देव श्रीमाली GWALIOR. डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती को धूमधाम से मनाने के लिए बीजेपी अंबेडकर महाकुंभ करने जा रही है। ग्वालियर में होने वाले इस आयोजन को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं। कहने को तो यह आयोजन सरकारी है और इस पर सरकारी खजाने से पंद्रह से बीस करोड़ रुपए खर्च होने वाले हैं। पूरी सरकार और प्रशासन बीते एक पखबाड़े से सिर्फ इसी की तैयारियों में जुटा है। इस आयोजन में एक लाख दलित लोगों को लाने की तैयारी है। मेला मैदान में होने वाले इस आयोजन के मुख्य अतिथि जाहिरा तौर पर तो राज्यपाल मांगू भाई पटेल होंगे, लेकिन इसके पीछे की असली मंशा सबको पता है। इस आयोजन के जरिए बीजेपी ग्वालियर-चंबल अंचल में दलितों बढ़ी दूरी को खत्म करने का प्रयास कर रही है। जिसके चलते उसे 2018 में अपनी सत्ता गंवाना पड़ी थी। इस मेगा शो में सीएम शिवराज सिंह ,केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रदेश के सभी दलित बीजेपी नेता एक मंच पर दिखाई देंगे। कांग्रेस इसे भयभीत बीजेपी का सरकारी खर्चे पर किया जाने वाला तमाशा बता रही है। आयोजन के पहले ही इस दलित महाकुंभ को लेकर सियासत गरमा गई है। कांग्रेस का कहना है कि अंबेडकर के संविधान में विश्वास नहीं रखने वाली बीजेपी को अंबेडकर की जयंती मनाने का कोई अधिकार नहीं है। इस बार दलित वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पाएगी बीजेपी। वहीं बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस ने सदैव दलितों को ठगा है संविधान बचाने और दलितों को सम्मान देने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है।
सबकी निगाह दलितों पर
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दलित वोट बैंक पर बीजेपी कांग्रेस के साथ-साथ AAP और BSP नजरें गढ़ाए बैठीं है। खासकर ग्वालियर संभाग पर सभी पार्टियों की नजर है। यहां बीएसपी और कांग्रेस दलितों को लेकर अपने आयोजन कर चुकी है। अब इसी कड़ी में आगामी 16 अप्रैल को भीमराव अंबेडकर की जयंती के मौके पर सरकार के जरिए बीजेपी ग्वालियर में अंबेडकर महाकुंभ करने जा रही है।
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बताएंगे बीजेपी ने दलितों के लिए क्या-क्या किया
महाकुंभ में शामिल होने के लिए SC,ST, और OBC वर्ग के लोगों को बुलावा भेजा जा रहा है। जिसकी कमान बीजेपी के SC मोर्चा ने संभाल रखी है। महाकुंभ में प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर और प्रदेश के कई मंत्री शामिल होंगे और केंद्र और प्रदेश सरकार की गरीब और दलित हितैषी योजनाओं की जानकारी देंगे। लेकिन बीजेपी द्वारा किए जा रहे अंबेडकर महाकुंभ को लेकर कांग्रेस बीजेपी पर हमला बोल रही है। कांग्रेसी दलित नेता फूल सिंह बरैया का कहना है कि जो पार्टी अंबेडकर के संविधान में विश्वास नहीं रखती है। उसे अंबेडकर जयंती मनाने का कोई अधिकार नहीं है। बीजेपी घबराई हुई है। इसलिए अंबेडकर महाकुंभ करने जा रही है। अब लोग जागरूक हैं। बीजेपी को आगामी चुनावों में राज्य से लेकर केंद्र तक धूल चटा देंगे। दूसरी और बीजेपी अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य का कहना है कि कांग्रेस को दलितों की पैरवी करने का अधिकार नहीं है क्योंकि इतिहास गवाह है अंबेडकर को चुनाव कांग्रेस ने ही हरवाया था। दलितों को सम्मान देने का काम बीजेपी ने किया है। आज कई मंत्री, केंद्र और राज्य में SC,ST के हैं। कई योजनाएं बीजेपी सरकार में ही गरीब और दलितों के लिए शुरू की गई हैं। देश ही नहीं विदेश में भी अंबेडकर के स्मारक मोदी सरकार ने ही बनवाए हैं।
कांग्रेस और बीएसपी भी कर चुकी है आयोजन
दलित वोटों पर सबकी निगाह है। यही बजह है कि कांग्रेस जहां अपने दलित वोट बैंक को बचाने की जुगत में लगी है वहीं बीएसपी एक बार फिर अपने खिसक चुके वोट बैंक को वापस पाने की कवायद में जुटी हुई है। पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ग्वालियर आए थे और उन्होंने उसके लिए रैदास जयंती का दिन चुना था। कांग्रेस ने थाटीपुर में एक सम्मलेन भी आयोजित किया था। इसके बाद बसपा ने भी फूलबाग मैदान में पार्टी की रैली की। इसमें उसकी विधायक रमा बाई से लेकर बाकी सभी बड़े नेता जुटे। हालांकि दोनों ही कार्यक्रमों में कोई ज्यादा भीड़ नहीं जुटी, लेकिन इससे सबक लेकर बीजेपी ने भी आनन-फानन में यहां दलितों का एक मेगा शो करने का प्लान बनाया और ऐसी व्यवस्था की कि ताकि भीड़ आ ही जाए और उन्होंने बीजेपी की जगह से शासकीय स्तर पर आयोजित करने का निर्णय लिया। इसमें संभाग के हर जिले को टारगेट दिया गया है कि वे लाभ पाने वाले हर हितग्राही को लेकर ग्वालियर पहुंचें। इसके लिए परिवहन विभाग से ढाई हजार बसों का इंतजाम करने को कहा है।
आखिर दलितों के नाम पर यह इवेंट क्यों कर रही है बीजेपी
भले ही मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों की रणभेरी अभी नहीं बजी हो लेकिन ग्वालियर-चम्बल में तो चुनावी अभियान शुरू हो चुका है। इसकी खास बजह भी है। 2018 में जब विधानसभा चुनाव हुए थे तब बीजेपी ने सोचा भी नहीं था कि लगातार चौथी बार उनकी सरकार की वापिसी नहीं हो सकेगी। परिणाम आने से पहले ही दिल्ली से लेकर भोपाल में बैठे नेता मंत्रमंडल के गठन की तैयारी में जुटे हुए थे और बीजेपी समर्थक नौकरशाह पूरी तरह आश्वस्त थे लेकिन परिणामो ने पांसा पलट दिया था। इसकी वजह थी ग्वालियर-चंबल अंचल से बीजेपी का सूफड़ा साफ़ हो जाना। इसमें भी एक सूक्ष्म वजह थी दलितों का बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर वोट देना । इसके पीछे की सबसे बड़ी बजह बनी 2 अप्रैल 2018 को ग्वालियर में भड़की दलित-सवर्ण हिंसा। दरअसल इस दिन दलितो के संगठनों ने सोशल मीडिया पर आरक्षण बचाओं आंदोलन के नाम पर बंद का आह्वान किया था जिसे किसी ने गंभीरता से नहीं से नहीं लिया। यहां जैसे ही दलितों के जुलूस निकलना शुरू हुए वैसे ही सवर्णों के युवा संगठनों ने भी सड़कों पर उतरना शुरू कर दिया जिसके चलते टकराव बढ़ा। लाठी ,पथराव और आंसूगैस से बढ़कर बात ह्त्या तक पहुंची और पुलिस को कर्फ्यू लगाना पड़ा। इसके बाद यह आग भिंड, मुरैना सहित पूरे अंचल में फैल गई। इसके बाद पुलिस द्वारा की गईं गिरफ्तारियों में भी बीजेपी पर दलित युवाओं को झूठा फंसाने के आरोप लगाए गए। यद्यपि शिवराज सिंह को चुनाव से पहले ही इस गुस्से का अहसास हो चला था और अति उत्साह में उन्होंने दलितों के गुस्से की आग बुझाने के लिए अपने बयानों से जो पानी उड़ेला वह तो पैट्रोल बन गया। उनके द्वारा दलितों को दी गयी माई के लाल की अस्वस्ति ने उन्हें पूरी तरह से अकेला कर दिया। ग्वालियर-चम्बल में दलित हिंसा के बाद यह वर्ग बीजेपी के हाथ से चला गया और माई के लाल में सवर्णों ने भी दूरी बना ली। लेकिन चुनाव परिणामों का विश्लेषण से साफ पता चलता है कि दलित वोटों का बीजेपी के खिलाफ ध्रुवीकरण ही इन चुनावों में बीजेपी को इस दुर्गति की चौकट तक ले गया।
आरक्षित सात में सिर्फ एक दलित सीट जीत सकी थी बीजेपी
ग्वालियर-चम्बल संभाग में कुल 34 विधानसभा सीटें है जिनमें से पांचवा हिस्सा यानी 7 सीटें तो अनुसूचित जाति वर्ग के लिए ही आरक्षित है। यूं भी यह पूरा अंचल दलितों के बाहुल्य वाला है। 2013 के विधानसभा नतीजों में कांग्रेस इन सात में से एक भी सीट नहीं जीत सकी थी लेकिन 2018 में बाजी एकदम पलट चुकी थी। सात में से छह सीटों पर कांग्रेस ने अपना जीत का परचम लहरा दिया और बीजेपी के खाते में आई सिर्फ एक गुना सीट जहां से बीजेपी के गोपीलाल जाटव ने जीत दर्ज की थी। यूं भी गुना सीट लम्बे समय से बीजेपी के दबदबे वाली सीट थी। लेकिन बीजेपी विरोधी इस आंधी में गोहद में लाल सिंह आर्य जैसा दिग्गज नेता भी हार गए।
दो अप्रैल 2018 की घटना से दूर हो गया बीजेपी से दलित
ग्वालियर-चम्बल संभाग में 2018 में अचानक कांग्रेस को मिली शानदार जीत की वजह दरअसल कांग्रेस के खुद के प्रयास कम बल्कि लोगों की बीजेपी से नाराजी अधिक थी। दरअसल, नब्बे के दशक में ग्वालियर चम्बल अंचल कांशीराम की प्रयोगशाला था और उन्होंने अपनी बहुजन समाज पार्टी के बैनर पर पहला उम्मीदवार भी भिंड लोकसभा क्षेत्र में राम बिहारी कुशवाह को उतारा था। इसके बाद यहां दलितों को अपनी तरफ समेटते हुए जैसे-जैसे बसपा फैलती गई कांग्रेस वैसे -वैसे ही सिकुड़ती गई। यद्यपि सीटों के गणित में अंचल में भले ही बीएसपी कोई बड़ा मुकाम हासिल नहीं कर पायी हो लेकिन दलित वोटों के नुकसान ने कांग्रेस को एकदम हासिये पर लाकर कड़ा कर था। यहाँ तक कि अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर भी दलितों के बीएसपी के साथ जाने और सवर्णों के वोटों पर कब्जे के चलते बीजेपी ही जीत का ध्वज फहराती रही। लेकिन अपरिल को ग्वालियर से शुरू हुआ दलित - सवर्ण संघर्ष बीजेपी की सत्ता के लिए खतरनाक बन गया। दलित वोटों का बीजेपी के खिलाफ इतना सशक्त ध्रुवीकरण हुआ कि उन्होंने खुद ही अपने वोट बांटने से रोके और सिर्फ बीजेपी को हराने वाले प्रत्याशी को देने की रणनीति बनाई। उधर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने दलितों के गुस्से को लेकर दिया गया माई का लाल वाला बयान सवर्णों में घर-घर तक पहुंच गया। हालत ये हो गए कि दलित बीजेपी को हराना चाहते थे और सवर्ण शिवराज सिंह को। इन्होंने इसी लाइन पर मतदान किया और सामने सिर्फ कांग्रेस थी। सो, जीत का सेहरा उनसके उम्मीदवारों के सर बंधा। यह ध्रुवीकरण इतना गहरा था कि जब भिंड सीट पर कांग्रेस जीतती नहीं दिखी तो दलित और सवर्ण दोनों ने मिलकर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी को इक्जाया होकर वोट डाल दिया। परिणाम देखकर सब चौंक पड़े। भिंड जैसी सीट पर बीएसपी के क्षत्रिय प्रत्याशी संजीव सिंह संजू ने 35 हजार 896 मतों के भारी अंतर से बीजेपी से चुनाव लड़े कद्दावर नेता राकेश चौधरी को हरा दिया। वोटों का इतना सशक्त ध्रुवीकरण हुआ कि कांग्रेस प्रत्याशी रमेश दुबे महज सवा आठ हजार वोट ले सके और जमानत गंवा बैठे। भिंड जिले की गोहद , मुरैना जिले की अम्बाह, दतिया जिले की भांडेर , ग्वालियर जिले की करैरा और अशोकनगर जिले की अशोक नगर सीट बीजेपी के हाथ से जाती रही।
दलितों की खिलाफत से सामान्य सीटें भी हारी बीजेपी
दलितों के बीजपी के खिलाफ लामबंद होने का असर सामान्य सीटों पर भी पड़ा। अधिकांश जगह पर कांग्रेस प्रत्याशियों को दलितों का थोक वोट मिला और बाकी मुस्लिम और अपनी जाति के वोट बंटोरकर उन्होंने अपनी राह आसान कर ली। इस ध्रुवीकरण में बीजेपी ग्वालियर दक्षिण जैसी अपनी सबसे मजबूत और पक्की सीट तक हार बैठी और उसके नरोत्तम मिश्रा,अरविन्द भदौरिया यशोधरा राजे सिंधिया जैसे जो नेता जीते भी वह भी एकदम हार की कगार पर खड़े होकर।
उप चुनावों में भी नहीं बदला ट्रेंड
2019 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ इस्तीफा दिलवाकर कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिरवा दी और कोरोना का असर जब थोड़ा कम हुआ तो नबम्वर 20 में अंचल की सोलह सेटीओं पर उप चुनाव हुए। हालांकि इनमेसे ज्यादा सीटें तो बीजेपी जीतने में कामयाब रही लेकिन उसके लिए चिंता की बात रही कि 2018 का ट्रेंड उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था। छह आरक्षित सीटों में से बीजेपी ने दो भले ही जीत ली लेकिन भांडेर में कांग्रेस के फूलसिंह बरैया महज 161 वोटों से हारे और अम्बाह सीट को जिताने के लिए केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा। कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में रिकॉर्ड पचास हजार मतों से जीतती रही सिंधिया समर्थक इमरती देवी बीजेपी के टिकट से लड़ीं तो उन्ही सुरेश राजे से हार गयीं जिन्हे पंद्रह महीने पहले उन्होंने पचास हजार के भारी अंतर से हराया था।
नगर निगमों के जरिए फिर दिया झटका
सिंधिया और उसके समर्थकों के बीजेपी में आने से बीजेपी आलाकमान को लगा था कि इसके बाद वह दलित वोटों से हो रहे नुकसान की भरपाई इनसे कर लेंगे लेकिन नगरीय निकाय चुनावों के परिणामों ने उसकी इन उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया। 57 साल से जनसंघ के जमाने से बीजेपी का अभेद्य किला बनी ग्वालियर नगर निगम के मेयर पद बीजेपी के हाथ से जाता रहा। यहां विधानसभा उप चुनाव में कांग्रेस से जीते सतीश सिकरवार की पत्नी डॉ. शोभा सिकरवार ने शानदार जीत हासिल कर बीजेपी को भोपाल से लेकर दिल्ली तक हिला दिया। इसमें चौंकाने वाली बात ये है कि शोभा की 28 हजार के जीत के अंतर में साथ फीसदी दलित वार्डों का ही है। इसके अलावा संभाग की इकलौती आरक्षित नगर निगम मुरैना भी पहली बार बीजेपी के हाथ से जाती रही जबकि इससे केंद्रीय कृषिमंत्री और अंचल के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर से सीधी प्रतिष्ठा जुड़ी थी।
कांग्रेस और बीजेपी दोनों के सामने कड़ी चुनौती
इस साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी अंचल में जीत की संभावनाएं दलितों के वोटों के नजरिए पर ही निर्भर कर रही है। इनके जरिए पिछली बार कांग्रेस पंद्रह साल का सत्ता से वनवास काटकर फिर सत्ता में आई थी। उसके सामने इस जनसमर्थन को बचाने और पुराने परिणाम दोहराने की बड़ी चुनौती है कि वह दलितों के वोट को बीएसपी में जाने से रोके क्योंकि अगर वह इसमें कामयाब नहीं हो सकी तो उसे फिर 2013 जैसे नतीजे ही हासिल हो सकेंगे। कमलनाथ इस कोशिश में लगे भी हैं। उन्होंने बीएसपी के संस्थापक नेताओं में से एक फूलसिंह बरैया को पार्टी में शामिल करके उनको उप चुनाव भी लड़ाया। उनके जरिए वह बीएसपी के कैडर में घुसपैठ करने की कोशिश में जुटे हैं। दूसरा युवा दलित चेहरे के रूप में देवाशीष जरारिया को आगे बढ़ाने में भी पार्टी लगी है। पार्टी में इनकी हैसियत को बताने के लिए बरैया की बेटी और जरारिया की खुद की शादी में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह से लेकर सभी दिग्गज ग्वालियर पहुंचे।
बीजेपी की यह है रणनीति
ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी इस खेल से अपने को अलग कर लिया हो। उसके भी अपने गेम प्लान हैं। पहला तो वह अपने दलित नेताओं को ताकतवर बनाकर दिखाने में लगी है। ताकि उनके जरिये वह दलितों की फिर बीजेपी में वापसी करवा सके। इसी रणनीति के चलते उप चुनाव से पहले ही बीजेपी ने गोहद क्षेत्र से विधायक मंत्री लाल सिंह आर्य को बीजेपी अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष जैसे पद पर ताजपोशी कर दी थी। इसके अलावा हाल ही में भांडेर सुरक्षित सीट से एमएलए रहे घनश्याम पिरोनिया को बांस बोर्ड का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया। ताकि भांडेर में पार्टी की राह आसान हो सके।अभी बीजेपी कुछ और दलित चेहरों को सत्ता में ऊंचा ओहदा दे सकती है, क्योंकि उसे पता है कि अभी तक दलितों और बीजेपी के बीच हुई खाई अभी रंच मात्र भी पटी नहीं है। यही वजह है कि उसने ग्वालियर में दलित महाकुम्भ जैसा बड़ा इवेंट करने की रणनीति बनाई।
कांग्रेस बोली, दलितों में बीजेपी की खुल चुकी है कलई
दलित महाकुंभ आयोजन को लेकर कांग्रेस आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए है। कांग्रेस के बड़े दलित चेहरा फूलसिंह बरैया का कहना है कि मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में बहुमत की सरकार बनने जा रही है। जनता का रुझान बीजेपी के खिलाफ है क्योंकि उसके जो कारनामे राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे हैं उससे उनके खलाफ वोट पड़ना तय है। बीजेपी का पूरा नेतृत्व इससे घबराया हुआ है। उन्हें अब लग रहा है कि बबब साहब आंबेडकर को मैंने वाले एस सी एस टी और ओबीसी और माइनोरिटी के जो लोग हैं वे सब संविधान में विश्वास रखते है और बीजेपी संविधान ही खत्म करने का ऐलान कर चुकी है। ऐसे में संविधान में भरोसा रखने वालों ने तय कर लिया है कि बीजेपी को हम केंद्र से लेकर राज्य तक में धूल चटा देंगे। इसलिए अब उसने सोचा है कि बाबा साहब की जयंती के नाम पर लुभावने नारे लगाकर हम इनके वोट ले लेंगे। लेकिन यह उसकी बेशर्मी की हद है क्योंकि जो बाबा साहब के पवित्र संविधान को नष्ट करना चाह रहे हो फिर किस मुंह से वह बाबा साहब की जयंती मना रहे हो। ये हारी और घबराई हुई बीजेपी का कदम है। यह सरकारी आयोजन के नाम पर भले ही बुला लें लेकिन बीजेपी के नेता तो संविधान में भरोसा रखने वालों के बीच जा भी नहीं पाएंगे क्योंकि अब उन्हें इनसे नफरत सी हो गई।
बीजेपी नेता बोले दलितों के लिए जो किया हमारी पार्टी ने किया
बीजेपी के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य दलित महाकुंभ की तैयारियों में बीते एक सप्ताह से जुटे हैं। आर्य का कहना है की कांग्रेस पार्टी ने दलितों के साथ हमेशा धोखा दिया है। 57 साल बाद नरेंद्र मोदी की सरकार ने गरीबों के घर बनाए। उन्होंने कहा, कांग्रेस ने दलितों के लिए शौचालय क्यों नहीं बनाए, जो अब मोदी जी को बनाना पड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि दलित महाकुंभ ऐतिहासिक होगा ।