पोपी हस्क के नशे में डूब रहे एमपी के युवा, तीन साल में डेढ़ लाख क्विंटल की खपत

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Shivasheesh Tiwari
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पोपी हस्क के नशे में डूब रहे एमपी के युवा, तीन साल में डेढ़ लाख क्विंटल की खपत

अरुण तिवारी, Bhopal. प्रदेश में नशे का काला कारोबार खूब फल-फूल रहा है। पिछले कुछ सालों में युवाओं के बीच पोपी हस्क के चलन में बेतहाशा वृद्धि हुई है। नशा माफिया के टारगेट पर प्रदेश के कॉलेज गोइंग युवा हैं। प्रदेश के बड़े शहरों में आ रहे मेट्रो कल्चर ने इन युवाओं को नशे की ओर आकर्षिक किया है। पोपी हस्क के बढ़ते इस्तेमाल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में ​पिछले तीन सालों में डेढ़ लाख क्विंटल से ज्यादा खपत हुई है। इसका खुलासा केंद्रीय गृह मंत्रालय की तीन साल की रिपोर्ट कर रही है। इसका बड़ा हिस्सा इंदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर में खपाया गया है। इन शहरों में चोरी छिपे हो रहीं रेव पार्टियों में इस नशे को बेचा जा रहा है। पोपी हस्क का इस्तेमाल इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि एक बार इसका उपयोग शुरु किया तो छोड़ना मुश्किल हो जाता है।  





इस तरह फैलाया गया नशे का जहर







  • 2019 — 35115 किलो पोपी हस्क जब्त की गई। कुल 2912 मामले दर्ज किए गए, जबकि 3594 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। 



  • 2020 — 45666 किलो पोपी हस्क जब्त की गई। कुल 3330 मामले दर्ज किए गए, जबकि 4387 आरोपी गिरफ्तार किए गए। 


  • 2021 — 29314 किलो पोपी हस्क जब्त की गई। कुल 3953 मामले दर्ज किए गए, जबकि 5263 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। 






  • 2021 में हुई जब्ती की मासिक रिपोर्ट 







    • जनवरी — 1633 किलो



  • फरवरी — 957 किलो


  • मार्च — 1882 किलो


  • अप्रैल — 4056 किलो


  • मई — 2803 किलो


  • जून — 4187 किलो


  • जुलाई — 5598 किलो


  • अगस्त — 4715 किलो


  • सितंबर — 679 किलो


  • अक्टूबर — 1144 किलो


  • नवंबर — 146 किलो


  • दिसंबर — 1514 किलो






  • कुल कारोबार की आधा फीसदी की होती है जब्ती





    नारकोटिक्स विभाग से जुड़े अंदरुनी सूत्र बड़ा खुलासा करते हैं। सूत्रों की मानें तो पोपी हस्क की जो जब्ती हुई है वो नशे के इस काले कारोबार का सिर्फ आधा फीसदी हिस्सा है। यानी जब्ती ही एक लाख किलो से ज्याद की है तो नशे इस कारोबार के फैलाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक पोपी हस्क सस्ता होता है इसलिए युवाओं के बीच इसे बेचने में मुश्किल नहीं आती। कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के—लड़कियां अपनी पॉकेट मनी से इसका नशा करना शुरु कर देते हैं। बाद में जब पैसे की कमी पड़ती है और नशे की आदत हो जाती है तो कई युवा पैडलर भी बन जाते हैं ताकि वे उनके दोस्तों के बीच सप्ताई कर पैसा कमा सकें और अपनी नशे की लत को भी पूरा कर सकें। पोपी हस्क को चाय या दूध के साथ लिया जाता है जिससे ये लेने में भी आसान होता है।  





    क्या होता है पोपी हस्क





    पोपी हस्क अफीम से ही बनता है। दरअसल बीज से पौधा बनता है और पौधे में फूल लगता है। अफीम की फसल के डोडों पर चीरा लगाकर इसमें से सबसे पहले अफीम और फिर पोस्ता दाना (खसखस) निकाला जाता है। इनके निकल जाने के बाद जो सूखा भाग बचता है उसे डोडा कहते है। इसमें बेहद कम मात्रा में मॉरफीन पाया जाता है। जो पोस्ता दाना होता है उसमें अफीम के कण मिल जाते हैं जिसे साफ किया जाता है छलनी लगाई जाती है। इसमें जो अवांछनीय पदार्थ निकलता है उसको नष्ट किया जाना चाहिए। लेकिन उसे नष्ट नहीं किया जा रहा बल्कि इसकी तस्करी की जा रही है। यही पोपी हस्क कहलाता है। इसी पोपी हस्क में मिलावट कर बेचा जा रहा है। प्रदेश के नीमच—मंदसौर में अफीम की खेती होती है। करीब चालीस हजार किसान पट्टे पर इसकी खेती करते हैं। 





    उत्तरप्रदेश,महाराष्ट्र,पंजाब में बिक रहा नशा



     



    मध्यप्रदेश के अलावा नशे का ये कारोबार सीमावर्ती राज्यों में भी फैला है। उत्तरप्रदेश इसका गढ़ बन गया है। इसके अलावा महाराष्ट्र में इस्की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है। राजस्थान और पंजाब में भी पोपी हस्क का उपयोग तेजी से बढ़ा है। 





    ये नशे भी युवाओं को बना रहे शिकार





    हेरोइन: इसे क्वीन आफ ड्रग्स भी कहा जाता है। यह एक तरह का पावडर होता है जिसे नाक,मुंह या स्मोक के जरिए लिया जाता है। यह काफी महंगा होता है और शरीर पर इसके वितरीत प्रभाव भी पड़ते हैं। इसकी लत छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है। 





    कोकीन: इसका नाम बहुत सुनने में आता है। यह सीधे दिमाग पर असर डालता है। इसके ज्यादा इस्तेमाल से दिमाग की संरचना ही बदलने लगती है। 





    गांजा: इसे स्मोक के जरिए लिया जाता है। इसके लगातार इस्तेमाल से फेंफड़े की बीमारी हो जाती है। 





    कैमिकल ड्रग: सूत्रों का कहना है कि केमिकल ड्रग्स की सबसे अधिक खपत भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में है। यहां हुक्का बार जैसी जगहों में आने वाले युवाओं को इसकी लत लगाई जा रही है। केमिकल ड्रग शारीरिक और मानसिक तौर पर खोखला कर देता है। यह किडनी-लीवर को नुकसान पहुंचाने के साथ सोचने-समझने की क्षमता खत्म करता है। 





    नशामुक्ति पर खर्च हो रहा फंड





    वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने एम्स की मदद से देशभर में नशे की स्थिति पर सर्वे कराया था। इसमें प्रदेश के 15 शहरों में नशामुक्ति अभियान की आवश्यकता बताई गई थी। इसके तहत रीवा, जबलपुर, भोपाल, छिंदवाड़ा, ग्वालियर, नीमच, इंदौर, उज्जैन, दतिया, होशंगाबाद, मंदसौर, नरसिंहपुर, रतलाम, सागर और सतना में 15 अगस्त 2020 से नशा मुक्ति अभियान चलाया गया था।  यह अभियान 31 मार्च 2021 तक चला। सामाजिक न्याय विभाग की ओर से भी प्रदेश में 20 नशामुक्ति सह पुनर्वास केंद्र संचालित किए जा रहे हैं। पिछले वर्ष इन केंद्रों में 3259 लोगों को नशे की लत से मुक्त कराया गया।





    अधिकारियों की मिलीभगत पर सवाल





    नशे के इस फैलते कारोबार के चलते पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। रिटायर्ड डीजी आरएलएस यादव कहते हैं। कि नारकोटिक्स विभाग की कार्रवाई महज रस्म अदायगी ही नजर आती है। युवाओं को नशे के जहर से बचाने के लिए जरुरी है कि नारकोटिक्स विभाग को जिला पुलिस के साथ मिलकर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इसके लिए सरकार को भी गंभीरता से प्रयास करने होंगे और अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करनी पड़ेगी।



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