Indore. ऐसा तो होता ही रहता है कि कोई पार्षद का टिकट मांगे और उसे न दिया जाए। बल्कि ऐसा ज्यादा ही होता है। हां, ऐसा कम ही होता है कि कोई टिकट की उम्मीद ही न लगाए हो और उससे कहा जाए कि आइए, टिकट लीजिए। वो भी तब जब टिकट देने वाली पार्टी से आपका कोई लेना-देना नहीं हो।
इंदौर के वार्ड नंबर 58 में ऐसा ही हुआ। एक नेताजी होते हैं अजय सिंह ठाकुर। मित्रों और राजनीतिक हलकों में कहलाते है बबली ठाकुर (Babli Thakur)। कांग्रेस के बरसों पुराने पार्षद रह चुके हैं। क्षेत्र में दमदारी इतनी कि वार्ड महिला हो गया तो पत्नी को पार्षद जिता लाए। खुद भी जीत चुके हैं। इस बार फिर अपने वार्ड 58 से कांग्रेस के टिकट के लिए कागज-पत्तर तैयार किए और दौड़भाग शुरू की। पहले तो गाड़ी पटरी पर दिखी फिर शुरू हुआ कांग्रेस की गुटबाजी का खेल। जिस विधानसभा में बबली रहते हैं वहां कांग्रेस के दो गुट हैं। एक गुट के नेताजी दो बार चुनाव हार चुके हैं और दूसरे गुट के नेताजी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। दोनों पारिवारिक सदस्य हैं। हारे हुए और तैयार बैठे नेताओं के बीच उलझ गए बबली ठाकुर। कुल मिलाकर इशारा मिला कि इस बार ना ही समझो । वोटों के गणित के चलते हमारी नजर किसी और उम्मीदवार पर है। भैया निराश हो बैठ गए। ये तो हुई कांग्रेस (Congress) की बात।
और फिर...
बीजेपी में टिकट को लेकर भारी जद्दोजहद चलती रही। एक-एक वार्ड, एक-एक नाम पर आपस में ही कड़ा मुकाबला। भारी अनुसंधान। तभी वार्ड 58 का जिक्र आता है। हां, कौन-कौन हैं यहां से पैनल में। कोई नहीं। अकेले बबली ठाकुर। ऐं ? कांग्रेस नेता का नाम, बीजेपी उम्मीदवारों की सूची में। वो भी इकलौता। कोई पैनल नहीं। पूरा सदन भौंचक। ये कैसे हुआ। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने दमदारी से नाम प्रस्तावित करने का जिम्मा लिया। हां, मैंने जोड़ा है। वो लड़ लेंगे भाजपा से। लेकिन वो तो अभी कांग्रेस में ही हैं। दूसरे बड़े नेता ने लंगर डाला। वो यहां अपने समर्थक की जगह बनाना चाहते थे। जुड़ जाएंगे हम से। अगला जवाब। नाम जोड़ने वाले नेता का कद इतना बड़ा था कि बाकी सदन ने शांति बनाए रखी केवल इकलौते वे नेता बोल रहे थे जिन्हें समर्थक की चिंता थी। बहस, विचार, तर्क-वितर्क चले और तय हुआ कि तकनीकी और सैद्धांतिक रूप से यह ठीक नहीं है कि किसी दूसरी पार्टी के नेता को विधिवत साथ लाए बगैर अपनी पार्टी से टिकट दे दें। बात अटक गई। नेताजी फिलहाल टिकट विहीन हैं । न कांग्रेस, न बीजेपी (bjp)।
ये इसलिए हुआ...
दरअसल बबली ठाकुर की अपने क्षेत्र में गहरी पकड़ है। बीजेपी के पास उस क्षेत्र में इक्का-दुक्का ही बड़े चेहरे हैं। पार्टी चाहती थी, ठाकुर जुड़ जाएं तो आगे के सारे छोटे-बड़े चुनावों में एक मजबूत हाथ उनके हाथ लग जाएगा इसलिए जब कांग्रेस से ना हुई तो बीजेपी के बड़े नेता ने उन्हें विधिवत साथ लिए बगैर ही साथ ले लिया जिससे खेल बिगड़ गया। हालांकि सारी कवायद पार्टी के लिए ही थी। हां, बबली इस बात से जरूर प्रभावित हैं कि बीजेपी में कोई इतने बड़े कलेजे वाला नेता है जो दमखम से सिंगल नाम रखकर अपनों के टिकट के लिए लड़ सकता है।