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Bhopal. 3 राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद बीजेपी बाग-बाग है। त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में भी बीजेपी को प्रचंड जीत हासिल हुई है। लेकिन बात यदि त्रिपुरा की जीत की हो तो पार्टी ने यहां उत्तराखंड और गुजरात के बाद वही फार्मूला अपनाया था। जिसके तहत पार्टी ने पहले सीएम को हटाया, फिर टिकट काटने और बुजुर्गों को टिकट न देने की जुगत भिड़ाई थी। बीजेपी के जीत के इस फार्मूले ने एक बार फिर मध्यप्रदेश के बीजेपी नेताओं की नींद उड़ा दी है।
क्यों डोल रहा मामा का सिंहासन?
दरअसल उत्तराखंड, गुजरात और अब त्रिपुरा में बीजेपी को मिली जीत और इस जीत के पीछे के फॉर्मूले पर नजर डाली जाए तो ऐसे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का परेशान होना स्वाभाविक है। बीजेपी एक्सपेरिमेंट करने से पीछे न हटने वाली पार्टी है और 3 राज्यों में मिली जीत के बाद उसका आत्मविश्वास भी सातवें आसमान पर है। ऐसे में मध्यप्रदेश और हरियाणा में इस फॉर्मूले की चर्चा होना स्वाभाविक है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो बीजेपी विपक्ष में है और कर्नाटक के चुनाव में ज्यादा समय बचा नहीं है, ऐसे में कहा यही जा रहा है कि निशाने पर हरियाणा और मध्यप्रदेश हो सकते हैं।
दरअसल आने वाले समय में जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, उसे लोकसभा का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान प्रमुख हैं,
हरियाणा में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा के चुनाव होना हैं। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी इन राज्यों के चुनावों की अहमियत अपने भाषण में बता चुके हैं। उन्होंने कहा था कि अगर आम चुनाव में जीत दर्ज करनी है तो शुरुआत इस साल होने वाले 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव जीतना बेहद जरूरी हैं।
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ये है बीजेपी का विक्टरी फॉर्मूला
बीजेपी के फॉर्मूले के तहत ऐसे राज्य जहां एंटी इनकंबेसी का असर हो वहां सीएम और कैबिनेट में फेरबदल कर दिया जाए। यह प्रयोग पहले उत्तराखंड और गुजरात में किया जा चुका था। वहां सफलता मिलने के बाद त्रिपुरा में भी इसे आजमाया गया जिसके नतीजे सामने हैं।
फॉर्मूले का दूसरा चरण यह था कि विधायकों और मंत्रियों का टिकट काट दिया जाना। चुनाव से पहले बीजेपी ने गुजरात, यूपी, त्रिपुरा और उत्तराखंड में बड़ी संख्या में विधायकों के टिकट काटे। गुजरात में बीजेपी ने 42 विधायकों के टिकट काटे, जबकि त्रिपुरा में भी यह फॉर्मूला लागू किया गया।
वरिष्ठ नेताओं को विश्राम देना बीजेपी की जीत के फॉर्मूले का तीसरा स्टेप है। बीजेपी इस फॉर्मूले को यूपी चुनाव के बाद से अपना रही है। दरअसल, राज्यों में आंतरिक गुटबाजी से निपटने के लिए पार्टी ने यह फॉर्मूला अपनाया था, जो कारगर भी साबित होता दिखाई दिया। वरिष्ठों को संगठन के कामों में लगाकर स्थानीय राजनीति से दूर कर दिया। जिसका पार्टी को फायदा मिला।
सूत्रों के मुताबिक मध्य प्रदेश में बीजेपी ने हाल ही में एक सरकारी एजेंसी से सर्वे कराया है, जिसमें कहा गया है कि पार्टी काफी कम सीटों पर सिमट सकती है। राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की जरूरत होती है, शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में पिछले विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। वो तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने कुर्सी दिलवा दी।
बस यही एक दिक्कत
इस फॉर्मूले को लागू करने में बीजेपी को सिर्फ एक ही दिक्कत है। वह है शिवराज सिंह की छवि, वे प्रदेश में जमीनी नेता माने जाते हैं। उनके नेतृत्व में सरकार ने महिला विकासोन्मुखी बजट भी पेश कर दिया है। जिससे महिलाओं के बीच उनकी पैठ फिर चमक गई है। वहीं वे पिछड़ा वर्ग से आते हैं ऐसे में पार्टी मध्यप्रदेश में अपना फॉर्मूला लागू करने से पहले काफी सोचविचार कर रही है।
जनवरी में भी लगे थे कयास
इससे पहले दिसंबर के आखिर और जनवरी की शुरूआत में भी यही कयास लग रहे थे कि पार्टी गुजरात फॉर्मूले को मध्यप्रदेश में अपना सकती है। अब यह कहा जा रहा है कि पार्टी त्रिपुरा में जीत के फॉर्मूले का परीक्षण करना चाह रही थी। अंदरखाने में क्या चल रहा है यह तो नहीं बताया जा सकता लेकिन हां इतना जरूर है कि कुछ न कुछ तो मध्यप्रदेश में डोल रहा है।