MP की भोजशाला में बसंत पंचमी कार्यक्रम, हिंदू-मुस्लिमों का दावा; ये विवाद, जानें

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Aashish Vishwakarma
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MP की भोजशाला में बसंत पंचमी कार्यक्रम, हिंदू-मुस्लिमों का दावा; ये विवाद, जानें

धार. धार में स्थित भोजशाला (Bhojshala) लंबे समय से विवादों में रही है। करीब 800 साल पुरानी इस भोजशाला को लेकर हिंदू-मुस्लिम मतभेद हैं। हिंदुओं के अनुसार भोजशाला यानी सरस्वती का मंदिर (Saraswati Temple) है। जबकि मुस्लिम यहां इबादतगाह होने का दावा करते हैं। 5 फरवरी को यहां चार दिवसीय बसंतोत्सव की शुरूआत हो रही है। शनिवार को बसंत पंचमी (Basant panchmi) पर दिनभर सरस्वती की पूजा होगी। इसके बाद यहां तीन दिन अन्य कार्यक्रम होंगे। पिछले साल हुए तनाव के चलते प्रशासन इस बार मुस्तैद है। भोजशाला परिसर में विशेष वाहन सहित अधिकारी और 100 पुलिसकर्मी तैनात रहेंगे। जबकि पूरे शहर में करीब 500 का पुलिस बल तैनात रहेगा। इस तरह से चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के इंतजाम किए गए हैं। 





उमा, प्रज्ञा और कपिल मिश्रा होंगे अतिथि: भोजशाला के कार्यक्रम में हिंदुवादी नेता और दिल्ली के पूर्व MLA कपिल मिश्रा (Kapil Mishra) मुख्य अतिथि होंगे। वे धर्म सभा को दोपहर 12 बजे संबोधित करेंगे। वहीं इस मौके पर प्रज्ञा ठाकुर की भी उपस्थिति रहेगी। अचानक से पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती का भी आगमन हो रहा है। ऐसे में भोजशाला का यह आयोजन और भी महत्वपूर्ण हो गया है। वहीं, साध्वी ऋतम्भरा ने भी हिंदुओं से आह्वान किया है कि मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला को मुक्त कराने के लिए हिंदू आगे आएं और अपने हिन्दू होने का परिचय दें।







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धार की भोजशाला और दरगाह।







इस वजह से है विवाद: सन् 1034 में परमार वंश के राजा भोज ने भोजशाला का निर्माण कराया था। यह राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती सदन है। यहां कभी 1000 वर्ष पूर्व शिक्षा का एक बड़ा संस्थान हुआ करता था। बाद में यहां पर राजवंश काल में मुस्लिम समाज को नमाज के लिए अनुमति दी गई, क्योंकि यह ऐतिहासिक इमारत खाली पड़ी थी। पार्टी में सूफी संत कमाल मौलाना की दरगाह है। ऐसे में लंबे समय से मुस्लिम यहां नमाज अदा कर रहे हैं। परिणाम स्वरूप पर दावा करते हैं कि यह भोजशाला नहीं बल्कि कमाल मौलाना की दरगाह है।





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सियासत भी खूब हुई: हिंदूओं का कहना है कि यह दरगाह नहीं बल्कि राजा भोज के काल में स्थापित सरस्वती सदन भोजशाला है। इतिहास में भी इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि यहां से अंग्रेज मां सरस्वती की प्रतिमा निकाल कर ले गए, जो कि वर्तमान में लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित भी है। विवाद की शुरुआत 1902 से बताई जाती है, जब धार के शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक खुदे देखे थे और इसे भोजशाला बताया था। विवाद का दूसरा पड़ाव 1935 में आया, जब धार महाराज ने इमारत के बाहर तख्ती टंगवाई जिस पर भोजशाला और मस्जिद कमाल मौलाना लिखा था। आजादी के बाद ये मुद्दा सियासी गलियारों से भी गुजरा। मंदिर में जाने को लेकर हिंदुओं ने आंदोलन किया। जब-जब वसंत पंचमी और शुक्रवार साथ होते हैं, तब-तब तनाव बढ़ता है।







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फाइल फोटो।





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