देव मुरारी बापू ने कहा- मप्र की 230 विधानसभा सीटों पर उतारेंगे प्रत्याशी, संतों के बिना राजनीतिक पार्टियां हो रही है बेलगाम

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The Sootr
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देव मुरारी बापू ने कहा- मप्र की 230 विधानसभा सीटों पर उतारेंगे प्रत्याशी, संतों के बिना राजनीतिक पार्टियां हो रही है बेलगाम

BHOPAL. राष्ट्रव्यापी जनता पार्टी के अध्यक्ष आचार्य देव मुरारी बापू ने प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारने ऐलान किया है। आचार्य बापू ने कहा कि संतों का राजनीति में होना बहुत जरूरी है। क्योंकि संतों के बिना सत्ता दल, राजनीतिक पार्टियां बेलगाम हो चुकी हैं। संत-महात्माओं को प्रताड़ित किया जा रहा है। उनको मारा जा रहा है। मठ-मंदिरों पर गुंडा-मफियाओं के कब्जा हो रहा हैं। गौशालाओं की दुर्दशाएं हो रही हैं। 





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सभी पार्टी कर रही है संत महात्माओं का दोहन





आचार्य देव मुरारी बापू ने कहा कि आज के समय में गुंडे-माफियाओं का बोलबाला है। संत महात्माओं का हर पार्टी के लोग दोहन करते हैं। संतों का दोहन ना हो, संत का सम्मान हो.. संतों के सम्मान के लिए राष्ट्रव्यापी जनता पार्टी के अध्यक्ष होने के नाते संत समाज और समाज सेवियों को हम अपनी पार्टी से मध्य प्रदेश के 2023 के विधानसभा चुनाव में संपूर्ण सीटों पर प्रत्याशी उतारने का काम करेंगे।





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मथुरा में 2021 में हुआ था चुनाव कार्यालय का शुभारंभ





आचार्य देवमुरारी बापू ने राष्ट्रव्यापी जनता पार्टी के कार्यालय  का शुभारंभ मथुरा में 2021 में किया था। इस अवसर पर गोरे दाऊजी मंदिर के महंत प्रहलाद दास, मिथिला कुंज के महामंडलेश्वर किशोरी शरण, महामंडलेश्वर स्वामी प्रकाशानंद, संन्यासी परिषद के अध्यक्ष महामंडलेश्वर भास्करानंद भी मौजदू थे। सभी ने देवमुरारी बापू का साथ देने की बात कही थी। राम मंदिर के महंत रघुनाथ दास ने कहा था कि वृंदावन में संतों से संपर्क शुरू कर दिया गया है। 





1971 में कांग्रेस ने की थी शुरुआत





साधु-संतों को लोकसभा चुनाव के मैदान में उतारने की शुरुआत कांग्रेस ने 1971 में की। उसने उस चुनाव में महाराष्ट्र में पैदा हुए स्वामी रामानन्द शास्त्री को बिजनौर और स्वामी ब्रह्मानंद को हमीरपुर से मैदान में उतारा था। दोनों स्वामी अपनी-अपनी सीटों से चुनाव जीत गए थे। स्वामी ब्रह्मानंद 1977 में भी कांग्रेस से चुनाव लड़े, लेकिन 1971 के जिन बीकेडी के तेज प्रताप सिंह को हराया था, उन्हीं से वे 1977 में चुनाव हार गए।





मंदिर आंदोलन से निकलकर संसद तक पहुंचीं उमा भारती





मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में जन्मीं उमा भारती की ख्याति धार्मिक बालक के तौर पर बचपन में ही हुई। राजमाता विजयराजे सिंधिया के संपर्क में आने के बाद वह बीजेपी की तरफ आकर्षित हुईं। विजयाराजे सिंधिया इनकी पॉलिटिकल मेंटर बनीं और उन्होंने 1984 में इन्हें पहला लोकसभा चुनाव लड़वाया। हालांकि उमा भारती यह चुनाव हार गईं। इसके बाद 1989 में उन्होंने खजुराहो लोकसभा क्षेत्र से जीत हासिल की। 1991, 1996 और 1998 में भी वह यहीं से जीतने में सफल रहीं। उमा भारती राम जन्मभूमि आंदोलन से चर्चा में आईं। दिसंबर 1992 में वह संघ के उन चुनिंदा लोगों में शामिल थीं, जो अयोध्या की रैली में शामिल हुए। अटल और मोदी सरकार में केंद्र सरकार में मंत्री रहीं। मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनीं।



सियासी सफरः 1991, 1996, 1998 और 2014 में सांसद बनीं। 2003 में मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। अटल बिहारी और मोदी सरकार में मंत्री बनीं।



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