मध्यप्रदेश में बुलडोजर दिलाएगा इंसाफ या सत्ता? सीएम की नई राजनीति

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Shivasheesh Tiwari
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मध्यप्रदेश में बुलडोजर दिलाएगा इंसाफ या सत्ता? सीएम की नई राजनीति

Bhopal. मुद्दा ये है कि क्या किसी सरकार को लोकप्रियता के आधार पर फैसले लेना चाहिए या फिर संविधान और कानून के मुताबिक। ये मुद्दा मप्र में चल रहे बुलडोजर के संदर्भ में है। यूपी चुनाव खत्म होने के बाद मप्र में बुलडोजर चलने की कार्रवाई शुरू हुई है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यूपी के बुलडोजर बाबा की तर्ज पर बुलडोजर मामा पुकारा जा रहा है। जनभावनाओं को देखते हुए ये लोकप्रिय कदम कहा जा सकता है और ये भी तय है कि बीजेपी ने बुलडोजर मामा का दांव खेलकर 2023 में सत्ता वापसी की राह आसान कर ली है। बीजेपी इस लोकप्रिय कदम पर चुनाव जीतने जा रही है। 6 सवाल हैं जिनके आधार पर इस पूरे मुद्दे की पड़ताल करना बेहद जरूरी है। 





यूपी में बाबा (योगी आदित्यनाथ) का बुलडोजर चला। बुलडोजर का ऐसा प्रचार हुआ कि यूपी में दूसरी बार बीजेपी की सरकार बन गई। बुलडोजर, सख्त कानून व्यवस्था का प्रतीक बनकर उभरा, लेकिन बाबा का बुलडोजर चुनाव के ठीक बाद एमपी में दाखिल हो गया। मामा के बुलडोजर के नाम से। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद कहा कि अपराधी कोई भी उसे खत्म कर दिया जाएगा। बुलडोजर चलने लगे। बलात्कार के आरोपियों के घर ढहाए जाने लगे। माफियाओं के घर तोड़े गए। गुंडे-बदमाशों की संपत्तियां जमींदोज गई। कार्रवाई करते वक्त ये कहा गया कि अपराधियों के अवैध अतिक्रमण तोड़े गए। इस फैसले के पीछे तीन मकसद नजर आते हैं। पहला- जनता के बीच सख्त सरकार की छवि बनाना, दूसरा- अपराधियों में खौफ पैदा करना। जो होगा या नहीं ये नहीं कहा जा सकता। तीसरा- लोकप्रियता हासिल करना जिससे चुनाव की राह आसान हो लेकिन यहां उठते हैं 6 सवाल- 







  • पहला सवाल- क्या ये बुलडोजर संस्कृति भारत के लोकतांत्रिक ढांचे पर चोट तो नहीं कर रही ?



  • दूसरा सवाल- क्या ये भारत के नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों पर चोट तो नहीं है ?


  • तीसरा सवाल- क्या इससे देश की न्यायिक प्रक्रिया के समानांतर प्रक्रिया तो नहीं खड़ी हो रही ?


  • चौथा सवाल- जिस अपराधी के घर पर बुलडोजर चला, उसका अतिक्रमण पहले क्यों नजर नहीं आया ?


  • पांचवां सवाल- क्या अतिक्रमण करने वाला दोषी तभी माना जाएगा जब वो अपराध करेगा ?


  • छटवां सवाल- क्या प्रशासन को अलौकिक शक्तियां हासिल हो गई जो अपराध करने के चंद घंटों में अतिक्रमण का पता लगा लेता है? 






  • ये बोले एक्सपर्ट्स





    इंदौर के सीनियर एडवोकेट केपी माहेश्वरी का कहना है कि ये बिल्कुल सही नहीं है कि किसी अपराधी को बिना सुने, बिना समझे प्राकृतिक न्याय (नेचुरल जस्टिस) के सिद्धांत के विरुद्ध दंड पहले दिया जाए, अपराध बाद में तय हो। सिद्धांत ये भी है, अपराध से घृणा की जाए, अपराधी से नहीं। अपराध जब सिद्ध होता है, चाहे वो गंभीर से गंभीरतम मामला हो, उसके बाद ही अदालत उसे सजा देती है। सबूतों के अभाव में उसे दोषमुक्त किया जाता है।





    वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक का कहना है कि आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाना विधिसम्मत है ही नहीं। इसकी अपनी एक पूरी प्रक्रिया है। चाहे चोरी, डकैती, बलात्कार, दंगा-पथराव किसी भी घटना का आरोपी हो, बाकायदा रिपोर्ट होगी, हमारी दंड संहिता है, दंड प्रक्रिया संहिता है, जिस स्तर का अपराध होगा, अदालत सजा देगी। लेकिन इसे सही नहीं कहा जा सकता कि आरोपी की संपत्ति को नेस्तनाबूत कर दिया जाए। अगर आरोपी कोर्ट से निर्दोष साबित हो गया तो आप क्या करेंगे?  





    सीनियर जर्नलिस्ट अभिलाष खांडेकर के मुताबिक, 2 साल से शहर या गांव में सरकारी जमीन पर या नियम विरुद्ध अतिक्रमण हो रहा है या बिल्डिंग बन रही है तो संबंधित नगर निगम का अधिकारी, कलेक्टर, म्यूनिसिपल कमिश्नर इन लोगों की जिम्मेदारी कौन तय करेगा?





    एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी कहते हैं कि हमारे संविधान में जो भी कानून बनाए गए हैं, वो बेहद सोच-समझकर बनाए गए हैं। जो काम कोर्ट का है, वो पुलिस नहीं कर सकती। एकतरफा किसी भी वर्ग विशेष के घरों पर बुलडोजर चलाने को कतई सही नहीं कहा जा सकता। इससे लोगों को प्रशासन पर भरोसा भी कम होगा।





    सीनियर जर्नलिस्ट और कई अखबारों में अहम पदों पर रहे श्रवण गर्ग का कहना है कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है, इसे रोका जाना चाहिए। अदालतों को इस पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए।  





    रिटायर्ड आईपीएस एनके त्रिपाठी का कहना है कि ये चौंकाता है कि इस प्रकार के जो भी अपराध मिलते हैं, वहां अवैध निर्माण ही मिलता है। अब हर कहीं इतनी बड़ी संख्या में अवैध निर्माण हो चुके हैं कि आप कहीं भी हाथ डालें, निर्माण अवैध ज्यादा दिखते हैं, वैध कम। शासन-प्रशासन ये देखे कि कहां अवैध निर्माण हुआ है, उन्हें गिराया जाए, इसे अपराध से ना जोड़ा जाए।





    भारत का लोकतंत्र संघीय ढांचा है यानी केंद्र सरकार और फिर राज्यों में सरकारें। वो किसी भी दल की हो सकती है। सभी संविधान को मानने के लिए बाध्य। यदि केंद्र सरकार को लगता है कि राज्य सरकार गलत कर रही है तो केंद्र आपत्ति उठा सकता है। यदि राज्य सरकारों को लगता है कि केंद्र का फैसला गलत है तो वो उसपर आपत्ति उठा सकती है। किसी राज्य ने अच्छा किया या अच्छी योजना है तो उसे दूसरे राज्य अपना सकते हैं। केंद्र भी लागू कर सकता है। आप इसे आपसी समन्वय कह सकते हैं। लेकिन ये निर्भर करता है, राजनीतिक दलों पर। केंद्र में जिस दल की सरकार है और राज्य में भी उसी दल की सरकार है तो ये तालमेल बेहतर होता है। नहीं तो आपसी रस्साकशी में 5 साल गुजर जाते हैं। यूपी में बुलडोजर चलने की शुरूआत पांच से छह साल पहले 2017 में हुई। अब बुलडोजर चलाने का काम इतना ही अच्छा था तो बाकी राज्यों ने इसकी शुरूआत पहले क्यों नहीं की और मप्र में भी इसकी शुरूआत पहले क्यों नहीं हुई। 





    दो साल में ये कार्रवाई





    शिवराज द्वारा शुरू किए गए विशेष अभियान में राज्य में 1.4.20 से 31.3.22 की 2 वर्ष की अवधि में कुल 21,502 एकड़ शासकीय एवं निजी भूमियों को भूमाफिया, गुण्डों और आदतन अपराधियों के अवैध अतिक्रमण/क़ब्ज़ों से जिला एवं पुलिस प्रशासन द्वारा मुक्त कराया गया है। उक्त अवैध अतिक्रमण/क़ब्ज़ों की भूमियों का बाज़ार मूल्य लगभग रु 18,146 करोड़ है। भूमाफिया, गुण्डों, आदतन अपराधियों के 12,640 अवैध निर्माण (मकान, दुकान, गोदाम, मैरिज गार्डन, अवैध फ़ैक्टरी आदि) नियमानुसार तोड़े/हटाए गए हैं। 188 भूमाफिया को NSA में निरुद्ध किया गया और 498 भूमाफ़िया को ज़िला बदर किया गया।







    • भूमाफिया के विरुद्ध दर्ज किए गए कुल केस - 1791



  • तोड़े गए अवैध अतिक्रमण की संख्या - 3814


  • मुक्त कराई गई कुल भूमि - 2243.80 एकड़


  • तीन माह में मुक्त कराई गई भूमि की अनुमानित कीमत - 671.61 करोड़ रुपए




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