भोपाल. कैलाश विजयवर्गीय की भुट्टा पार्टी में ये दोस्ती हम नहीं भूलेंगे गाना खूब गूंजा। सुर दिए खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने। क्या वाकई दोस्ती उतनी ही गाढ़ी है, जितनी इस वीडियो में दिखाने की कोशिश की जा रही है। रिश्तों में तल्खी भले ही दिखाई ना दे रही हो, पर कहीं ना कहीं है जरूर। इस तल्खी के तार जुड़े हैं, देश के सबसे बड़े पेंशन घोटाले से। चलिए जरा समझते हैं, आखिर क्या था प्रदेश को हिलाने वाला इंदौर का पेंशन घोटाला।
- 2000 से 2005 के बीच इंदौर में वृद्धावस्था पेंशन के नाम करोड़ों का गबन किया गया था।
ऐसे हुआ था घोटाले का खुलासा: पेंशन घोटाला उजागर होने के बाद प्रदेश ही नहीं देश का सियासी पारा भी चढ़ गया था। ये वहीं दौर था जब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी। तत्कालीन संभाग आयुक्त अशोक दास ने इस पेंशन घोटाले को खुलासा किया था। कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गज राजनेता का नाम सामने आने के बाद 8 फरवरी 2008 में इस घोटाले की जांच के लिए जस्टिस एनके जैन की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग गठित किया गया। उस समय प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे। आयोग ने 15 सितंबर 2012 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। सूत्र बताते हैं कि जैन आयोग की जांच में कैलाश विजयवर्गीय पर कोई आरोप सिद्ध नहीं हो पाया, जिसका मतलब साफ है कि विजयवर्गीय अब इस घोटाले की तरफ से निश्चिंत हो सकते हैं। ताज्जुब तो इस बात का है कि 2012 से लेकर 2018 तक जैन आयोग का जांच प्रतिवेदन मंत्रालय की अलमारी में बंद रखा गया। ये जांच रिपोर्ट मंत्रालय से दो कदम दूर विधानसभा की पटल तक नहीं पहुंच पाया। ये हाल तब था, जब प्रदेश में बीजेपी की ही सरकार थी।
तीन सदस्यीय मंत्रिमंडल समिति का गठित: प्रदेश में जब कमलनाथ की सरकार बनी, तब पता चला कि पेंशन घोटाले मामले की जांच रिपोर्ट और दास का प्रतिवेदन दोनों गायब हैं। अगर शिवराज सरकार चाहती तो रिपोर्ट के आधार पर बहुत पहले ही कैलाश विजयवर्गीय को क्लीन चिट देकर निश्चिंत कर सकती थी। क्योंकि, उनकी सरकार हटने के बाद विजयवर्गीय की मुश्किलें बढ़ने की पूरी-पूरी संभावनाएं थीं। हुआ भी यही। 2018 में सत्ता में वापसी के बाद कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने कुछ पुराने घोटालों की फाइल से धूल हटाने का फैसला किया। अब जब जांच और कार्रवाई आगे बढ़ाने की बात हुई, तब जैन आयोग की रिपोर्ट और दास का प्रतिवेदन ही गायब हो गया। अफसरों ने दलील दी कि नए भवन में शिफ्टिंग के दौरान फाइलें इधर उधर हो गईं, हालांकि कमलनाथ सरकार बीजेपी सरकार में हुए घोटालों की जांच और नतीजों पर पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध नजर आई। विजयवर्गीय पर लगे वृद्धावस्था पेंशन घोटाले की जांच के लिए तीन सदस्यीय मंत्रिमंडल समिति भी गठित की गई। जिसमें तत्कालीन मंत्री तरूण भनोत, कमलेश्वर पटेल और महेंद्र सिंह सिसोदिया शामिल थे। कमेटी तीन अलग-अलग बिंदुओं पर घोटाले की जांच करने वाली थी।
तत्कालीन कांग्रेस सरकार में दिग्विजय सिंह ने दिल्ली में मीडिया से कहा था कि पेंशन घोटाले में कैलाश विजयवर्गीय पर कार्रवाई होगी। इस पर कैलाश विजयवर्गीय ने पलटवार किया था और कहा था कि कर लें जांच, क्या ही कर लेंगे। अपनी सरकार में कैलाश विजयवर्गीय पार्टी फोरम के अंदर तो बात रखते आए हैं। लेकिन सार्वजनिक रूप से पेंशन घोटाले की फाइल को विधानसभा में पेश ना करने को लेकर कोई बयान नहीं देते।
पेंशन घोटाले में ये बिन्दु शामिल थे-
- सहकारी समितियों ने गलत तरीके से दी गई पेंशन की बड़ी रकम जमा करवाई
मामला किसी अंजाम तक पहुंचेगा: इसे कैलाश विजयवर्गीय की खुशकिस्मती ही कहा जा सकता है कि कमेटी की जांच पूरी हो पाती, उससे पहले ही कमलनाथ सरकार गिर गई। कमलनाथ के मंत्रियों की कमेटी अगर नई फाइंडिंग्स के साथ आगे आती तो शायद विजयवर्गीय पर शिकंजा कस सकता था। कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान को ही प्रदेश की कमान संभालने का मौका मिला। सत्ता में वापसी के बाद अब तक विधानसभा के कई सत्र हो चुके हैं। लेकिन कैलाश विजयवर्गीय से जुड़ी जैन आयोग की रिपोर्ट को पटल पर आने का अब तक इंतजार है।
पिछले सत्र में भी कांग्रेस विधायक सज्जन सिंह वर्मा ने इस घोटाले से जुड़ा सवाल उठाया था, जिसके बदले में वही टका-सा जवाब मिला कि पटल पर ये जानकारी रखने की जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग की है। अफसरों को पता था कि बजट सत्र में एक बार फिर इस घोटाले पर सवाल हो सकता है। इसलिए सामान्य प्रशासन विभाग ने चार माह पहले ही 22 नवंबर 2021 को सामाजिक न्याय विभाग से इस मामले में एक्शन टेकन रिपोर्ट मांगने के बहाने भेज दिया। जिससे सवाल लगे तो सामान्य प्रशासन विभाग हर बार की तरह टालमटोल वाला जवाब देजा सके। इन सबको देखकर कहा जा सकता है कि शिवराज सरकार की सरपरस्ती में ये मामला किसी अंजाम तक पहुंचेगा। इस पर संशय ही है, जिसके बाद जनता यही जानना चाहती है कि क्या शिवराज सरकार में जानबूझ कर उस रिपोर्ट को पटल पर नहीं आने दिया जा रहा। क्योंकि, अगर कैलाश विजयवर्गीय को क्लीनचिट मिल गई, तो उसके बाद विजयवर्गीय एक बार फिर प्रदेश की सियासत में पैठ बढ़ाने की कोशिश करेंगे। राजनीति जानकार भी यही मानते हैं कि खुद शिवराज सिंह चौहान ये चाहते हैं कि विजयवर्गीय इस मामले में उलझे रहें, ताकि सूबे में उनकी सियासी राह आसान बनी रहे। इस सब पर एक शायरी याद आती है-
चेहरा देखकर इंसान पहचानने की कला थी मुझमें।
तकलीफ तो तब हुई जब, इंसानों के पास चेहरे बहुत थे।।