GWALIOR News. भारतीय जनता पार्टी जनसंघ के जमाने से ग्वालियर में अपनी गहरी पैठ रखती है। जनसंघ का गठन ग्वालियर में हुआ और बीजेपी के बड़े नेता अटलविहारी वाजपेयी यहीं से थे। बीजेपी के पितृ पुरुष कहे जाने वाले कुशाभाऊ ठाकरे ने भी अपना ज्यादातर वक्त ग्वालियर में ही गुजारा और यहीं उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को देव दुर्लभ की संज्ञा दी। इसकी बजह थी यहाँ के कार्यकर्ताओं का वोटर को बूथ तक पहुंचाने का माद्दा जिसके चलते ग्वालियर नगर निगम बीजेपी का अभेद्य गढ़ बन गया। बीते पचपन सालों में कांग्रेस या कोई दल नगर निगम में अपनी सरकार नहीं बना पाए लेकिन इस बार मध्यप्रदेश में सबसे कम मतदान ने बीजेपी के तमाम रणनीतिकारों को हिलाकर रख दिया है। चुनाव प्रचार में दिखे उत्साह और बीजेपी वर्कर्स में व्याप्त निराशा पर पहले तो किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन जब मत प्रतिशत एकदम गिर गया तो सबके कान खड़े हो गए है क्योंकि विधानसभा के आम चुनाव में बस अब बमुश्किल सवा साल ही बाकी है।
बुधवार को संपन्न हुए नगर निगम चुनावों में प्रदेश में सबसे कम मतदान का रिकॉर्ड ग्वालियर में बना। यहाँ पचास फीसदी वोटर भी वोट डालने नहीं पहुंचे। यह आंकड़ा 49 . 3 प्रतिशत पर ही अटक गया। प्रशासन दोपहर तक उम्मीद कर रहा था कि वोट प्रतिशत 53 तक पहुँच जाएगा लेकिन ऐसा हुआ ही नहीं क्योंकि वोटर बूथ तक पहुंचे ही नहीं।
बीजेपी ने समय बढ़ाने की मांग की
वोटरों में उत्साह के अभाव और कार्यकर्ताओं की शिथिलता ने बीजेपी के नेताओं को दिन भर चिंतित करके रखा। बड़े नेताओं ने इस दौरान सत्ता और संगठन के नेताओं से अपनी चिंता से अवगत कराया कि बीजेपी के गढ़ कहे जाने वाले वार्डों में मतदान का प्रतिशत बहुत सिकुड़ रहा है। बूथ बदलने ,पर्चियां न पहुँचने और नाम वोटर लिस्ट से गायब होने की शिकायते हर बूथ पर मिलने से भी वोट प्रतिशत कम रहा और रही सही कसर दोपहर में अचानक आयी बारिस ने पूरी कर दी। सूत्र कहते हैं कि आनन्- फानन में पार्टी ने रणनीति बनाई कि कार्यकर्ताओं को एक्टिव किया जाए और वोटिंग का समय एक घंटे बढ़वाकर घरों से वोट निकलवाकर डलवाये जाएँ। पहले भी बीजेपी कार्यकर्ता ऐसा करते रहे है। इसी रणनीति के तहत बीजेपी नेता भगवान् दास सबनानी ने निर्वाचन आयोग को चिट्ठी भी लिखी लेकिन ग्वालियर में संगठन कार्यकर्ताओं को जुटा ही नहीं सका जो वोट ला सकें आखिरकार यह प्रयास भी विफल हो गया और जिला प्रशासन की सलाह पर आयोग ने समय नहीं बढ़ाया।
बाहरी वार्डों में अधिक मतदान
ग्वालियर नगर निगम सीमा में पॉश कॉलोनियों और व्यापारिक क्षेत्र बीजेपी के कट्टर समर्थक गढ़ कहे जाते है जहाँ से उसे भारी लीड मिलती है लेकिन इस बार इन क्षेत्र के मतदाताओं ने वोट डालने में कोई रूचि नहीं ली नतीजतन ऐसे वार्डों का मत प्रतिशत बहुत ही चिंताजनक रहा जबकि दलित ,मुस्लिम बस्तियां और आसपास के गाँव जो नगर निगम में शामिल हुए है इनको कांग्रेस समर्थक माना जाता है ,इनमें भारी मतदान हुआ है इसके चलते बीजेपी के सारे सियासी गणित गड़बड़ा गए। मध्य ग्वालियर में वोटिंग का एवरेज प्रतिशत चालीस पर ही ठिठका रहा जबकि शहर के बाहरी पिछड़ा बाहुल्य इलाकों के वार्ड में औसतन सत्तर फीसदी मतदान हुआ। वोटिंग के दौरान भी देखने में आया कि दलित और गरीब बस्तियों और तंग गलियों के बूथों पर तो वोटर्स की लम्बी -लम्बी कतारें लगीं थी लेकिन कॉलोनियों और सम्पन्न लोगों की बस्तियों में इक्का दुक्का वोटर ही बूथ तक जा रहे थे।
मुस्लिमो ने की जमकर वोटिंग
मतदान के दौरान यह देखने में आया कि इस बार मुस्लिम वोटर्स अपने मताधिकार खासे जागरूक दिखे। वार्ड एक ,घासमंडी और अवाडपुरा मुस्लिम बहुल माने जाते हैं। इन इलाकों के बूथ पर सुबह छह बजे से हो लम्बी -लम्बी कतारें लग गयीं थी। इन क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत भी काफी रहा। दलित और अल्पसंख्यक बाहुल्य जहांगीरपुर में शहर की सबसे अधिक पोलिंग हुई। यहाँ 655 मतदाताओं में से 615 ने मतदान किया जो 93 . 89 प्रतिशत रहा।
एक भी सैन्य परिवार ने वोट नहीं डाले
वार्ड 61 में छह मतदान केंद्र ऐसे है जहाँ सैन्य परिवार मतदान करते है। कुछ वर्तमान सेना में हैं तो कुछ पूर्व सैनिक है। इन बूथों को दशकों से बीजेपी का बूथ माना जाता है और इन पर इकतरफा उसे ही वोट मिलते हैं लेकिन इस बार आश्चर्य चकित ढंग से इन बूथों पर एक भी वोट नहीं पड़ा। माना जा रहा है कि इसकी बजह अग्निसेनिकों की भर्ती को लेकर सरकार द्वारा लिये गये निर्णय का विरोध है। मुरार केंटोनमेंट क्षेत्र में बड़ी संख्या में ऐसे परिवार निवास करते है जहाँ के युवा सेना में भर्ती की तैयारी करते हैं। बीते दिनों अग्नि सैनिकों की भर्ती के खिलाफ जो हिंसक आंदोलन हुआ था उसमें इस क्षेत्र के बड़ी संख्या में युवाओं के खिलाफ केस दर्ज हुए हैं ,इसका असर भी मतदान के दौरान देखने को मिला।
बीजेपी बोली - वोट काम पड़े इसकी बजह लापरवाही
मतदान पूर्ण भी नहीं हो पाया था उसके पहले ही बीजेपी के राज्य मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र पाराशर के एक तल्ख ट्वीट ने हलचल मचा दी। वे ग्वालियर के ही है और कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें लगातार बूथ न मिलने ,वोटर लिस्ट में नाम न होने जैसी अनेक शिकायतें मिल रहीं थी। पाराशर ने लिखा - नगरीय निकाय के प्रथम चरण में बड़ी संख्या में लोगों को मतदान की पर्चियां नहीं मिलीं और एक ही परिवार के वोट कई मतदान केंद्र पर विभाजित कर दिए गए ,कई लोग वोट ही नहीं डाल पाए। चुनाव आयोग बताये इसके लिए जिम्मेदार कौन है ?
एक मौते अनुमान के अनुसार लगभग पचास हजार वोटर दिन भर बूथ-दर -बूथ अपना नाम सूचियों में खोजते हुए भटकते रहे लेकिन उनका नाम ही नहीं मिला और वे बगैर वोट डाले वापिस घर लौट आये।