मध्य प्रदेश में बच्चों का कुपोषण दूर करने वाली आंगनबाड़ियां संसाधनों की कमी के चलते खुद कुपोषित हो गईं हैं। बच्चों का कुपोषण मिटाने के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन हालात बहुत बुरे हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 75 फीसदी आंगनबाड़ियों के पास अपना खुद का भवन नहीं है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं मजबूरी में अपने घरों में केंद्र चला रही हैं। वहीं 97 हजार से ज्यादा केंद्रों में से 13 फीसदी केंद्रों में पढ़ने-पढ़ाने की सामग्री नहीं है। सरकार जो पैसा आंगनबाड़ी के लिए खर्च करती है उसमें बच्चों की देखरेख, शिक्षा, पोषण आहार देने के लिए सभी केंद्रों में सहायिका और कार्यकर्ताओं की नियुक्ति भी की जाती है। वहीं इनको संचालित करने के लिए जो भवन बनाए जाते हैं वो अभी तक नहीं बने हैं। आंगवाड़ी संचालन के लिए जो किराए से भवन उपलब्ध कराए गए हैं उनमें ज्यादातर बच्चों के बैठने, पोषण आहार, रजिस्टर समेत अन्य सामान रखने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। इस तरह के करीब 63 हजार आंगनबाड़ी केंद्र कच्चे भवनों में संचालित हो रहे हैं।
पानी की व्यवस्था नहीं
प्रदेश में करीब 15 हजार केंद्रों में बच्चों को पीने का पानी नहीं है। इन केंद्रों में आने वाले बच्चों और स्टाफ को पीने का पानी साथ लाना पड़ता है। करीब 5 हजार केंद्रों में पानी की इंतजाम कुएं पर निर्भर हैं।
मशीनें पड़ीं खराब
केंद्रों पर बच्चों का वजन करने वाली मशीनें भी खराब पड़ी हैं। 1 लाख 81 हजार से ज्यादा मशीनें केंद्रों को दी गईं थीं। इनमें से 35 हजार मशीनें खराब पड़ी हुईं हैं। इनमें सबसे ज्यादा 27 हजार एडल्ट वेईंग मशीने खराब हैं।
शौचालय का इंतजाम नहीं
एक और जहां सरकार स्वच्छता अभियान पर जोर दे रही है वहीं 30 हजार केंद्रों पर शौचालय का इंतजाम नहीं है। इन केंद्रों पर बच्चों को खुले में जाना होता है या अपने घरों में जाना होता है। कई केंद्र ऐसे भी हैं जहां शौचालय तो हैं लेकिन पानी न होने की वजह से इस्तेमाल नहीं हो रहे हैं।
मेरे पास उत्तर नहीं: प्रमुख सचिव
इस मामले पर महिला बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव अशोक शाह का कहना है कि सभी आंगनबाड़ियों को कब तक भवन समेत अन्य संसाधन उपलब्ध हो जाएंगे इसका मेरे पास को बना बनाया उत्तर नहीं है। कोई स्पेसिफिक आंगनबाड़ियों के संबंध में बात करें तो कुछ बता पाऊंगा। सभी आंगनबाड़ियों की बात करना है तो डायरेक्टर से बात करें।