ग्वालियर के गली-कूचों से लेकर मेला, मंगोड़े और मिठाई की दुकानों पर, फसानों में आज भी अपनी आदतों के साथ शाश्वत हैं अटल

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Shivasheesh Tiwari
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ग्वालियर के गली-कूचों से लेकर मेला, मंगोड़े और मिठाई की दुकानों पर, फसानों में आज भी अपनी आदतों के साथ शाश्वत हैं अटल

देव श्रीमाली, GWALIOR. जननायक अटल विहारी वाजपेयी का जन्मदिन है। ग्वालियर इस रोज अपना गौरव दिवस मना रहा है क्योंकि भारत माता के इन सपूत ने ग्वालियर के ही शिंदे की छावनी स्थित घर में अपने जीवन का ककहरा सीखा। वे ब्रितानी हुकूमत और राजतंत्र के साये में पले बढ़े, लेकिन भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े जननायक बन गए। वे दिल्ली में रहे,लखनऊ से चुनाव जीते, लेकिन उनकी देह में जो दिल था, उसमें सिर्फ ग्वालियर स्पंदन करता रहा,ताउम्र। वे आज भी ग्वालियर की गलियों में किस्सों, कहानियों,संस्मरणों और अपनी आदतों के साथ घूमते मिलते है। वे आज भी ग्वालियर के मेले की यादों में बसे हैं तो कोई लड्डू की दुकान या फुटपाथ पर लगा मंगोड़े का खोमचा आज भी उन्हीं के नाम से जाना जाता है।





वैसे तो भारत रत्न अटल विहारी वाजपेयी को किसी क्षेत्र या राज्य से बांधकर सीमित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे पूरे देश ऐसे बिरले जननायक थे, जिनके दिल में भारत बसता था और जो करोड़ों भारत वासियों के दिलों में बसते हैं। लेकिन ग्वालियर के लिए अटल जी और अटल जी के लिए ग्वालियर का एक खास अर्थ था, है और सदैव रहेगा। वे भले ही सियासत के सिलसिले में कानपुर, लखनऊ से लेकर दिल्ली पहुंचे, लेकिन अपनी मातृभूमि ग्वालियर से जुड़ाव उनका ताउम्र रहा और उन्होंने यहां के खानपान और दोस्तों से भी अपना याराना अंतिम सांस तक कायम रखा। यही कारण  है कि देश में ग्वालियर ही है, जहां उन्हें सिर्फ नेता की तरह नहीं, बल्कि भगवान की  तरह याद किया जाता है और भले भव्य ना हो लेकिन यहां उनका एक मंदिर भी है, जिसमें उनकी सुबह शाम पूजा भी होती है। 





यूपी से भी कुछ महीनों का रिश्ता, ग्वालियर में ही संघ से जुड़े





असल में ग्वालियर का हर गली कूचा ऐसा है, जहां से अटल जी की यादें जुड़ीं है। वे भले ही उत्तर प्रदेश के यमुना नदी के किनारे बसे गांव बटेश्वर में जन्मे, लेकिन वे वहां बस कुछ दिन ही वहां रहे और फिर ग्वालियर आ गए। यहां उनके पिता सिंधिया रियासत में शिक्षा विभाग में नौकरी करते थे। अटल का जन्म 25 दिसंबर 1924 को उत्तर प्रदेश के बटेश्वर गांव में हुआ था, लेकिन बटेश्वर से उनका रिश्ता बमुश्किल कुछ महीने ही था। उनका बचपन ग्वालियर के कमल सिंह के बाग में गुजरा। उन्होंने प्रायमरी स्कूल और ग्रेजुएशन ग्वालियर में ही किया। वे यहां जनकगंज शाखा में जाकर आरएसएस के संपर्क में आए और फिर अपना जीवन उसी को सौंप दिया। 





उन्होंने राजनीति का ककहरा भी यहीं सीखा और विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान एमएलबी कॉलेज ) में छात्र संघ पदाधिकारी बने। यहीं से कविता लेखन की शुरुआत की। यहीं की गलियों में अपने सहपाठियों के साथ गुल्ली डंडा और खो-खो खेला। बाद में वे आगे बढ़ते गए और उनकी बचपन की यादें फसाने बनकर आज भी कही-सुनी जाती हैं।  ग्वालियर में उनका पैतृक घर कमल सिंह के बाग में स्थित है और इन्हीं गलियों से होकर उन्होंने राजनीति की शुरुआत की और उसके बाद वह ग्वालियर से दिल्ली तक के सफर को तय किया।अब ग्वालियर में स्थित अटल जी का घर एक लाइब्रेरी के रूप में तब्दील कर दिया गया है। अटल जी जब जिंदा थे, तब उन्होंने ही अपने घर को लाइब्रेरी बनाने का निर्णय लिया था। उनका यह सपना पूरा हो गया है।





अटल का स्कूल बना स्मारक, हाजिरी रजिस्टर आज भी रखा है 





अटल  विहारी वाजपेयी की उच्चतर माध्यमिक शिक्षा महाराज बाड़ा स्थित गोरखी स्कूल में हुई। यह स्कूल तब सिंधिया राज परिवार द्वारा संचालित होता था, लेकिन स्वतंत्रता के बाद यह स्कूल मध्यप्रदेश सरकार के अधीन हो गया। अटल ने जिस स्कूल में पढ़ाई की, उस स्कूल के छात्र और शिक्षक अपने आप को गौरवांन्वित महसूस करते हैं। ग्वालियर में स्थित गोरखी स्कूल का हर कमरा और मैदान अटल जी की यादों से संजोया गया है। 1935 -37 में जब अटल जी स्कूल में पढ़ाई करते थे तो उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी इस स्कूल में शिक्षक थे। स्कूल प्रबंधन ने आज भी उस रजिस्टर को सुरक्षित रखा है, जिसमें अटल जी की उपस्थिति दर्ज हुआ करती थी। अब इस स्कूल को में अटल जी के नाम पर एक छोटा स्मारक भी बनाया गया है, जिसमें उनसे जुड़े फोटो और ग्वालियर में उनके परिजन के पास मौजूद उनके निजी वस्तुओं को संग्रहित करके रखा गया है। अब इस स्कूल में उनकी यादों और सामग्रियों को सहेजने के लिए एक भव्य म्यूजियम बना दिया गया है।





आज भी चटखारे लेकर सुने जाते हैं उनके खानपान के शौक 





अटल जी खाने के बहुत शौकीन थे। यही वजह है कि ग्वालियर शहर में कई दुकानें आज भी स्थित हैं, जहां वे अपने बचपन और अपनी युवावस्था में घंटों बिताया करते थे। ग्वालियर में नया बाजार में स्थित बहादुरा स्वीट्स के लड्डू और रसगुल्ले अटल जी को बेहद पसंद थे। कहा जाता है कि जब वे प्रधानमंत्री थे तो लोग बहादुरा के लड्डू और रसगुल्ले यहां से ले जाते थे और यही उनका एंट्री पास हुआ करता था। इसके साथ ही शहर में एक पुरानी सड़क किनारे लगने वाली दुकान के गरमागरम  मंगोड़े भी उन्हें पसंद थे। मंगोड़े एक अम्मा बनाती थी। एक बार जब पीएम के तौर पर अपना जन्मदिन मनाने ग्वालियर आये तो उन्हने इन अम्मा को भी मिलने बुलाया था। पहले वे वही जाकर मंगौड़े खाते थे, लेकिन जब वे राष्ट्रीय नेता हो गए, तब भी वे इसका स्वाद नहीं भूले। वे जब भी ग्वालियर आते, वहां से मंगाकर मंगोड़े जरूर खाते थे। 





अटल जी को ग्वालियर मेले में घूमना पसंद था





अटल जी को बचपन से ही ग्वालियर मेले को लेकर खास आकर्षण था और यह ताउम्र कायम रहा। वे अनेक राष्ट्रीय ओहदों पर होते हुए भी अचानक बिना किसी को पूर्व सूचना दिए मेले में पहुंच जाते थे और अकेले ही घूमते रहते थे। जब तक प्रशासन और पार्टी नेताओं को इसकी भनक लगती, वे ट्रेन पकड़कर दिल्ली लौट भी जाते थे। बीजेपी के वरिष्ठ  नेता और उनके साथ काम कर चुके राज चड्ढा जब ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण के अध्यक्ष बने, तब मेले ने अपनी स्थापना के 100 साल पूरे किए थे। चड्ढा जी उन्हें इसके समारोह में न्योता देने दिल्ली गए। अटल जी आए भी और उस समारोह में उन्होंने मेले और ग्वालियर से जुड़ीं कई यादें सुनाईं और कई बार बार भावुक हुए। अटल जी का जन्मदिन हो या पुण्यतिथि, ग्वालियर के लिए हमेशा खास रहती है। इस दिन से पहले ही उनसे जुड़ी बातें यहां के गली-चौबारों में शुरू हो जाती है।



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