GWALIOR: सियासत में नयी दहशत ,2023 की जंग में किसको साफ़ करेगा आप का झाड़ू,

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Dev Shrimali
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GWALIOR: सियासत में नयी दहशत ,2023 की जंग में किसको साफ़ करेगा आप का झाड़ू,

GWALIOR News.   ग्वालियर नगर निगम में आम आदमी पार्टी न तो मेयर का चुनाव जीती  और न ही वह अपना एक भी पार्षद जीता पाई लेकिन बावजूद इसके सियासी गलियारों में अब उसका भय सताने लगा है। स्थानीय निकायों के चुनावों में उसने चुपके से जो शानदार एंट्री मारी है उसके चलते अब कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों के नेताओं के माथे पर चिंता की सलवटें साफ़ नज़र आने लगीं हैं। इसकी बजह है अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव। आप ने केवल ग्वालियर शहर में ही 71 हजार से ज्यादा वोट बटोरकर इस चिंता को और भी घनीभूत कर दिया है।





तीसरे नंबर पर रहीं मेयर





अब तक के चुनाव चाहें लोकसभा हो,विधानसभा हो ,मेयर या पार्षद दलीय आधार पर सीधा मुकाबला कांग्रेस बनाम बीजेपी ही होता था। कुछ वार्डों में कभी -कभार आम आदमी पार्टी अपनी आमद दर्ज जरूर कराती थी लेकिन अब उसका भी कोई ख़ास जोर नहीं रहा। लेकिन इस बार केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने पहली बार ही में धमाकेदार एंट्री कर  न केवल राजनीतिक प्रेक्षकों काध्यान खींचा बल्कि सारे सियासी समीक्षण गड़बड़ा दिये। उसकी मेयर पद की उम्मीदवार रूचि गुप्ता तीसरे नंबर पर रहीं। उन्होंने 45 हजार 762 वोट हासिल कर सबको चौंका दिया।





कांग्रेस से आईं आप ने मेयर का उम्मीदवार बनाया





कांग्रेस से आकर चुनाव लड़ीं रूचि गुप्ता मूलतः डाइटीशियन हैं। कुछ साल पहले उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागी और उन्होंने कांग्रेस से जुड़कर काम शुरू किया। कमलनाथ ने उन्हें महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी बनाया लेकिन जैसी कि कांग्रेस की संस्कृति है , पार्टी के वरिष्ठ पुरुष और महिला नेताओं ने उनकी टांग खिंचाई शुरू कर दी। विवाद मीडिया से बढ़कर सड़क तक आ गया। आखिरकार कमलनाथ ने उन्हें जिला अध्यक्ष पद से हटाकर प्रदेश महिला  कांग्रेस में महामंत्री के पद पर शिफ्ट कर दिया। लेकिन रूचि समझ गयीं कि कांग्रेस में वे काम नहीं कर पाएंगी।  इस बीच नगर निगम चुनावों की घोषणा हो गयी। आप नेताओं ने उनसे संपर्क किया और अचानक उनको मेयर पद के लिए आप का टिकट देकर मैदान में उतार दिया।





शानदार प्रदर्शन किया





चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस - बीजेपी ही नहीं मीडिया भी आम आदमी पार्टी को गंभीरता से नहीं ले रही थी। लेकिन मतदान के दिन ही साफ़ हो गया कि आप ने बहुत वोट लिए है। खासकर युवा और महिलाउन्हें बीएसपी से ढाई गुना से भी ज्यादा  वोट मिले।



आप पहली बार अपने पार्षद प्रत्याशियों को लेकर भी चुनावी मैदान में उतरी। हालाँकि उसका एक भी उम्मीदवार जीत की दहलीज तक नहीं पहुंच सका लेकिन उसके प्रत्याशियों ने 25 हजार 632 वोट बटोरकर अनेकों के समीकरण गड़बड़ा दिए। तीन वार्डों में आप उम्मीदवारों ने कड़ी टक्कर देते हुए दूसरा स्थान हासिल किया। जबकि 14 वार्ड में उसके उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। अनेक वार्ड में तो उसके प्रत्याशियों ने तो एक से लेकर ढाई हजार तक वोट हासिल  कर लिए।





पंद्रह वार्ड का गणित बिगाड़ा



मतदाताओं ने भी आप को खूब वोट दिए। परिणाम भी यही बताते हैं।  पहली बार मैदान में उतरी आप प्रत्याशी को जीत भले ही न मिली हो लेकिन उसने 45 हजार 762 वोट हासिल क्र तीसरे नंबर पर आ गयी।आम आदमी पार्टी के नेताओं का कहना है कि उन्हें भरोसा था कि उनके कम से कम पांच पार्षद  जीत जाएंगे लेकिन त्रिकोणीय मुकाबले में दो तो नजदीक पहुंचकर हार गए। लेकिन चुनावों का विश्लेषणबताता है कि आम आदमी पार्टी ने कम से कम पंद्रह वार्डों में जीत के सभी समीकरण बदल दिए जिससे परिणाम भी बदल गए।





संभाग में भी अच्छा प्रदर्शन



पहली बार मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी ने ग्वालियर में भले ही कोई पार्षद की सीट नहीं जीती हो लेकिन उसने संभाग भर में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है भिंड जिले के दबोह और आलमपुर ,ग्वालियर जिले की आंतरी और डबरा तथा मुरैना जिले के अम्बाह - पोरसा में उसने जीत का खाता भी खोला है और उनके कई प्रत्याशी मामूली अंतर् से हारे भी हैं। अपने प्रदर्शन से आप कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह का संचार हुआ है।





23 को लेकर खौफ का माहौल





भले ही कांग्रेस और बीजेपी के नेता फिलहाल आप को कोई खतरा नहीं मान रहे। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष अशोक सिंह कहते हैं कि आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी के मेयर पद पर 45 हजार वोट आना बड़ी बात है लेकिन इससे कोई सियासी बदलाव की संभावना के संकेत नहीं मिलते। उनका कहना है कि कभी -कभी तो इतने वोट बागी ले जाते हैं। पिछले विधानसभा चनाव में बीजेपी की बागी समीक्षा गुप्ता काफी वोट ले गयीं थी। बीएसपी जैसी पार्टी भी अब सिर्फ बीस - पच्चीस हजार पर अटकी है क्योंकि एमपी में जनता बदलाव चाहती है और वह विकल्प से ही हो सकता है। प्रदेश में बीजेपी को सत्ता से सिर्फ कांग्रेस ही हटा सकती है क्योंकि उसी के पास एक मजबूत सांगठनिक ढांचा और जनाधार है। ऐसा ही विचार बीजेपी के नेता रखते है। वे तो ग्वालियर की करारी पराजय के बाद भी यह दावा करते हैं कि अंचल  बीजेपी ही आमजन की पसंद है इसलिए उसके विकल्प की किसी को तलाश भी नहीं है लेकिन सच बात ये है कि आप के प्रदर्शन के बाद के खतरे की घंटी उन्हें साफ सुनाई दे रही है  जो उन्हें डरा भी रही है।



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