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BHOPAL. निकाय चुनाव की हलचलों के दौरान किसी रोज आपके घर का दरवाजे पर कोई ऐसा चेहरा आ जाए, जो फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करे। पेश से डॉक्टर हो, इंजीनियर हो या वकील हो। आपकी समस्याओं को खुद बताए और जाते-जाते वोट की गुहार लगा जाए। अगर ऐसा कुछ हो तो चौंकिएगा नहीं। हो सकता है कि आपके दरवाजे आकर वोट मांगने वाला कांग्रेस-बीजेपी से हट कर किसी और पार्टी से हो। प्रत्याशी का ये अंदाज वोट में कितना तब्दील होगा, ये बाद की बात है। लेकिन ऐसे किसी प्रत्याशी और पार्टी की आमद की खबर से प्रदेश में खलबली जरूर मची हुई है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ये चुनावी परिदृश्य चिंता का विषय है। इसे हाथी की हुंकार और बढ़ाने के लिए तैयार है।
दो साल में तस्वीर काफी बदल चुकी है
तकरीबन सात साल के बाद वो वक्त आया है, जब प्रदेश में नगरीय निकायों को नए सरकार मिलने वाले हैं। वैसे तो चुनाव हर पांच साल में होने चाहिए। लेकिन कुछ कारणों से नगरीय निकाय के चुनाव टलते टलते अब हो रहे हैं। पांच साल पहले नगर सरकार के ये चुनाव होते तो शायद और बात होती। लेकिन दो साल में तस्वीर काफी बदल चुकी है। अब कुछ नए सियासी सूरमा भी मध्यप्रदेश के मैदान में दम मारने को तैयार हैं। और कुछ पुराने लड़ाके फिर मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। जाहिर है ऐसा जब भी होगा प्रदेश में कुछ नए सियासी समीकरण बनेंगे और कुछ पुराने सियासी समीकरण बुरी तरह बिगड़ेंगे।
आप के हौसले बुलंद हैं
नगरीय निकाय से अपनी चुनावी जमीन को मजबूती देने की तैयारी में है, आम आदमी पार्टी। जिसका कॉन्फिडेंस पंजाब चुनाव में जीत के बाद काफी हाई है। तमाम राजनीतिक जानकार यूं भी अब आप के तारे के चमकने की भविष्यवाणी कर ही चुके हैं। पहले तो पंजाब में जीत और उसके बाद सीधे बीजेपी की टक्कर में बताए जाने के बाद हौसले बुलंदियों पर होने भी चाहिए। सो दूसरे दलों पर झाड़ू फेर कर अपनी नगर सरकार को चमकाने के इरादे से आप बड़ी धमक के साथ चुनाव में उतर रही है। इधर आप की झाड़ू लगना शुरू हुई है और उधर बीएसपी के हाथी ने भी प्रदेश में चहलकदमी शुरू कर दी है। इरादा वही है नगरीय निकाय चुनाव में प्रत्याशी उतारना। वैसे एक समय ग्वालियर चंबल की कुछ सीटों पर दबदबा रखने वाली बीएसपी का चंबल समेत पूरे प्रदेश में बुरा हाल है।
इस हाल को संवारने और हाथी की वजनदारी को साबित करने बीएसपी ज्यादा से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने के मूड में है। ये दो दल जब चुनावी मैदान में होंगे तो बीजेपी या कांग्रेस किसी एक को तो जबरदस्त नुकसान उठाना ही होगा। दो साल पहले चुनाव होते तो मुकाबला सीधे कांग्रेस और बीजेपी का होता। लेकिन अब चार दलों में मुकाबला होगा। जिसमें आप की भूमिका वाकई चुनावों को दिलचस्प बनाएगी।
प्रत्याशियों को यूपीएससी जैसी सख्त गाइडलाइन से गुजर कर जाना है
आप की तैयारी जोरदार है। फॉर्मूले नए हैं। चुनाव पूरा नए कलेवर में पेश करने की तैयारी में है। उम्मीद भी यही है कि पंजाब जैसा कोई करिश्मा एमपी में दिखा सकेगी। मध्यप्रदेश में आप के मौजूदा नेताओं से रूबरू होंगे तो उनकी बातें सुनें तो ये कंफ्यूजन भी हो सकता है कि चुनाव नगर सरकार का नहीं कुछ और है। जहां प्रत्याशियों को यूपीएससी जैसी सख्त गाइडलाइन से गुजर कर जाना है। ये प्रयोग नया है। इसे जनता कितना स्वीकारेगी ये चुनावों के बाद तय होगा। फिलहाल ये समझना जरूरी है कि घाटा किसका ज्यादा होने वाला है। खलबली कांग्रेस बीजेपी दोनों में समान है। तो क्या ये दोनों ही आप की आमद को अपने लिए खतरे की दस्तक मान रही हैं।
कांग्रेस या बीजेपी किसके वोट कटेंगे ये समझने से पहले आप के वो फॉर्मूले जान लें, जो चुनाव के बासे प्रचारों के बीच कुछ नया स्वाद लेकर आने वाले लगते हैं। आप के प्रदेश अध्यक्ष पंकज सिंह ये साफ कर चुके हैं कि टिकिट उन्हें ही दिया जाएगा, जो पढ़े लिखे कैंडिडेट होंगे। जिसमें डॉक्टर और इंजीनियर भी शामिल हो सकते हैं। तीन सी का क्राइटेरिया प्रमुख होगा। 3C का मतलब है कैंडिडेट- करप्ट, क्रिमिनल और कम्युनल नहीं होना चाहिए। इसके अलावा दिल्ली की तरह छूट के ऐलान भी खूब करने का प्लान है। पंजाब में जीत के बाद मध्यप्रदेश में आप के 38 हजार नए सदस्य बने हैं। किसी भी नए दल के लिए ये एक ठीक ठाक आंकड़ा है।
आप, कांग्रेस का ही सफाया करेगी
जिस पर वो बड़ा दांव खेलने की तैयारी कर सकता है। आप भी वही करने जा रही है। अब बात करते हैं किसी कितना नुकसान। पंजाब चुनाव को देखें तो लगता है कि आप कांग्रेस का विकल्प बन सकती है। यानी आप का उम्मीदवार जहां खड़ा होगा वहां कांग्रेस के वोट कटेंगे। आप की झाड़ू नगर सरकार में भी कांग्रेस का ही सफाया करेगी। लेकिन एक आंकलन ये भी कहता है कि जहां वोटर्स को बीजेपी का विकल्प चाहिए वहां आम आदमी पार्टी पहली पसंद बन रही है। ऐसे में बीजेपी की काट भी आप को कहा जा सकता है।
आप की भूमिका क्या होगी इसका विश्लेषण लंबा चलेगा। इस बीच बसपा की भूमिका कांग्रेस के लिए नुकसानदायी मानी जा सकती है। क्योंकि बसपा पहले भी कई चुनावों में कांग्रेस के वोट काटती रही है।
हार-जीत, किसकी कुर्सी किसकी सरकार
इन सारे सवालों के जवाब तो मिलते रहेंगे। फिलहाल एक नए पॉलीटिकल ड्रामा देखने के लिए तैयार रहिए। जिसका ट्रेलर नगरीय निकाय चुनावों में नजर आएगा। इन चुनावों आप खाली हाथ रही तो बात अलग है। लेकिन चंद सीटें भी निकालने में कामयाब हो गई तो समझिए कि विधानसभा के दौरान होने वाला सियासी सर्कस कुछ अलग ही करतबों के साथ दिखाई देगा। क्योंकि आप की तो आदत है एक सीट से शुरुआत करते सरकार बनाने की। फिलहाल तो एमपी में ये डर ही है और ये डर ही कई नए पॉलीटिकल ड्रामों की वजह बन जाए तो ताज्जुब नहीं होगा।