Jabalpur. समाज में संगठन खड़ा करना मकसद नहीं समाज को संगठित करना उद्देश्य, विभिन्न मतों का वर्णन करने में बुद्धि बाधक बन जाती है उन मतों का सार ग्रहण कर एक दिशा में आगे बढ़ना है। ये कहना था जबलपुर में पहुंचे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का। मानस भवन में आयोजित प्रबुद्धजन सम्मेलन में उन्होंने समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए समाज के लिए जीवन जीने का संदेश दिया। प्रबुद्धजनों को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि 2 हजार साल में विश्व को सुख शांतिमय बनाने के जितने प्रयास हुए वे विफल हुए। उन्होंने कहा कि हमें पूर्णतः सुख और शांति प्राप्त करने का रास्ता मिला है वह हिंदु धर्म का ही रास्ता है। हमें अपने धर्म के रास्ते पर ही चलकर समाज और राष्ट्र और दुनिया का उत्थान करना पड़ेगा।
भागवत बोले कि सत्ताधारी समाज से ही आते हैं, समाज जितना बड़ा और अच्छा बनेगा, सत्ताधारी भी उतने वृहद दृष्टिकोण वाले और अच्छे निकलकर आऐंगे। उन्होंने कहा कि हिंदु धर्म किसी संप्रदाय या पंथ को छोड़कर कभी आगे नहीं बढ़ सकता। संपूर्ण भारत तक कम से कम अपनापन होना चाहिए। भागवत ने यहां बड़ी बात कहते हुए कहा कि देश में दरार डालने वाले कामों से परहेज करना है।
डॉ भागवत ने आगे कहा कि विविधताओं की स्वीकार्यता है, विविधताओं का स्वागत है, लेकिन विविधता को भेद का आधार नहीं बनाना है. सब अपने हैं. भेदभाव, ऊँच नीच अपने जीवन दर्शन के विपरीत है.हमारा व्यवहार, मन क्रम वचन से सद्भावना पूर्ण होना चाहिए. हमारे घर में काम करके अपना जीवन यापन करने वाले , श्रम करने वाले भी हमारे सद्भाव के अधिकारी हैं. उनके सुख दुःख की चिंता भी हमें करनी चाहिए. हम अपने लिए, परिवार के लिए खर्च करते हैं, पर यह सब अपने समाज के कारण है. उसके लिए भी समय और धन खर्च करना चाहिए. प्रकृति से इतना कुछ लेते हैं, तो वृक्षारोपण, जलसंरक्षण करना ही चाहिए. साथ ही नागरिक अनुशासन का पालन करना चाहिए. अपने कर्तव्य पालन को ही धर्म कहा गया है. धर्म याने रिलीजन या पूजा पद्धति नहीं है.