हरीश दिवेकर, BHOPAL. बीजेपी विधायकों की मुश्किल अब और बढ़ने वाली है। सत्ता और संगठन की कवायद से ऐसे नए जतन होने वाले हैं। जिसका सीधा असर विधायक या टिकट के दावेदारों पर पड़ेगा। उनकी जरा-सी कोताही उन्हें टिकट से दूर कर सकती है। मजेदार बात ये है कि ये फैसला सिर्फ आला नेता ही नहीं करेंगे अदने से कार्यकर्ता की रिपोर्ट पर भी विधायक का टिकट कट सकता है।
मध्यप्रदेश को हाथ से जाने नहीं देना चाहती BJP
बीजेपी किसी भी कीमत पर मध्यप्रदेश जैसे राज्य को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती। 2018 में मिली चुनावी हार के बाद इस बार पार्टी वैसे भी पहले से ज्यादा सजग है। आलाकमान को इस बात का भी इल्म है कि लगातार 18 साल सरकार में रह चुके कुछ मंत्री और विधायक सत्ता के नशे में चूर हो चुके हैं। नतीजा ये है कि आम मतदाता ही नहीं कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं से संपर्क भी निल हैं। इसकी नाराजगी कार्यकर्ताओं में नजर आने लगी है। चुनावी शंखनाद से पहले बीजेपी के वरिष्ठ नेता अब कार्यकर्ताओं की इसी नाराजगी को दूर करने का जतन करेंगे। साथ ही उन रूठे नेताओं को भी मनाने की तैयारी है जो स्थानीय स्तर पर अच्छी पकड़ रखते हैं लेकिन अनदेखी के चलते पार्टी से खफा हैं। शुरुआत रेड जोन वाली सीटों से होगी।
रूठों को मनाने की तैयारी में बीजेपी
कार्यकर्ताओं की नाराजगी और स्थानीय नेताओं की बेरुखी का खामियाजा बीजेपी नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों में भुगत ही चुकी है। जहां सत्ता में रहने के बावजूद पार्टी को कटनी, मुरैना, सिंगरौली, रीवा, जबलपुर, ग्वालियर और छिंदवाड़ा की महापौर की सीट गंवानी पड़ी। इसके बाद जब हार का आंकलन हुआ तो नतीजों ने पूरी पार्टी को चौंका दिया। तकरीबन दो दशक से सत्ता पर काबिज बीजेपी का कार्यकर्ता और स्थानीय नेता विधायकों और मंत्रियों से खासे नाराज हैं। उनकी बेरुखी और नाराजगी विधानसभा चुनाव में भी पार्टी पर भारी पड़ सकती है। इसलिए अब बीजेपी ने सबसे पहले ऐसे नेता और कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने का फैसला किया है। बीजेपी अब अब अपने रूठे नेताओं को मनाने की कवायद में जुटने वाली है। सत्ता और संगठन के साथ-साथ संघ भी इस काम में साथ दे सकता है।
कार्यकर्ताओं से वन टू वन चर्चा करेगी बीजेपी
रूठों को मनाने की कवायद उन सीटों से होगी जहां पिछली बार पार्टी को हार का सामना करना पड़ा या फिर पार्टी की इंटरनल रिपोर्ट में उन सीटों पर हालत ठीक नहीं है। ऐसी हारी हुई और कमजोर सीटों पर जाकर पार्टी कार्यकर्ताओं से वन टू वन चर्चा करेगी। उनकी नाराजगी दूर करने के लिए निगम मंडल, प्राधिकरण और आयोगों के खाली पड़े पदों पर नियुक्तियां की जाएंगी। इसके अलावा समितियों और संगठन में भी रूठे नेताओं को जगह दी जाएगी। सिर्फ इतना ही नहीं सभी कार्यकर्ताओं से स्थानीय विधायक और दूसरे दावेदारों के नाम पर भी चर्चा होगी। जिस विधायक की रिपोर्ट कमजोर निकली उसका पत्ता कटना भी तय होगा। इस मामले में बूथ प्रभारियों की राय काफी अहम होगी।
सिर्फ 2023 नहीं बहुत आगे की सोच रही बीजेपी
बीजेपी की नजर सिर्फ साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर नहीं है। बल्कि सोच बहुत आगे तक है। अगले साल होने वाले 5 राज्यों के चुनाव 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को मजबूत बनाएंगे। लिहाजा 2023 के चुनाव काफी अहम हैं। खासतौर से एमपी में बीजेपी पुरानी सत्ता को खोना नहीं चाहती है। पिछले चुनाव पर जिन सीटों पर बीजेपी को झटका लगा था उन सीटों पर छोटे से छोटे कार्यकर्ता को अहमियत देने की तैयारी है। ऐसी सीटों को बीजेपी ने रेड जोन में डाला है। उन सीटों के कार्यकर्ताओं के वारे न्यारे होने वाले हैं और कमजोर विधायकों पर गाज गिराने की तैयारी है।
चुनाव के वक्त में रिस्क लेना मुनासिब नहीं
ये साल गुजरते-गुजरते बीजेपी में कई बड़े बदलाव देखकर जाएगा या बदलाव की तैयारी का गवाह बनेगा। चुनाव में वक्त है लेकिन रिस्क लेना मुनासिब नहीं। खासतौर से रेड जोन वाली सीटों पर। इस जोन में बीजेपी ने ग्वालियर चंबल, महाकौशल और मालवा समेत मध्य क्षेत्र की कुछ सीटों को भी रखा है। जहां पार्टी खुद की स्थिति बहुत कमजोर समझती है।
इन सीटों को रेड जोन में डाले जाने की बहुत-सी वजह
- पहली वजह-2018 के चुनाव में इन सीटों पर कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन
विंध्य और बुंदेलखंड में बीजेपी ने पिछले चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया था। उसके बावजूद पार्टी यहां भी कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती है। इन अंचलों की कुछ सीटों को भी रेड जोन में डाला गया है।
जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, जबलपुर दक्षिण, लहार, मेहगांव, गोहद, ग्वालियर पूर्व और दक्षिण, भितरवार, डबरा, सेवढ़ा, राघौगढ़, देवरी, बंडा, मुंगावली, अशोकनगर, अमरवाड़ा, पांढुर्ना, चोरई, सौंसर, छिंदवाड़ा, परासिया, चुरहट, बैतूल, घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, कसरावद, खरगोन, कुक्षी, अलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, थांदला, पेटलावद, गंधवानी, मनावर, श्योपुर, संबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, भिंड, करेरा, पोहरी, पृथ्वीराजपुर, चाचौड़ा, चंदेरी, राजनगर, गुनौर, सतना, सिंहावल, कोतमा, मंडला, बिछिया, बैहर, लांजी, कटंगी, बरघाट, महेश्वर, मांधाता, बड़वानी, धरमपुरी और सैलाना।
ग्वालियर चंबल में सिंधिया का दबदबा
बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती मालवा में अपनी पैठ को कायम रखने की है। इसके अलावा विंध्य और बुंदेलखंड ने जिस तरह पिछली बार साथ दिया उस साथ को बरकरार रखना है। ग्वालियर चंबल में ज्योतिरादित्य सिंधिया का दबदबा है। इसके बावजूद कार्यकर्ताओं की नाराजगी मोल नहीं ली जा सकती। मध्य और महाकौशल दोनों अंचलों के कई वरिष्ठ नेता भी पार्टी के कुछ फैसलों से नाराज हैं। इन सबके अलावा हर अंचल की आदिवासी सीट पर भी मजबूत पकड़ बनानी है। इन सारे समीकरणों को साधे बगैर जीत मुश्किल ही नहीं दूर की कौड़ी भी हो सकती है। इसलिए रूठे नेताओं को मनाना बेहद जरूरी हो गया है।
सुझावों के आधार पर बनेगी चुनावी रणनीति
बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के सालभर पहले ही उन सीटों पर विधानसभा प्रभारी तैनात कर दिए हैं जिन पर पिछले चुनाव में उसे हार मिली थी। इन विधानसभा प्रभारियों की बैठक में जो फीडबैक सामने आया है उसका सार ये है कि कई विधानसभा क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले कई नेता आपसी गुटबाजी के चलते नाराज हैं। उन्होंने या तो संगठन से दूरी बना ली है या फिर वो केवल चेहरा दिखाने के लिए ही बैठकों में जाते हैं। विधानसभा प्रभारियों से बातचीत के बाद ये भी सामने आया कि पिछले चुनाव में हार का कारण कार्यकर्ताओं की नाराजगी ही रही थी। संगठन अब इसे दूर करेगा। संगठन ने तय किया है कि अब हर विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख नेताओं की सूची तैयार की जाएगी और संगठन के वरिष्ठ नेताओं और प्रभारी मंत्री उनसे सीधे बात करेंगे और उनके सुझावों के आधार पर विधानसभा में संगठन के काम और चुनावी रणनीति तय की जाएगी।
हारे और पुराने नेताओं को एक्टिव लाइन में लाने की कोशिश
कुछ ही दिन पहले प्रदेश संगठन मंत्री हितानंद शर्मा भी इंदौर पहुंचे थे। जहां हारे जीते सभी विधायक और दावेदारों से चर्चा की। बताया गया कि बैठक में गुजरात चुनाव प्रचार को लेकर चर्चा हुई। लेकिन हारे और पुराने नेताओं से मुलाकात की सबब भी यही माना जा रहा है कि उनसे संपर्क साधकर अब वापस एक्टिव लाइन में उन्हें लाने का प्रयास है।
नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने पर आमादा बीजेपी
शतरंज की बिसात पर प्यादा सबसे कमजोर मोहरा होता। लेकिन शह और मात से पहले प्यादे की ताकत बदल जाती है। कुछ ऐसा ही राजनीति के मैदान में भी है। जहां कार्यकर्ता सबसे छोटी कड़ी है। यही कड़ी कमजोर पड़ गई तो मात देने की जगह खुद शह का सामना करना पड़ता है। इस कड़ी की अहमियत बीजेपी 2018 के बाद समझ चुकी है। इसलिए नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने पर अमादा है। इससे पहले उत्तरप्रदेश में भी बीजेपी ऐसी ही कवायद पर जुटी थी। अब हिमाचल और गुजरात में भी यही जतन जारी हैं। जो एमपी में भी जल्द शुरू होते नजर आएंगे।