विदिशा की बरसों पुरानी अनोखी परंपरा, रामदल पर रावण सेना बरसाती गोफन पत्थर; आदिवासी करते हैं रावण सेना का नेतृत्व

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The Sootr CG
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विदिशा की बरसों पुरानी अनोखी परंपरा, रामदल पर रावण सेना बरसाती गोफन पत्थर; आदिवासी करते हैं रावण सेना का नेतृत्व

अविनाश नामदेव, VIDISHA. विदिशा जिले के लटेरी इलाके के ग्राम कालादेव में दशहरे के दिन विशेष आयोजन होता है। यहां रावण की विशालकाय प्रतिमा दशहरा मैदान में स्थापित है। जिसे बकायदा आज के दिन सजाया जाता है। शाम होते-होते बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हो जाते हैं। क्योंकि यहां अनूठा आयोजन होता है। 



मैदान में लगी रावण की विशालकाय प्रतिमा से करीब 200 मीटर दूर राम का ध्वज लगाया जाता है, जिसकी परिक्रमा करने के लिए कालादेव के स्थानीय लोग आते हैं। इनकी संख्या 200 से 400 तक होती है। कालदेव के स्थानीय लोग ही राम की सेना में शामिल होते हैं। मान्यता है कि इस सेना में कालादेव के लोग ही शामिल हो सकते हैं, वरना रावण की सेना द्वारा गोफन से फेंके गए पत्थर लग जाते हैं। रावण की यह सेना आदिवासी भील समाज की होती है, जो रावण दल का प्रतिनिधित्व करती है।



परंपरागत रूप में होता है राम-रावण युद्ध



कालादेव गांव में दशहरे पर होने वाले इस आयोजन को चमत्कार ही कहा जा सकता है। रावण की विशाल प्रतिमा के सामने जिस ध्वज को गाड़ा जाता है, वह राम-रावण युद्ध का प्रतीक होता है। कालादेव के लोग रामदल के रूप में आगे बढ़ते हुए उस ध्वज को छूने का प्रयास करते हैं, तो दूसरी ओर रावण दल के लोग उन पर पत्थर फेकते हैं। लेकिन चमत्कार की बात यह है कि ये पत्थर रामदल के लोगों को नहीं लगते, इससे भी बड़ी बात यह है कि यदि कोई व्यक्ति कालादेव का निवासी न हो और रामदल में शामिल हो जाए तो उसे पत्थर लग जाते हैं। राम दल के विजयी होने पर हजारों की संख्या में उपस्थित लोग जश्न मनाते हैं और एक-दूसरें को दशहरा की बधाई देते हैं।


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