बालाघाट में धीरेंद्र शास्त्री की वनवासी रामकथा का विरोध, आदिवासी बोले- जिस जगह पर कथा हो रही, वहां हमारे आराध्य बड़ा देव रहते हैं

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Atul Tiwari
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बालाघाट में धीरेंद्र शास्त्री की वनवासी रामकथा का विरोध, आदिवासी बोले- जिस जगह पर कथा हो रही, वहां हमारे आराध्य बड़ा देव रहते हैं

BHOPAL/BALAGHAT. बागेश्वर धाम के कथावाचक की बालाघाट के परसवाड़ा में वनवासी रामकथा होनी है। इस कथा का काफी विरोध हो रहा है। इस रामकथा को रुकवाने के लिए यहां के आदिवासी संगठन दो-दो बार हाई कोर्ट में याचिका तक दायर कर चुके हैं। आखिर इस कथा को विरोध क्यों हो रहा है? एक वेबसाइट के मुताबिक, आदिवासियों आदिवासियों का कहना है कि जिस जगह पर कथा हो रही है, वो उनके आराध्य ‘बड़ा देव’ का स्थान है। ये आदिवासी संस्कृति पर अतिक्रमण है। ये पूरी तरह से आदिवासी क्षेत्र है। इतने बड़े आयोजन के लिए ग्राम सभा की इजाजत तक नहीं ली गई।





आदिवासियों का ये भी आरोप है कि धीरेंद्र शास्त्री ने आदिवासियों का यह कहकर अपमान किया है कि जंगली आदिवासियों के बीच कथा करने जा रहे हैं। आदिवासी का मतलब जंगल में रहने वाले लोग नहीं हैं। अब समय बदल चुका है। आदिवासियों के मुताबिक, देश के सर्वोच्च पद (राष्ट्रपति) पर आसीन द्रौपदी मुर्मू भी आदिवासी हैं। मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल भी आदिवासी हैं। ऐसे में कोई कथावाचक ये कैसे कह सकता है कि वह जंगल के आदिवासियों के बीच कथा कर रहे हैं।





आदिवासी समाज के गंभीर आरोप





मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधान जनजाति उत्थान संगठन के युवा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अंशुल शाह मरकाम कहते हैं कि आदिवासी कम पढ़े लिखे हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि वे अपने अधिकारों के प्रति सचेत नहीं हैं। हमने इस मसले पर हाई कोर्ट में अर्जी लगाई थी, लेकिन ठीक रिप्रेजेंटेशन न होने से खारिज हो गई। स्थानीय आदिवासी नेताओं पर विरोध ना करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। सत्ता में बैठे लोग खुद अपने तरह से नियमों की व्याख्या कर रहे हैं।





मध्यप्रदेश आदिवासी विकास परिषद के जिला अध्यक्ष दिनेश धुर्वे कहते हैं कि ग्राम सभा की अनुमति के बिना ये कार्यक्रम हो रहा है, ये आदिवासियों का अपमान है। कथा स्थल आदिवासियों का धर्मस्थल है। यहां हमारे बड़ा देव का ठाना है, लेकिन इसके बावजूद हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई। हाई कोर्ट ने हमारी याचिका भले ही निरस्त कर दी, लेकिन हम दोबारा दाखिल करेंगे।





आदिवासियों की ये 4 प्रमुख आपत्तियां







  • कथास्थल आदिवासियों के आराध्य बड़ा देव का स्थान।



  • आयोजन की परमिशन ग्राम सभा से नहीं ली गई, ये आदिवासियों का अपमान है।


  • संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आदिवासियों की संस्कृति को संरक्षित रखा जाएगा, लेकिन इसका उल्लंघन किया गया।


  • धीरेंद्र शास्त्री ने आदिवासियों को जंगली बोलकर उनका अपमान किया।






  • एक पूर्व विधायक ने भी धीरेंद्र शास्त्री पर केस दर्ज करने की मांग की थी





    मई में ही बालाघाट के पूर्व विधायक दरबू सिंह उइके ने धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। दरबू भी इसी बात से नाराज थे कि धीरेंद्र ने जंगल में रहने वाले आदिवासियों को कथा सुनाने का कहा था। दरबू का कहना था कि धीरेंद्र शास्त्री ने आदिवासियों का अपमान किया है। हम उनके यहां आने का विरोध नहीं करते, लेकिन आदिवासियों का अपमान कर धीरेंद्र ने अपनी ओछी मानसिकता का परिचय दिया है। (यहां क्लिक कर पूरी खबर पढ़ें)





    सहस्त्रबाहु अर्जुन पर बोलकर विवादों में आए थे धीरेंद्र शास्त्री





    धीरेंद्र शास्त्री ने सहस्त्रबाहु अर्जुन को लेकर भी बयान दिया था, हालांकि इसके बाद उन्होंने खेद भी जताया था। लेकिन मामला थमा नहीं। 21 मई को भोपाल में हैहय समाज ने धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ पोस्टर लगाकर विरोध जताया था। कहा था कि सहस्त्रबाहु अर्जुन हमारे इष्ट हैं, धीरेंद्र शास्त्री ने उनके खिलाफ बोलकर हमारे आराध्य का अपमान किया है। उन्हें माफी मांगनी चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करते तो उनके खिलाफ आंदोलन किया जाएगा। इससे पहले नागपुर की अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के प्रमुख श्याम मानव ने भी धीरेंद्र शास्त्री को चैलेंज दिया था। 



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