात यह है कि गाँव वालों को पानी भरने के लिए दिन के 100 से 200 रुपए तक भरने पड़ रहे हैं। दरअसल नाम न लेते हुए गाँव वालों ने बताया कि जिसके घर से वह पानी भरते हैं यानि जिसके घर में प्राइवेट बोर होता है....वह पानी तो भरने देता है लेकिन पैसे लेकर। अब जिस प्रदेश की सरकार ही ग्रामीणों की सुध ना ले तो वह ग्रामीण पैसे देकर पानी लेने के लिए तो मजबूर होंगे ही। द सूत्र ने जब पांडा गांव के पंचायत सचिव कैलाश नारायण जाट से बात की तो उन्होंने सरकारी अधिकारियों के निराशात्मक रवैये की बात करते हुए कहा कि अधिकारी टंकी बनाने के नाम पर बस सड़क खोद कर चले जाते हैं और टंकी हमेशा अधूरी ही पड़ी रह जाती है। इससे पानी की किल्लत जस कि तस रह जाती है।






  • वर्ष 2008 में जामुनिया वासियों को शिवराज ने किया था विकास का वादा, आजतक पानी की किल्लत: ग्राम जामुनिया, धौलपुर पंचायत, तहसील नसरुल्लागंज, जिला सीहोर





    कमोबेश पांडा गाँव जैसी ही हालत समीप ही स्थित धौलपुर पंचायत में आने वाले जामुनिया गांव की है। यहाँ ले दे कर एक हैंडपंप ही काम करता है...और ज्यादा गर्मी होने पर वो भी दिक्कत करने लगता है। ग्रामीण बताते हैं की उनके गाँव में करीब 95% सूखे की स्थिति है। भीषण गर्मी के चलते पिछले दो महीने से परेशानियां ज्यादा हैं। जिसके चलते कुछ घरों में तो बिलकुल भी पानी नहीं है और उन्हें दूर-दूर से पानी भरकर लाना पड़ रहा है। ग्रामीण आक्रोशित है कि इतनी दिक्कतों के बावजूद सरकार को उनकी सुध नहीं है तभी नलजल योजना का काम घोंघे की गति से भी धीमे चल रहा है। योजना के तहत घरों में नल तो लगा दिए पर उनमे पानी आता ही नहीं है। आएगा कैसे जब पानी सप्लाई के लिए टंकी ही नहीं बनी! ग्रामीण बताते हैं कि 4 से 6 बार शिकायत करने के बावजूद अधिकारी सिर्फ झूठे आश्वासन देकर टाल देते हैं। कहते हैं की हफ्ते भर में आपका काम हो जाएगाऔर बस कागज़ी कार्यवाही कर देतें हैं। पर असल में कुछ नहीं होता।अब ग्रामीणों को बस एक ही आसरा है ----- और वो है बारिश। बड़ी बात ये है कि शिवराज सिंह चौहान वर्ष 2008 में इस गांव दौरा कर चुकें हैं...तब उन्होंने विकास के बड़े-बड़े वादे किये थे। पर आज तक वे वादे बस वादे ही रह गए।





    इटावा खुर्द गांव को जल परियोजना से 8 दिन में एक बार मिल रहा पानी





    इटावा खुर्द गांव, तहसील नसरुल्लागंज, जिला सीहोर:पांडा गाँव और जमुनिया कलां के बाद द सूत्र की टीम पहुंची उन दो गाँवों में जहाँ के लोगों ने मुख्यमंत्री को नसरुल्लागंज में हुए सम्मेलन में पानी की कमी को लेकर शिकायत करी थी। यानी कि पिपलानी गांव के पठार मोहल्ले और इटावा गांव के आदिवासी मोहल्ले की। हमें उम्मीद थी कि शायद इन जगहों के हालात तो सुधर ही गए होंगे। आखिर CM साहब ने अधिकारियों को जिस सख्ती से ग्रामीणों की शिकायतें दूर करने की  हिदायत दी, उससे तो यही लगा था ----- पर हम गलत थे। जब हम इटावा गांव के आदिवासी मोहल्ले में पानी का इंतजाम देखने पहुंचे तो गांववालों ने साफ़-साफ़ बोला कि पानी की समस्या अभी भी बनी हुई है। वो बताते हैं कि पीने के पानी की समस्या तो सबसे ज्यादा है। पहले जो एक बोर था...वो सूख चुका है। हालांकि यहाँ जल योजना की पाइपलाइन है पर उससे कुछ ही दिनों तक अच्छा पानी आया। पर अब जल निगम की टंकी तो ज्यादातर खाली ही पड़ी रहती है। और पिछले कई दिनों से कभी 2-3 दिन में तो कभी 8 दिन में एक बार पानी आता है और वो भी इतना ज्यादा धीरे की उससे जरूरतें पूरी नहीं हो पाती। मवेशियों को पानी पिलाने दूर खेतों में कहीं-कहीं जो पानी थोड़ा बहुत इकठ्ठा है...वह जाते हैं। खेती-किसानी की जो जरूरतें डैम से पूरी होती थी...वो डैम भी सूख चुका है। जब हमने गाँव के लोगो से यह जानने की कोशिश की कि क्या CM से शिकायत के बाद कोई अधिकारी उनकी परेशानियां सुनने यहां आए थे? तो जवाब मिला नहीं।





    पिपलानी गांव के एक मोहल्ले शिकायत के बाद में बोरवेल तो बाकी के मोहल्लों में अभी भी पानी नहीं





    पिपलानी गांव, तहसील नसरुल्लागंज, जिला सीहोर: पिपलिया गाँव के पठार मोहल्ला पहुंचने पर थोड़ी राहत थी जब पठार मोहल्ले के ग्रामीणों ने बताया के उनकी शिकायत के बाद उनके मोहल्ले में 3 हैंडपंप लगवा दिए गए हैं। पर जब हम पिपलिया गांव के ही दूसरे इलाके में पहुंचे तो वह पानी की वही समस्या दिर सामने आई जो बाकी जगहों पर थी। गांव वालों का कहना है की सिर्फ एक मोहल्ले में बोर लगवा देने से पूरे गाँव की पानी की समस्या दूर नहीं हो जाती। पूरे गाँव में जल परियोजना का पानी 5 दिन में एक बार आता है। पहले के लगे हुए जो 2-4 हैंडपंप है जिनमे से कई सूख चुके हैं। गांव वाले बोलते हैं कि पाइप लाइन ठीक से काम करने लगे तो गांव वालों की समस्या दूर हो सकती है।





    बिना बिजली के आ रहा हज़ारों का बिल





    पांडा गाँव के निवासियों की समस्या सिर्फ जलसंकट तक ही सीमित नहीं है। द सूत्र की टीम जब यहां के गांवों में पहुंची तो बिजली की समस्या से भी ग्रामीण दो चार होते नजर आए... खासतौर पर गांवों में बिजली के बिल मिल रहे हैं लेकिन बिजली का पता नहीं है। तीन से चार महीनों से गाँव में लाइट नहीं थी। जिसके बाद भी बिजली का बिल उन्हें लगातार आया। किसी को 200 रुपए महीना तो किसी को 700 रुपए महीना तोह किसी को 4000 रुपए महीना। गांववालों को पैसे देकर बाहर गाँवों से मोबाइल चार्ज करना पड़ता था। हाल ही में जरुरत के लिए लाइट तब चालू हो पाई जब DP के लिए गांववालों ने ही 17 हज़ार रुपए भरे।







    अधिकारियों दे रहे टालमटोल भरा जवाब





    इस पूरे मामले पर द सूत्र ने भोपाल कमिश्नर गुलशन बामरा और सीहोर कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर से बात करने की कोशिश की। गुलशन बामरा ने व्यस्त होने का हवाला देते हुए कहा कि सीहोर कलेक्टर करीबी तौर पर मामले को देख रहे हैं...और वे काफी जिम्मेदार भी है...आपकी सभी सवालों का जवाब देंगे। इसपर द सूत्र ने जब सीहोर कलेक्टर को कॉल किया तो उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया और मैसेज करने पर किसी तरह का जवाब देना जरुरी नहीं समझा। वहीँ जब पीएचई विभाग के मंत्री ब़ृजेंद्र यादव से इस बारे में सवाल पूछे तो मंत्री का साफ कहना है कि गर्मी के दिनों में ग्राउंड वाटर लेवल बेहद नीचे चला जाता है और इससे हर घर जल मिशन योजना पूरी नहीं होती।





    ग्रामीणों को पानी मिले उनके घरों तक पानी पहुंचे, इसके लिए सरकार नल-जल योजना सहित कई अन्य योजनाओं पर पानी की तरह पैसा बहा रही है। हर साल लाखों-करोड़ों रुपए इन योजनाओं में लगाए जा रहे हैं। इसके बाद भी लोगों को पीने के लिए पानी नसीब नहीं हो रहा है। साफ़ है कि जिले में पानी की समस्या को लेकर मुख्यमंत्री ने वरिष्ठ अधिकारियों को जो फटकार लगाईं थी, उसका असर या तो हुआ ही नहीं या फिर अब उतर गया है। तभी अधिकारियों ने आननफानन में सतही तौर पर सिर्फ एक गाँव के सिर्फ एक मोहल्ले में ही बोर लगवाना जरुरी समझा...वो भी शायद इसलिए की ग्रामीणों ने अपनी शिकायत सीधे तौर पर कम के पास रख दी थी। तभी तो उसी गाँव के दुसरे मोहल्ले में या आसपास के उन गाँवों में जो पानी की किल्लत से झूझ रहे हैं, अधिकारियों ने पैर रखना जरुरी नहीं समझा। अधिकारी चाहते तो सिर्फ पठार मोहल्ले तक सीमित ना रहकर थोड़ी और मेहनत करके इस पूरी तहसील की पानी की दिक्कत दूर कर सकते थे...पर नहीं। अधिकारियों का एक मोहल्ले में बोर करवाना ऊंट के मुँह में जीरे के समान था और शायद इसीलिए क्षेत्र में पानी की समस्या जस की तस ही है। दरअसल, गलती सिर्फ अधिकारियों की नहीं है, बल्कि उन राजनेताओं और प्रतिनिधियों की भी है जिन्होंने चुनाव के समय इस इलाके की पेयजल समस्या के समाधान का वादा तो किया, लेकिन चुनाव के बाद वे सभी वादे भूल गए।





    नर्मदा-पार्वती लिंक परियोजना कब होगी पूरी और कब तक बुझेगी सीहोर जिले की प्यास?







    • यह अचरज की ही बात है कि जिस सीहोर जिले से नर्मदा गुजरती है उसी जिले के कई ब्लाक में पानी की किल्लत है। ऐसा नहीं की जिले की पानी की समस्या को दूर नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके लिए एक सार्थक परियोजना की कमी रही



  • इसी समस्या को मद्देनज़र रखते हुए एवं जिले के रहवासियों को राहत पहुंचने के उद्देश्य से सरकार ने 2017 में नर्मदा-पार्वती लिंक परियोजना का शिलन्यास किया था। परियोजना के अनुसार पार्वती नदी से पानी को लिफ्ट कर शहर को पेयजल सप्लाई करने के वाले जमोनिया, भगवानपुर सहित अन्य जलस्रोतों में डाला जाने का प्लान बना


  • परियोजना के पहले एवं दूसरे चरण में जिले के आष्टा, इछावर और जावर क्षेत्र को नर्मदा का पानी पहुंचाने का प्लान है। जबकि तीसरे-चौथे चरण में आष्टा, इछावर, सीहोर और श्यामपुर क्षेत्र में नर्मदा का जल पहुंचेगा।जानकारी के अनुसार नदी जोड़ने की इस परियोजना से सीहोर व शाजापुर जिले के 369 गांवों के किसानों को लाभ मिलना था। हजारों हेक्टेयर असिंचित जमीन की भी प्यास इस परियोजना से बुझ सकेगी। साथ ही इस परियोजना से सीहोर शहर के जुड़ जाने से शहर की पेयजल समस्या हल हो जाएगी।


  • योजना की शुरुआत करते वक़्त बोला गया था कि परियोजना का काम 2021 में ही पूरा हो जाएगा। और  लाभ 2022 तक ठीक से मिल पाएगा। अब तृतीय एवं चतुर्थ चरण का काम फरवरी 2024 तक पूरा करने का टारगेट है।


  • 2021 की एक न्यूज़ रिपोर्ट के हिसाब से इस परियोजना में शासन 6493 करोड़ रुपए खर्च कर रहा है। सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए द्वितीय अनुपूरक बजट में भी नर्मदा- पार्वती लिंक परियोजना के लिए 115 करोड़ का प्रावधान किया है। 




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