हरीश दिवेकर, Bhopal. कांग्रेस नेता कमलनाथ ने बीजेपी के फॉर्मूले की बड़ी काट निकाल ली है। उत्तरप्रदेश में जोरदार जीत हासिल करने वाली बीजेपी को कमलनाथ ने उसी की भाषा में जवाब देने का फैसला कर लिया है। कांग्रेस के आलाकमान और दिग्गज नेता भले ही चिंतन और मंथन पर जोर दे रहे हों। लेकिन कमलनाथ ने मध्यप्रदेश का चुनावी एजेंडा तय कर दिया है। कांग्रेस उससे सहमत हो या न हो। कमलनाथ के फैसले पर चलना उनकी मजबूरी है। मजबूरी इसलिए कि कमलनाथ का कद और तजुर्बा फिलहाल पार्टी के आलाकमान से ज्यादा है। उसी पर भरोसा करते हुए कांग्रेस मध्यप्रदेश में कांग्रेस कमलनाथ के पीछे है और कमलनाथ का फैसला ये है कि वो बीजेपी की चाल यहां कामयाब नहीं होने देंगे।
हिंदुत्व सिर्फ हिंदुत्व होता है- लोकेंद्र पाराशर
कुछ ही दिन पहले मध्यप्रदेश बीजेपी के मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर ने सोशल मीडिया पर एक मैसेज पोस्ट किया। लिखा कि हमें 'हार्डकोर हिंदुत्व' शब्द पर गंभीर आपत्ति है। हिंदुत्व सिर्फ हिंदुत्व होता है, उसकी पवित्रता को भंग करने की कोशिश कृपया ना करें। ये उस पार्टी के नेता का पोस्ट है, जो पूरे देश में इस वक्त हिंदुतत्व की फ्लेग बेयरर मानी जा रही है। हिंदुवादी पार्टी का तमगा जीत चुकी बीजेपी के नेता हार्ड और सॉफ्ट हिंदुत्व पर एतराज जता रहे हैं। क्या ये कमलनाथ इफेक्ट है। जिन्होंने ऐसी सोची समझी रणनीति तैयार की कि बीजेपी के हिंदुत्व के मुद्दे को मध्यप्रदेश में न्यूट्रलाइज कर दिया है।
हिंदुत्व की रेस में बीजेपी कांग्रेस से आगे है
हाल ही में हुए उत्तरप्रदेश के चुनाव को कौन भुला सकता है। इस चुनाव से पहले सारे एग्जिट पोल्स ने यही भविष्वाणी की थी बीजेपी की सरकार फुल मेजोरिटी से बनना मुश्किल है। अखिलेश यादव की आंधी को भी बहुत तेज माना जा रहा था। बीजेपी ये हालात शायद भांप चुकी थी। जिसकी नजाकत समझते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने गंगा मे डुबकियां लगाई। मंदिर में जाकर डमरू भी खूब बजाई। हर मंदिर में उनका जाना और पूजा अर्चना के उनके तरीके को भव्य इवेंट बनाकर पेश किया गया। हिंदुत्व का महिमा मंडन जम कर हुआ और लोगों को रास भी आया। कहना गलत नहीं होगा कि हिंदुत्व की रेस में इस चुनाव के बाद बीजेपी कांग्रेस से कहीं कदम आगे निकल गई। खबरें आ रही हैं कि उसी हिंदुत्व को भुनाने की तैयारी अब एमपी में भी है। बीजेपी हार्ड हिंदुत्व को फोकस करते हुए प्रदेश में चुनावी आगाज कर सकती है। पिछले दिनों खरगोन की घटना के बाद जिस तरह से बुलडोजर चले। उसे शिवराज सिंह चौहान के हिंदुत्व का ट्रेलर भी कहा जा सकता है।
भक्ति, भक्ति ही नजर आए आडंबर नहीं
यूपी में जिस तरह हिंदुत्व को धार दी। शायद उतना पैनापन मध्यप्रदेश में दिखाई न दे सकें। क्योंकि बीजेपी की ये चाल अब खुलकर सामने आ चुकी है। और कमलनाथ जैसे तजुर्बेकार नेता पहले ही इस की काट तैयार कर चुके हैं। वैसे हिंदुत्व की रेस में जब भी बीजेपी और कांग्रेस साथ दौड़ेंगी जीत बीजेपी की ही होनी है। लेकिन दौड़ के शुरू होने से पहले ही कदम कमजोर कर दिए जाएं तो अंजाम क्या होगा समझा जा सकता है। कमलनाथ ने भी यही किया है। बीजेपी हिंदुत्व का डमरू बजाए उससे पहले ही कमलनाथ की कांग्रेस में ढोल मंजीरे बजने लगे हैं। वो भी कुछ इस तरह से कि भक्ति, भक्ति ही नजर आए आडंबर नहीं।
कांग्रेस कमेटी का सर्कुलर
राम नवमी पर कमलनाथ यानी कांग्रेस कमेटी की ओर से एक सर्कुलर जारी हुआ, जिसमें राम नवमी पर सभी कांग्रेसियों को रामकथा कहने सुनने और पूजा पाठ करने का निर्देश दिया गया और हनुमान जयंती पर हनुमान चालीसा के पाठ के निर्देश दिए गए। कमलनाथ के इस फैसले को देखते हुए ये माना जा रहा है कि कांग्रेस बीजेपी के हिंदुत्व को चुनौती देने के साथ चुनावी आगाज के मूड में आ चुकी है। अगला चुनाव कांग्रेस हिंदुत्व की तर्ज पर ही लड़ेगी। बीजेपी हिंदुत्व को उतनी मजबूती से कैश नहीं करा सकेगी जैसा यूपी में करने में कामयाब रहीं।
हिंदुत्व का कार्ड उछाला
हालांकि ऐसी ही कोशिश राहुल गांधी ने भी की थी। पांच साल पहले हुए गुजरात चुनाव से पहले अचानक राहुल गांधी ने मंदिरों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए। शायद ये भूल गए कि राम के वजूद पर सवाल उठाने के बाद यूं अचानक मंदिरों के चक्कर काट कर वो बीजेपी से बड़े हिंदू आस्था के प्रतीक नहीं बन सकते। फिलहाल कमलनाथ ने इस गलती से बचने की कोशिश की है, वो सधे हुए अंदाज में समय-समय पर हिंदुत्व के कार्ड उछाल रहे हैं। लेकिन मंदिर में अपनी विजिट को इंवेट बनाने से भी बच रहे हैं। वैसे भी कमलनाथ ने खुद को कभी दिग्विजय सिंह की तरह सेक्यूलर दिखाने की कोशिश नहीं की। इसकी वजह से दिग्विजय सिंह अक्सर कांग्रेस का पंचिंग बैग बनते रहे हैं। इससे उलट कमलनाथ हमेशा सॉफ्ट हिंदुत्व के हिमायती रहे हैं। सूबे के मुखिया रहते हुए भी वो इस इमेज से बाहर नहीं निकले। बिलकुल तोल कर हिंदुत्व की छाप छोड़ते हैं। न कम न ज्यादा। हालांकि जिस नपे तुले अंदाज में कमलनाथ आगे बढ़ रहे हैं, उस अंदाज को इसी तरह कायम रखना होगा। क्योंकि एक छोटी-सी चूक से बीजेपी भारी पड़ सकती है।
एमपी में हिंदुत्व के नाम पर जंग जीती जा सकती?
कमलनाथ ने कांग्रेस के एजेंडे से हट कर वो मैदान चुना है, जिसकी बीजेपी पुरानी खिलाड़ी है। कांग्रेस में इत्मीनान इसलिए है कि कमलनाथ जैसा दिग्गज नेता जो कर रहा है, उस रणनीति पर यकीन करना जरूरी है। वैसे भी कमलनाथ के सॉफ्ट हिंदुत्व का असर ही कहा जा सकता है कि एक बीजेपी नेता को ट्वीट कर हिंदुत्व के हार्ड और सॉफ्ट होने पर सवाल उठाना पड़ रहा है। जिसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि कमलनाथ की बिछाई बिसात में बीजेपी उलझ रही है। यकीनन पार्टी के सामने सवाल है कि क्या वो यूपी की तरह एमपी में भी हिंदुत्व के नाम पर जंग जीत सकती है। इसी संशय के चलते शायद पीएम मोदी और अमित शाह एमपी में आकर जनजातियों और आदिवासियों की बात करते हैं। इसे कमलनाथ का करिश्मा ही कहा जाए तो क्या गलत होगा।