हरीश दिवेकर, BHOPAL. बीजेपी ने अपनी पुरानी गलतियों से सबक लेना शुरू कर दिया है। भरोसा भले ही नरेंद्र मोदी के नाम और चेहरे पर हो लेकिन हर नेता की बखत को समझते हुए बीजेपी रणनीति बना रही है। 2018 के चुनावी नतीजों में जो अंजाम ग्वालियर-चंबल में हुआ। उससे सीख लेकर इस बार पार्टी ने साफ कर दिया है कि इस बार इस अंचल में सियासत का पावर हाउस बदला हुआ होगा।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिए संदेश
उत्सवों का मौसम शुरू हो चुका है लेकिन मध्यप्रदेश में उत्सव का रंग चढ़ने की जगह चुनावी रंग गहरा हो रहा है। रविवार की छुट्टी के दिन भी एमपी में सत्ता, संगठन समेत पुलिस और प्रशासन मुस्तैद रहे। वजह थी केंद्रीय मंत्री अमित शाह का दौरा। एक दौरे में अमित शाह ने प्रदेश को जो सौगातें दीं वो अपनी जगह हैं लेकिन बहुत से बड़े-बड़े मैसेज भी दे दिए। जिसमें से एक बड़ा मैसेज साफ है कि इस बार बीजेपी पुरानी गलतियां दोहराएगी नहीं और किसी कीमत पर किसी भी नेता से कोई समझौता नहीं करेगी। भले ही पुराने चेहरों को दरकिनार ही क्यों न करना पड़े। सबसे बड़ा पैगाम तो ग्वालियर-चंबल के नेताओं और इस अंचल की आवाम के लिए है। जो इस बार अपने अंचल में एक नई बीजेपी को देखेंगे।
कमजोरियों को आंककर स्ट्रेंथ को तराशने में जुटी बीजेपी
इन दिनों सोशल मीडिया पर एक मोटिवेशनल का वीडियो काफी वायरल हो रहा है। जिसमें वो खरगोश और कछुए की पुरानी कहानी को रिवाइव कर कुछ नए अंदाज में सुना रही हैं। जिसका तीसरा पार्ट है अपनी कमजोरी और स्ट्रेंथ को समझकर रणनीति बनाएं। ये वीडियो तो बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर चक्कर लगा रहा है। लेकिन बीजेपी इससे पहले ही अपनी कमजोरियों को आंक चुकी है और अपनी स्ट्रेंथ को तराशने में जुटी हुई है। सही मायनों में तो ये शुरुआत तो 2020 से ही हो गई थी। उसके नतीजे अब दिखाई देने लगे हैं। 2020 में मध्यप्रदेश की सत्ता में बड़ा उलटफेर हुआ था। कारण बने थे कांग्रेस की जीत के पोस्टर बॉय ज्योतिरादित्य सिंधिया। जो बीजेपी के हो चुके थे। उसके बाद सिंधिया किस तेजी से बीजेपी में पावरफुल होते चले गए। ये किसी से छुपा नहीं है।
जय विलास पैलेस पहुंचे अमित शाह
हाल ही में अमित शाह ने मध्यप्रदेश का दौरा किया। हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई का तोहफा उन छात्रों को दिया जिनकी इंग्लिश कमजोर है। इसके बाद ग्वालियर का भी रुख किया। तकरीबन 5 घंटे उनका ग्वालियर में ही रुकने का प्लान था जिसमें से डेढ़ घंटा करीब वो जय विलास पैलेस में रहे। वही आलीशान पैलेस, जो सिंधिया की मिल्कियत है। मेजबानी में खुद पैलेस के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया जुटे रहे। महारानी प्रियदर्शनी राजे सिंधिया ने रसोई की देखरेख का जिम्मा खुद संभाला। वो चांदी की चमचाती ट्रेन भी खातिरदारी में चल पड़ी जिसके चर्चे विदेशों तक हैं। कई किलोग्राम का वजनी झूमर भी जगमगा उठा। केंद्रीय मंत्री अमित शाह की मेहमाननवाजी में सिंधिया ने कोई कसर नहीं छोड़ी। छोड़नी थी भी नहीं क्योंकि सिंधिया जानते थे कि जरा-सी जहमत उठाकर वो, वो हासिल करने वाले हैं। जिसकी ख्वाहिश ग्वालियर-चंबल ही नहीं पूरे प्रदेश में हर नेता को है। अमित शाह का सिंधिया की मेहमाननवाजी में डेढ़ घंटा तो क्या 15 मिनट गुजारना भी कई मैसेज देता है। खासतौर से पार्टी के उन बड़े नेताओं के लिए जो अब तक खुद को इस अंचल का सबसे दमदार भाजपाई मानते रहे हों।
शाह का जय विलास पैलेस जाना, सिंधिया का शक्ति प्रदर्शन
2018 के नतीजे बीजेपी के लिए चौंकाने वाले थे। खासतौर से ग्वालियर चंबल में। बीजेपी समझ चुकी थी कि सही समय पर सही फैसला नहीं हुआ तो अंचल बहुत आसानी से हाथ से निकल जाएगा। कांग्रेस घर की मुर्गी दाल बराबर की तर्ज पर सिंधिया की अहमियत शायद आंक नहीं सकी लेकिन बीजेपी इस चेहरे की ताकत को समझ चुकी थी। सिंधिया बीजेपी में आए और उसके बाद से अंचल के कई नेताओं की चमक पर ग्रहण लग गया। जो अब और गहरा होगा। अमित शाह का जय विलास पैलेस में जाना सिर्फ सिंधिया का शक्ति प्रदर्शन नहीं कहा जा सकता। उन्हें ये शक्ति देने की ख्वाहिश खुद आलाकमान की भी है ये डेढ़ घंटों ने साफ कर दिया है। अब अगर ये माना जाए कि इस अंचल में औरों के मुकाबले सबसे बड़ी लकीर सिंधिया की ही होगी तो कुछ गलत नहीं होगा।
महाराज का जादू
2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ग्वालियर-चंबल की 20 से ज्यादा सीटों पर काबिज थी लेकिन 2018 के चुनाव ने सारे सियासी समीकरण ही बिगाड़ दिए। कांग्रेस ने सिंधिया के चेहरे को चमकाना शुरू किया और बीजेपी सिमटती चली गई। ये भी संयोग ही समझिए कि 2018 के चुनाव प्रचार में राहुल गांधी ने भी जयविलास पैलेस में कदम रखा था। उसके बाद महाराज का जादू कुछ यूं चला कि बीजेपी के सारे धुरंधर फिर चाहे वो नरेंद्र सिंह तोमर हों या जयभान सिंह पवैया, सब फीके पड़ते चले गए। बीजेपी के कई मंत्रियों को भी हार का मुंह देखना पड़ा। सिंधिया की नुमाइंदगी में कांग्रेस ने यहां की 34 में से 26 सीटों पर कब्जा जमाया। एक सीट बीएसपी के नाम भी हुई। इस बदलाव को बीजेपी ने आंकते हुए देर नहीं लगाई और 2020 में ही सियासी बाजी पलट गई। एक बार फिर सिंधिया की नुमाइंदगी में बीजेपी ग्वालियर-चंबल में ज्यादा सीटों पर नजर आ रही है।
बीजेपी के सामने 2023 की चुनौती
बीजेपी के सामने 2023 की चुनौती है। ये बात किसी से छुपी नहीं है कि दूसरे अंचलों के मुकाबले सबसे ज्यादा गुटबाजी ग्वालियर-चंबल में ही दिखाई दे रही है। यहां दो पावर सेंटर बनते नजर आ रहे थे। एक केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का और दूसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया का। पुराना चेहरा होने के नाते तोमर कई बार वेटेज लेते भी दिखाई दिए लेकिन ये तथ्य वो चाहकर भी नहीं मिटा सकते कि उनके गढ़ कहलाने वाले मुरैना में पिछले चुनाव में बीजेपी का सूपड़ा ही साफ हो गया था। नगरीय निकाय चुनाव में भी उनके फैसले बहुत ज्यादा सही साबित नहीं हुए। दोनों के बीच की खेमेबाजी की कुछ झलक अमित शाह के दौरे के दौरान भी दिखी। जब सिंधिया समर्थकों ने पूरी कोशिश की कि पोस्टर से तोमर का चेहरा गायब रहे। कुछ ऐसे ही जतन तोमर खेमे से हुए। ग्वालियर-चंबल में खुलकर सामने आ रही दो धड़ों की राजनीति को खत्म करना ही शाह की यात्रा का बड़ा मकसद माना जा रहा है।
ग्वालियर-चंबल को शाह का संदेश
- दो धड़ों में बंटी राजनीति को खत्म करना
बीजेपी की सत्ता का पावर हाउस जय विलास पैलेस
इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम का मैसेज साफ है कि 2023 तक कम से कम बीजेपी की सत्ता का पावर हाउस ग्वालियर-चंबल अंचल में जय विलास पैलेस ही रहने वाला है। महाकाल लोक के लोकार्पण कार्यक्रम में भी सिंधिया को जो अहमियत दी गई वो साफ दिखी। जहां सिंधिया और सीएम पूरे समय पीएम नरेंद्र मोदी के पीछे-पीछे दिखे जबकि नरेंद्र सिंह तोमर सीधे मंच पर ही नजर आए।
सिंधिया को चेहरा बनाने के पीछे बीजेपी का बड़ा मकसद
हर घटनाक्रम ये साफ इशारा कर रहा कि जिस बड़े मकसद के लिए बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे को अपना बनाया है और उनकी हर सिफारिश को सिरआंखों पर रखा है। डेढ़ साल में सिंधिया को मंत्री पद से नवाजने के साथ-साथ शिवराज कैबिनेट और निगम मंडलों में उनके समर्थकों को जगह देने तक बीजेपी सिंधिया में काफी कुछ इन्वेस्ट कर चुकी है। उसे कैश कराने का वक्त आ चुका है। सिंधिया अब पावर सेंटर बन कर उभर तो सकते हैं लेकिन पावर बरकरार रखने के लिए उन्हें बड़ी अग्नि परीक्षा भी देनी होगी। 2023 का चुनाव ये तय करेगा कि आलीशान महल का दमखम उतना ही बचा है या नहीं। साथ ही ये भी फैसला होगा कि सिंधिया का रुतबा और मैजिक 2018 जितना ही कारगर रहा या नहीं।