BHOPAL: जिसके गेट पर लिखा जंगल में बाघ है, उस प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट के बीच रसूखदारों की सड़क के लिए कागजों में तलाशा जा रहा 'रास्ता'

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Sunil Shukla
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BHOPAL: जिसके गेट पर लिखा जंगल में बाघ है, उस प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट के बीच रसूखदारों की सड़क के लिए कागजों में तलाशा जा रहा 'रास्ता'

राहुल शर्मा, BHOPAL. केरवा (Kerwa) के टाइगर मूवमेंट (Tiger Movement) वाले प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट एरिया (Protected Forest Area) में रसूखदारों की खातिर एक और पक्की सड़क बनाने के लिए वन विभाग (Forest Department) की फाइलों में कानूनी रास्ता साफ करने का खेल खेला रहा है। ठीक उसी तरह जैसे कलियासोत डैम (Kaliyasot Dam) के 13 शटर से जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी (JLU) की सड़क के लिए खेला गया था। हैरानी की बात ये है कि केरवा के मेंडोरा (Mendora) के पास जंगल में जिन रसूखदारों की 27 एकड़ जमीन के लिए रास्ता देने के नाम पर 800 मीटर पक्की सड़क बनाने मंजूरी मांगी गई है वहां वन विभाग ने ही चेतावनी के बोर्ड लगवाए हैं जिन पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है, जंगल में बाघ है। इस खास सड़क की अनुमति से जुड़ी फाइल की तेज रफ्तार विभाग में भी चर्चा का विषय बनी हुई है। द सूत्र (The Sootr) के खास इन्वेस्टीगेशन की इस कड़ी में आइए आपको समझाते हैं कैसे और क्यों चल रहा है ये खेल।



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केरवा के मेंडोरा के पास जंगल में 800 मीटर पक्की सड़क बनाने मंजूरी मांगी गई है।

केरवा के मेंडोरा के पास जंगल में 800 मीटर पक्की सड़क बनाने मंजूरी मांगी गई है।




भोपाल शहर के आसपास 40 से ज्यादा टाइगर का मूवमेंट



भोपाल की पहचान कुछ बरसों पहले तक यहां की बेमिसाल ग्रीनरी और झीलों के कारण थी लेकिन अब इसकी पहचान देश की टाइगर कैपिटल के रूप में भी होने लगी है। इसकी वजह है शहर के आसपास 40 से ज्यादा टाइगर का मूवमेंट। देश में किसी भी शहरी इलाके में इतने बाघ नहीं हैं।  लेकिन विडंबना ये है कि इसी भोपाल में कई रसूखदार बाघों की बढ़ती नैसर्गिंक सत्ता को मिटाने पर तुले हुए हैं। सरकार के स्तर पर भी इसमें कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही। भोपाल के कलियासोत, केरवा, समरधा, अमोनी और भानपुर के दायरे में करीब 13 बाघ घूम रहे हैं। इनका जन्म यहीं हुआ है। बाघिन टी-123 का तो पूरा कुनबा ही यहीं है। पर इनके इलाके से ही आम रास्ता निकालने की तैयारी हो रही है। केरवा के सामने चंदनपुरा के जंगलों में निजी खसरा नंबर 81/1 की भूमि पर जाने के लिए जिस रास्ते को तय किया जा रहा है, यह खसरा मायालाल चंदानी के नाम पर दर्ज है।




खसरा मायालाल चंदानी के नाम पर दर्ज है खसरा।

खसरा मायालाल चंदानी के नाम पर दर्ज है खसरा।




वन विभाग में तेज रफ्तार से दौड़ रही है सड़क की फाइल



वास्तव में जिस रास्ते के निर्माण और चौड़ीकरण को लेकर यह पूरा खेल खेला जा रहा है, वह रास्ता कच्चा है, जिसे पेट्रोलिंग के लिए वन विभाग इस्तेमाल करता है और प्रतिबंधित श्रेणी में आता है। इसे गेट लगाकर बंद किया हुआ है। गेट पर स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि यहां वन में बाघ हैं। प्रवेश प्रतिबंधित है। बावजूद इसके यहां वन, प्रशासन से लेकर सभी विभागों के जिम्मेदारों ने निजी जमीन पर जाने के लिए राह निकालने की कवायद कर ली है। बड़ा सवाल यह है कि जब भोपाल-नागपुर हाईवे पर ओबेदुल्लागंज से आगे होशंगाबाद की ओर बरखेड़ा से बिनेका तक  12.5 किमी जंगल से होकर गुजरी सिंगल लेन सड़क के चौड़ीकरण की इजाजत लेने में 3 साल का समय लग गया तो एक निजी भूमि पर आने-जाने के लिए रास्ता देने में इतना उत्साह और जल्दबाजी क्यों दिखाई जा रही है। बताया जा रहा है कि इस खास सड़क की मंजूरी का आवेदन वन विभाग में इतनी तेज गति से दौड़ा है कि करीब 8 महीने में ये अनुमोदन के स्तर पर पहुंच गया है। जबकि होशंगाबाद जाने वाली सड़क से हजारों -लाखों लोगों का हित जुड़ा है और मेंडोरा से होकर गुजरने वाली प्रस्तावित सड़क पर सिर्फ एक निजी जमीन।




अनुशंसा पत्र।

अनुशंसा पत्र।




JLU से 13 शटर की तरह केरवा के जंगल में नई सड़क की तैयारी



विश्वस्त सूत्रों के अनुसार फॉरेस्ट का अमला पिछले कुछ महीनों से केरवा में मेंडोरा से सटे जंगल में एक नई और पक्की सड़क के निर्माण की राह में नियम- कानून की अड़चनें दूर करने की कागजी खानापूरी करने में जुटा हुआ है। जंगल के बीच जिस निजी जमीन के लिए सड़क बनाने की कवायद की जा रही है उसके मालिक सरकार और प्रशासन में खासा दबदबा रखते हैं। यही वजह है कि फॉरेस्ट के नीचे से ऊपर तक के अधिकारी वनक्षेत्र से पक्की सड़क निकालने की प्रक्रिया पर कोई सवाल नहीं खड़े कर पा रहे हैं। दरअसल यह पूरा खेल कलियासोत डैम के 13 शटर से लेकर जागरण लेक सिटी यूनिवर्सिटी यानी जेएलयू के लिए बनाई गई सड़क की तरह खेला जा रहा है। एक सड़क को कैसे एक निजी संस्थान या व्यक्ति के स्वार्थ से हटाकर जनसमूह के हित से जोड़ दिया जाता है, यह उसका एक जीताजागता उदाहरण है।



केरवा में नई सड़क के लिए भी खेला जाएगा जनहित का खेल



पर्यावरणविद् राशिद नूर खान का कहना है कि सबसे पहले जब जेएलयू बना तो सिर्फ उस तक जाने के लिए बाघ भ्रमण क्षेत्र और इको सेंसेटिव जोन के बीच से सड़क बनाई गई। जब शहर के कुछ जागरूक लोगों ने इसका विरोध किया तो कुछ समय बाद धीरे से उस सड़क को 13 शटर वाली सड़क से जोड़ दिया गया। इस इलाके से कई रेसीडेंशियल कॉलोनियां जोड़ दी गईं हैं। अब जरूरत हो या न हो पर अब जब भी इस सड़क का मुद्दा उठेगा तो इसे जनसमूह का हित बताकर निजी स्वार्थ को सिद्ध कर दिया जाएगा। इसी तरह मेंडोरी के पास जिस 800 मीटर की पक्की सड़क बनाने और चौड़ीकरण के लिए परमीशन ली जा रही है उसके लिए  भी अब यही खेल खेला जाएगा। अभी यहां मामला एक निजी भूमि से जुड़ा है लेकिन जैसे ही नई सड़क बनेगी आसपास के अन्य निजी जमीन मालिक भी इससे अपनी जमीन को कनेक्ट कर इस सड़क को जनसमूह के हित से जोड़ देंगे औऱ इसके बाद सबकुछ जस्टिफाई हो जाएगा। यानी यहां न आएदिन घूमने वाले बाघों को कोई खतरा और न ही यहां इको सेंसेटिव जोन को।



कई रसूखदार कर रहे जमीन खरीदने की तैयारी



सूत्रों की मानें तो यहां कई रसूखदार जमीन खरीदने की तैयारी कर रहे हैं। अभी जिस निजी भूमि तक कच्चा रास्ता है उसके आसपास मायालाल चंदानी, चंदरलाल, रवि लिमये, रतनलाल चंदानी, निशहाय सहित अन्य के नाम करीब 27 एकड़ जमीन दर्ज है। यदि डेढ़ दो साल की ही बात करें तो इस इलाके और आसपास के जंगली क्षेत्र में कई बार टाइगर देखा गया है। 22 फरवरी 2021 को यहां बाघ टी-123-1 का मूवमेंट कैप्चर हुआ था। 10 सितंबर 2021 को एक बाघ ने इसी क्षेत्र के आसपास एक पशु का शिकार किया। इसी साल12 अप्रैल 2022 को एक बाघ केरवा चौकी तक पहुंच गया था। वन अमले के कर्मचारियों की माने तो एक बाघ ने यहां अपना स्थाई निवास ही बना लिया है और वो इस इलाके के आसपास ही रहता है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इतने सेंसेटिव एरिया में पक्की सड़क के निर्माण और वाहनों की आवाजाही से टाइगर सहित वन्य जीवों पर कितना गंभीर और विपरीत असर पड़ेगा।



पक्की सड़क बनी तो पर्यावरण को ये नुकसान होना तय



निजी भूमि के लिए 800 मीटर की सड़क मेंडोरा के खसरा 197 से होकर गुजरेगी जो नजूल के खसरे में छोटा जंगल के रूप में दर्ज है, यहां से रास्ता मेंडोरी के खसरा 528 से होकर निकलेगा जो खसरे में मेघदूत यानी घने जंगल के रूप में दर्ज है।  इसके बाद रास्ता चंदनपुरा के खसरे 81/1 पर पहुंचेगा, गौर करने वाली बात ये है कि जहां जमीन पथरीली होने के बाद भी खसरे में कृषि उपयोग के लिए दर्ज है। अभी यहां बने गेट से जाने में वन विभाग से अनुमति लेना पड़ती है वहां आम आवाजाही शुरू होने के साथ ही जंगल में खलल बढ़ जाएगा। रास्ते को गेट पार करते ही दोनों और से बागड़ से रोक दिया जाएगा। कलियासोत से केरवा और आगे तक शहर किनारे करीब 7 हजार हैक्टेयर जंगल में से 1 हजार हैक्टेयर पीएसपी यानी पब्लिक सेमी पब्लिक लैंडयूज के तहत अर्ध सार्वजनिक उपयोग के निर्माणों में खत्म हो गया। अब भी 6 हजार हैक्टेयर वन क्षेत्र बचा हुआ है। यहां बाघों संरक्षण औऱ संवर्धन के लिए बेहतर भौगोलिक स्थितियां है। यदि इसे संरक्षित कर लिया तो भोपाल का ये जंगल देशभर में बाघों को रहने के लिए एक नायाब उदाहरण बन सकता है, पर इसकी चिंता न सरकार औऱ न ही जिम्मेदार विभागों को है।



सड़क के निर्माण और चौड़ीकरण से 1.8 एकड़ जंगल होगा खत्म



मेंडोरी के जंगल के जिस गेट पर आम जनता के लिए चेतावनी बोर्ड लगाकर लिखा है कि वन में बाघ है। इससे 800 मीटर जंगल के अंदर खसरा 81/1 मायालाल चंदानी की प्राइवेट लैंड है। इसी प्राइवेट लैंड तक पहुंचने के लिए 800 मीटर लंबी और 9 मीटर चौड़ी सड़क का निर्माण होना है। अभी ये रास्ता कच्चा है जो बामुश्किल 4 मीटर चौड़ा है। इस खास जमीन के लिए रास्ता देने जो सड़क चौड़ी होगी, उसके लिए फारेस्ट की समर्धा रेंज की  0.720 हैक्टेयर वनभूमि का उपयोग किया जा रहा है। यानी निजी जमीन को रास्ते देने के नाम पर  1.8 एकड़ जंगल को खत्म किया जा रहा है। प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट को उस रास्ते के लिए खत्म किया जा रहा है, जिसमें अभी यह तक  यह तय नहीं है कि उस प्राइवेट लैंड का उपयोग आखिर किस कार्य के लिए किया जाएगा।



DFO की साइट इन्सपेक्शन रिपोर्ट (पेज-2)




DFO की साइट इन्सपेक्शन रिपोर्ट।

DFO की साइट इन्सपेक्शन रिपोर्ट।




सड़क की अनुमति के लिए बनाए प्रस्ताव में विरोधाभास



वन विभाग ने इस निजी भूमि तक जाने के लिए जरूरी सड़क बनाने के बारे में जो प्रस्ताव बनाया है उसमें भी असमंजस की स्थिति है। इस प्रस्ताव के पार्ट-1 में लिखा कि जिस जगह से रास्ता होकर गुजरेगा वह प्रोटेक्टेड एरिया नहीं है और न ही इको सेंसेटिव जोन है। जबकि पार्ट टू के लीगल स्टेटस और डीएफओ भोपाल  की निरीक्षण रिपोर्ट में इसे प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट कहा गया। वहीं पार्ट-2 में यहां वाइल्ड लाइफ मूवमेंट एरिया वाले कॉलम में यस यानी (हां) लिखा है, पर सीधे तौर पर टाइगर मूवमेंट को नहीं स्वीकारा, जबकि सरकारी दस्तावेजों से लेकर कई ऐसे जीवंत प्रमाण हैं, जिनमें सीधे तौर पर इस इलाके में टाइगर मूवमेंट की पुष्टि होती है। इस मामले में भोपाल के डीएफओ आलोक पाठक का कहना है कि निजी भूमि के लिए रास्ता देना वन विभाग के अधिकार क्षेत्र में है। सारी कार्रवाई नियमानुसार ही की गई है और रिपोर्ट विभाग को सबमिट कर दी है। अब उसे ही परमीशन को लेकर निर्णय लेना है। सड़क बनाने की अनुमति सशर्त दी जाएगी, इसमें अंडरपास के निर्माण, सड़क के दोनों ओर 12 फीट ऊंची फेंसिंग लगाने की शर्त है। इसके साथ ही सड़क के गेट पर अधिकार वन विभाग का ही होगा। सड़क बनाने की अनुमति लेने वाले निजी भूमि स्वामी उस जमीन पर क्या करेंगे यह हमारे विभाग का मैटर नहीं है।


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