प्रवीण शर्मा, BHOPAL. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य के पेंशनर्स को केंद्र सरकार का एक पत्र बीते कई दिनों से सक्रिय किए हुए है। जैसे-जैसे पेंशनर्स की सक्रियता बढ़ती जा रही है, राज्य सरकार और पेंशनर्स के बीच विवाद भी गहराता जा रहा है। पेंशनर्स एसोसिएशन इस पत्र को आधार बनाकर सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार जिस धारा को विलोपित कर चुकी है, उसे अभी भी जिंदा रखकर राज्य सरकार प्रदेश के 4.50 लाख पेंशनरों को राहत से वंचित कर रही है। दूसरी तरफ सरकार यह कहते हुए इस प़त्र से दूरी बनाए हुए है कि जब केंद्र ने हमें पत्र भेजा ही नहीं है, तो हम नियम कैसे बदल लें।
असल में प्रदेश के पेंशनर्स केंद्रीय गृह मंत्रालय का तीन साल पुराना एक पत्र लेकर वल्लभ भवन की हर मंजिल पर अधिकारियों को दिखा रहे हैं। सामान्य प्रशासन, वित्त विभाग से लेकर संबंधित विभाग के मंत्रियों और मुख्यमंत्री तक यह पत्र पेंशनर्स पहुंचा चुके हैं। केंद्र के गृह मंत्रालय के एसआर सेक्शन द्वारा 13 नवंबर 2017 को जारी इस पत्र में राज्य पुनर्गठन अधिनियम की उस धारा 49-6 को विलोपित करने की सूचना दी गई है, जिसके तहत पेंशनर्स को महंगाई भत्ता देने के पहले दोनों राज्य सरकारों के लिए सहमति लेना अनिवार्य किया गया था। इस पत्र की प्रति पेंशनर्स एसोसिएशन मध्यप्रदेश के सामान्य प्रशासन और वित्त विभाग के साथ ही सभी विभागों के प्रमुखों को दे चुके हैं। साथ ही इस सहमति की बाध्यता के कारण पेंशनर्स को हो रहे नुकसान से बचाने की मांग कर रहे हैं।
इस धारा से इसलिए परेशान हैं पेंशनर्स
राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49-6 से पेंशनर्स की सबसे परेशानी की वजह यह है कि इसके कारण हमेशा से ही उनके साथ अन्याय होता है। जब भी महंगाई भत्ता देने की बात होती है, राज्य सरकार छत्तीसगढ़ से सहमति न मिलने की बात कहते हुए पेंशनर्स को उनकी राहत से दूर कर देती है। कई बार केवल नियमित कर्मचारियों के लिए ही सहमति आने का हवाला देकर पेंशनर्स का डीए और लेट कर दिया जाता है। अभी भी 2 अगस्त को मध्यप्रदेश सरकार द्वारा महंगाई भत्ते की जो
घोषणा की गई है उसमें बढ़ी हुई दर से महंगाई भत्ता जून माह में मिलने वाले मई के वेतन से मिलना है। इस वृद्धि के छठवें वेतनमान में डीए 174 तो सातवें वेतनमान का डीए 22 प्रतिशत हो गया है। मगर अभी भी केंद्र सरकार के कर्मचारियों को तो छोड़िए, अपने ही प्रदेश के नियमित कर्मचारियों की तुलना में पेंशनर्स काफी पीछे चल रहे हैं। केंद्र के कर्मचारियों को जहां 34 प्रतिशत डीए मिल रहा है तो एमपी के पेंशनर्स का डीए हाल ही में हुई वृद्धि के बाद मात्र 22 प्रतिशत हो सका है। बीते 27 महीनों में प्रदेश के पेंशनर्स को करीब 2000 करोड़ रुपए से वंचित होना पड़ा है।
ब्यूरोक्रेट्स को मान रहे दोषी
मध्यप्रदेश पेंशनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गणेश दत्त जोशी कहते हैं कि राज्य सरकार जान बूझकर केंद्र सरकार के इस पत्र को तीन साल से दबाकर बैठी है। इससे पेंशनर्स का काफी नुकसान हो रहा है। यह पत्र केंद्र सरकार द्वारा पेंशनर्स एसोसिएशन के साथ ही दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों को भी भेजा गया है। इस पर अमल न करने में मुख्य अड़ंगा आईएएस लॉबी ही है। आईएएस नहीं चाहते कि इसका लाभ पेंशनर्स को मिल सके। दोनों राज्यों के बंटवारे के तत्काल बाद आईएएस, आईपीएस और आईएफएस ने तो खुद को अलग कर लिया, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में ही अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों ने खुद के लिए यह आदेश करा लिया है कि जिस दिन केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों के लिए डीए बढ़ाएगी उसी दिन से इनके कैडर को भी लाभ मिल जाएगा। जबकि कर्मचारियों को अलग तिथि से लाभ मिलता है तो पेंशनर्स की राहत छत्तीसगढ़ की सहमति के इंतजार में लटकी रहती है। इस दोहरी नीति को खत्म करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पेंशनर्स एसोसिएशन ने हाल ही में पत्र भी भेजा है। साथ ही क्षे़त्रीय समिति की बैठक में इस विसंगति को दूर करने की मांग की है। पेंशनर्स के लिए संघर्षरत कर्मचारी अशोक पांडे का कहना है कि सरकार अपने हित में पेंशनर्स के हितों को रोकने का काम करती है। यह आदेश दोनों राज्यों के नीति-नियंताओं को मिल चुका है। मगर राजनीति के चलते इसे दबाया गया है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
वित्त विभाग के समस्त अधिकारी इस प़त्र को अपनी जानकारी में बताते हैं। इतना ही नहीं, विभाग के जिम्मेदारों तक यह पत्र संज्ञान में बताया मंे है। यानी सरकार को भी कई बार इसकी जानकारी दी जा चुकी है तो आला अधिकारी भी इस पत्र को पढ़ चुके हैं, लेकिन हर स्तर से इस पत्र की वैधानिकता पर सवाल उठा दिए गए। वजह, केंद्र सरकार के मंत्रालय मिनिस्टरी ऑफ होम अफेयर्स का जो पत्र पेंशनर्स एसोसिएशन बार-बार दिखा रहे हैं, वह आज तक राज्य सरकार को नहीं मिला है। न तो मध्यप्रदेश शासन को मिला है और न छत्तीसगढ़ शासन ही इस पर कोई काम कर रहा है। मध्यप्रदेश के वित्त विभाग के आला अधिकारियों का कहना है कि जब केंद्र सरकार ने विधिवत रूप से कोई प़त्र राज्य शासन को भेजा ही नहीं है तो उसे विलोपित कैसे मान लिया जाए।
वैधानिकता जांचने को भी कोई तैयार नहीं
अपने पेंशनर्स के हितों के लिए अधिकारी कितने उदार और गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तीन साल से वल्लभ भवन की हर मंजिल और हर कमरे में इस पत्र की जानकारी है। अधिकारी पहले झटके में इसे नकार देते हैं, लेकिन केंद्र के गृह मंत्रालय से इसकी सच्चाई जानने की जहमत आजतक किसी ने नहीं उठाई। अधिकारी चाहें तो एक फोन पर इसकी सच्चाई पता की जा सकती है। सीएम से लेकर हर मिनिस्टर तक लगभग हर माह दिल्ली के चक्कर लगाते हैं, लेकिन किसी ने कभी इस पर चर्चा नहीं की। इससे शासन-प्रशासन की मंशा पर पेंशनर्स द्वारा सवाल उठाना भी लाजिमी है।
बाकी नए राज्यों में नहीं है ऐसा बंधन
छत्तीसगढ़ के बाद उत्तराखंड, झारखंड और तेलंगाना राज्य का भी गठन हुआ है। यूपी से उत्तराखंड, बिहार से झारखंड और तमिलनाडू से टूटकर तेलंगाना बना है, लेकिन तीनों ही राज्यों में इस तरह का कोई बंधन नहीं है। यूपी, बिहार और तमिलनाडू ने खुद को इस अधिनियम की धारा 49 की उपधारा 6 से खुद को अलग रखा है तो तीनों नए राज्य उत्तराखंड, झारखंड व तेलंगाना भी अपने निर्णय खुद लेते हैं। ऐसे में मध्यप्रदेश के लिए ही इस तरह का बंधन किसी के गले नहीं उतर रहा है।