खंडवा (शेख रेहान). समाज में इंसान और इंसानों के बीच बढ़ते मतभेदों के बीच इंसान और पालतू पशुओं के अद्भुत रिश्ते को बताने वाली खबर खंडवा से आई है। यहां टफी (khandwa tafi) और जायसवाल परिवार का प्रेम दुनिया के लिए मिसाल बनता जा रहा है। पिछले दिनों 16 वर्ष के टफी ने अपनी प्राकृतिक उम्र पूरी कर ली तो परिजनों ने उसका अंतिम संस्कार किया। वे सभी क्रियाएं की जो एक परिवार के सदस्य के चले जाने पर हिंदू रीति रिवाजों में होती है। घर के दालान में उसकी समाधि बनाई, ओंकारेश्वर में उसका श्राद्ध और पिंड दान भी किया, और घर के एक सदस्य ने मुंडन भी करवाया। अब हर दिन यह परिवार इस समाधि पर टफी को पसंद आने वाले भोजन का भोग लगाते हैं।
टफी अब भी मौजूद है: खंडवा में पिछले 16 साल से परिवार के सदस्य और माता-पिता के बेटे के समान रहा एक डॉगी जिसका नाम इन्होंने टफी रखा। जब इस दुनिया से रुखसत हुआ तो परिजनों ने घर के अंदर ही उसकी समाधि बना दी। परिवार का हर सदस्य सुबह शाम अपने इस सदस्य को न केवल भोग लगाता है, बल्कि उसकी समाधि के पास बैठकर यादों को ताजा करता है। उनके लिए यह डॉगी नहीं परिवार का अहम सदस्य था, जो अब इस दुनिया में ना होते हुए भी उनके आसपास मौजूद है।
ये है खंडवा का जायसवाल परिवार: फैमिली में कुल 4 सदस्य हैं। परिवार के मुखिया रवि जायसवाल कारोबारी हैं। पत्नी सरकारी टीचर, एक बेटा इंजीनियर है और दूसरी बेटी डॉक्टर। कहने को तो यह 4 सदस्यों का परिवार है लेकिन हकीकत में इस परिवार में 5 सदस्य रहते थे। पांचवा सदस्य एक डॉगी था जिसका नाम टफी रखा था। जायसवाल दंपत्ति के यहां जब बच्चे छोटे थे। उसी समय इस पामेरियन पप्पी को पाला था। जैसे-जैसे इनके बच्चे बड़े होते गए, यह टफी भी बड़ा होता गया। जायसवाल परिवार ने इस की परवरिश भी अपने तीसरे बेटे के रूप में की। पिछले 16 सालों में इस परिवार ने कई खुशी और गम के अवसर झेले, इनमें भी इस टफी की भूमिका बनी रही।
समाधि देखकर लगता है टफी हमारे साथ है: टफी को अपने बेटे की तरह पालने वाली शशि जायसवाल ने बताया कि मैंने उसे अपने बच्चे की तरह पाला था। पहले दिन जब इसे लाए थे तो मुझे गुस्सा आया था कि इसकी देखभाल कैसे करेंगे। फिर धीरे-धीरे लगाव बढ़ता गया। धीरे-धीरे ब्रैन की प्राइमरी स्टैज पर टफी आ गया। वहीं, रवि जायसवाल ने कहा कि मैं टफी को अपना बेटा ही समझता था। 16 साल वह जैसे हमारे परिवार के साथ रहा। इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। जब इसका देहावसान हुआ तो हमने 13 दिन तक सभी हिंदू रीति-रिवाजों के साथ संस्कार किया। मेरा बेटा ओंकारेश्वर में पिंडदान करते हुए बाल भी दान किए। हमने जब आंगन में समाधि बनाई तो लगता है कि हमारा टफी हमारे साथ है, इसके रोज सुबह इसको माला अर्पण करते हैं। यह टफी क्रिसमस के अवसर पर सांता क्लॉस भी बना होली के मौके पर परिजनों के साथ रंग भी खेलें और दीपावली पर पकवान भी खाए।
टफी की समाधि से दिन की शुरुआत: परिवार के बेटा और बेटी जब भी अपने घर आते हैं सब टफी को ही को याद करते हैं। परिवार के बेटी और बेटा काफी समय से शिक्षा और काम के सिलसिले में घर से दूर है। ऐसे में छोटे बेटे के रूप में टफी ने इनकी कमी नहीं होने दी। जायसवाल दंपत्ति भी अपने दिन की शुरुआत टफी की समाधि से करते हैं। उनका कहना है कि टफी हमारे लिए कोई जानवर नहीं था, बल्कि एक घर का सदस्य था। भले वह बोलता नहीं था लेकिन उसकी भावनाओं की अभिव्यक्ति से वह हर समय अपने सुख-दुख और हर्ष को व्यक्त करता था। यही कारण है कि वह आज भी हमारे आसपास ही जिंदा है और हर समय उसकी उपस्थिति का एहसास कराता है। इंसानों के बीच फैली इस नफरत के दौर में मोहब्बत का संदेश देती यह तसवीर रिश्तों की एहमियत बया करने के लिए काफी है।