देव श्रीमाली, GWALIOR. कूनो अभ्यारण्य में नामीबिया से लाए गए चीतों का अब मन लगने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर स्वयं उनके द्वारा छोड़े गए चीतों का अब क्वारैंटाइन खत्म कर स्वछंद विचरण के लिए बड़े बाड़े में छोड़े जा चुके है। अब 10 मार्च को पूर्व केंद्रीय मंत्री माधव राव सिंधिया के जन्मदिन पर शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में तीन बाघ छोड़े जाने हैं। 27 साल बाद इस नेशनल पार्क में बाघ यानी चहल कदमी करेंगे। इस पार्क में कभी अकबर ने जंगली हाथियों का शिकार किया था।
अकबर से लेकर कर्मक तक ने बनाया शिकारगाह
शिवपुरी का यह नेशनल पार्क नोटिफिकेशन के पहले वन्य जानवरों के स्वछंद विचरण का बड़ा वन क्षेत्र था। हाथी, बाघ, चीतल, नील गाय से लेकर अनेक प्रकार कें पक्षी और मगरमच्छ जैसा जलीय जीव भी यहां आराम से सुरक्षित रहते थे। इसकी सूचना मिलने पर दिल्ली का शहंशाह अकबर सन् 1535 में यहां जंगली हाथियों का शिकार करने आए थे। इस क्षेत्र में शिकार की यह परंपरा राजपूत राजाओं के काल में भी अनवरत जारी रही। मुगल गए, अंग्रेज आए, लेकिन शिकार जारी रहा। अंग्रेजी काल मे एक फिरंगी मेजर कर्मक आया तो उसने अपनी मौज मस्ती के लिए कातर वन प्रान्त में जमकर उत्पात मचाया।
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केंद्रीय मंत्री और सीएम भी रहेंगे मौजूद
इस मौके पर केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, केंद्रीय नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और अनेक मंत्री मौजूद रहेंगे। इसके साथ ही वन्य प्राणियों और पर्यटकों के लिए एक नया कॉरिडोर बनने की दिशा में एक बड़ा कदम बढ़ जाएगा। यह कॉरिडोर रणथंबौर, कूनो, शिवपुरी होकर पन्ना के नेशनल पार्क तक जुड़ेगा। यह देश का पहला सर्किट होगा, जिनमें टाइगर, कूनो में चीते, शिवपुरी और पन्ना में बाघ, चीतल, हिरण,लोमडियां जंगल मे स्वछंद विचरण करते हुए दिखेंगी।
रणथंबौर से शिवपुरी तक होगा टाइगर के लिए बफर जोन
रणथंभौर से निकलकर अनेक टाइगर एमपी की सीमा में आते जाते रहते हैं, लेकिन यहां ज्यादा समय नहीं रुकते। इसीलिए अब उनके लिए एक आसान और सुरक्षित कॉरिडोर बनाया जाना है। इसके लिए शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क का विस्तार करने की योजना बनाई गई थी। इसके लिए बफर जोन बनाने के लिए इसके दायरे में 13 गांव और लाए गए। इसके साथ ही माधव नेशनल पार्क का विस्तार 600 वर्ग किलोमीटर हो गया है। अब इसकी सीमा कूनो नेशनल पार्क को स्पर्श करने लगी है। यानी रणथंभौर से लेकर शिवपुरी तक एक सुरक्षित कॉरिडोर बन जाएगा, जिसमें वहां से निकलकर बाघ स्वछंद विचरण कर सकेंगे।
सबके पहले लाया जा रहा है मादा बाघ
पहले माधव नेशनल पार्क शिवपुरी में बीते जनवरी में तीन बाघ लाकर यहां बसाए जाने की तैयारी थी, लेकिन तब तक वहां उनके लिए वांछित हेबिटेट तैयार करने की तैयारियां पूरी नहीं हो सकीं थी। अब ये दस मार्च को पहुंच रहे हैं। ये तीनों बाघ रणथंभौर से ही लाए जा रहे हैं। संभावना है कि यह मादा ही होंगे। मादा बाघ लाने का निर्णय भी वन्य विशेषज्ञों के लंबे शोध के बाद हुआ है। विशेषज्ञों ने रणथंभौर से श्योपुर, मुरैना और शिवपुरी के जंगल तक आने जाने वाले बाघों की आवाजाही पर लंबी निगरानी और विश्लेषण किया तो यह तथ्य प्रकाश में आया कि वहां से निकलकर सिर्फ नर बाघ ही इन क्षेत्र में आते है, लेकिन वे यहां रुकना पसंद नहीं करते बल्कि जल्दी ही वापिस रणथंबौर लौट जाते हैं। इसकी वजह तलाशने पर चौंकाने वाली बात सामने आई। उनकी वापिसी इसलिए जल्दी हो जाती है, क्योंकि इस क्षेत्र में मादा बाघ उन्हें नहीं मिलते, जिनसे वे जरूरी नीड पूरी कर सकें। जैसे ही उनकी नींद बढ़ती है वे तत्काल रणथंबौर की तरफ लौट जाते हैं, इसलिए वन्य विशेषज्ञों ने यहां सबसे पहले तीन मादा बाघ बसाने का ही फैसला किया है।
1991 में यहां थे दस बाघ
माधव नेशनल पार्क नब्बे के दशक में बाघों की रिहायश का एक सबके बड़ा अड्डा था। तब यहां दस बाघ थे, लेकिन देखरेख और सुरक्षा के अभाव में इनकी संख्या कम होती चली गई। अंतिम बार यहां बाघ 1996 में देखा गया था। इसी वर्ष यहां की टाइगर सफारी यह कहते हुए बंद कर दी गई थी कि यह स्थान अब टाइगर के लिए उपयुक्त नहीं है। इस सफारी की अंतिम बाघ जोड़ी 1996 में थी, जिनको तारा और पेटू के नाम से जाना जाता था। इसके बाद फिर इसे टाइगर सफारी बनाने का फैसला हुआ था।
यहां बस सकते हैं 26 टाइगर
इससे पहले देश के प्रमुख वन्य विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र के भूगोल और पारिस्थितिकी पर गहन शोध किया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस क्षेत्र में 26 टाइगर को बसाया जा सकता है, जो यहां आराम से स्वतंत्रता पूर्वक जीवन यापन कर सकते हैं। इसके बाद इस लॉयन सफारी को फिर से शुरू करने का फैसला हुआ। अब इसमें तीन टाइगर लाये जा रहे हैं।
बाघ के शिकार की थी अनुमति
आज भले ही इस अंचल में बाघों का अकाल पड़ गया हो अब सरकार को इन्हें फिर से बसाने और इनकी वंशवृद्धि के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा हो, लेकिन यहां का रिकॉर्ड बताता है कि एक समय ऐसा भी आया था, जब यहां टाइगरों की संखया इतनी ज्यादा हो गई थी कि उनसे मानव जीवन ही खतरे में पड़ने लगा था और सरकार को इनके शिकार के लिए आकर्षक योजना ऐलान करनी पड़ी थी, जिसके अनुसार सिर्फ 50 रुपये के टिकट पर बाघ का शिकार करने की अनुमति से दी जाती थी।
14 वर्ष में हुआ था 73 बाघों का शिकार
इस योजना ने बाघों के जीवन के मामले में बहुत ही घातक परिणाम दिए और 1956 से लेकर 1970 तक यानी महज 14 वर्षों में लोगों ने 73 से ज्यादा बेजुबान टाइगरों का शिकार कर इनकी जान ले ली। इसके बाद सरकार चेती और 1972 वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट आया तब इस पर रोक लग सकी लेकिन तब तक शिकारी इस अंचल में ज्यादातर बाघों के शिकार कर चुके थे। सिंह प्रोजेक्ट के सीसीएफ उत्तम कुमार शर्मा इस प्रोजेक्ट की पुष्टि करते हैं। उनका कहना है कि जो बाघ रणथंभौर से कूनो और शिवपुरी के जंगलों तक आते हैं, माधव नेशनल पार्क का क्षेत्र टाइगर रिजर्व के लिए बढ़ने से अब वे उनमें भी आ सकेंगे। इसके लिए प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है और अग्रिम कार्यवाही चल रही है।
सिंधिया राजाओं ने किया कायाकल्प
सिंधिया राजाओं ने इस क्षेत्र का कायाकल्प किया। 1894 से 1924 के बीच ही इनमें सड़कें बनाई गईं। शिकारगाह के अलावा एक विशाल चंद्राकार चांदपाठा का निर्माण करवाया गया। साथ ही वॉच टॉवर भी बनाया गया। इससे घड़ियाल और मगर को बसेरा मिल गया। कभी यहां बड़ी संख्या में तेंदुआ भी रहते थे, लेकिन वे भी शिकारियों के कोप का भोजन बन गए। 1956 में इसे नेशनल पार्क बनाया गया। तब इसका क्षेत्र फल महज 156 वर्ग किलोमीटर था, जो बाद में बढ़ाकर 354 वर्ग किलोमीटर कर दिया गया। इसका नाम माधव नेशनल पार्क किया गया।1989 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री माधव राव सिंधिया के प्रयासों से इस क्षेत्र को टाइगर प्रोजेक्ट में शामिल कर 25 लाख रुपए खर्च करके यहां तारा और पेटू नामक दो बाघों को लाकर बसाया गया। लेकिन इन बाघों ने सफारी से निकलकर आम इंसानों का शिकार करना शुरू कर दिया तो चारो तरफ भय और चिंता का माहौल बनने लगा आखिकार इस टाइगर सफारी को बंद कर दिया गया।
पक्षी विज्ञानी सालिम अली ने की थी तारीफ
पर्यटक यहां का प्राकृतिक सौंदर्य झील, झरनों और तालाबों को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं। उनका मन बार-बार यहां आने को करता है। पक्षियों के विश्व प्रसिद्ध जानकार डॉ. सालीम अली ने इस उद्यान को पक्षी अभ्यारण्य बनाने का सुझाव दिया था। डॉ. अली ने कहा था, यह एक ऐसा राष्ट्रीय उद्यान है, जहां जलचर, थलचर और नभचर सभी प्राणियों का विकास संभव है। अब लंबे इंतजार के बाद इनके विकास की संभावनाओं के द्वार फिर खुलते नजर आ रहे हैं ।
इससे बढ़ेगा वन्य टूरिज्म
कॉरिडोर के बनने से एक नया टूरिस्ट सर्किट भी विकसित होगा। पर्यटन व्यवसाय से जुड़े राजेन्द्र को उम्मीद है कि इससे पर्यटक दिल्ली या मुम्बई से आकर शिवपुरी में बाघ और कूनो में चीतों का दर्शन एक ही ट्रिप में कर सकेगा इसलिए ये सर्किट काफी लोकप्रिय हो जाएगा।