वो काली रात जब 45 टन मिथाइल आइसोसाइनेट सब निगल गई, मौत की नींद सो गए 16 हजार लोग, सरकारी आंकड़ों में सिर्फ 3 हजार बताया

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Atul Tiwari
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वो काली रात जब 45 टन मिथाइल आइसोसाइनेट सब निगल गई, मौत की नींद सो गए 16 हजार लोग, सरकारी आंकड़ों में सिर्फ 3 हजार बताया

BHOPAL. साल 1984 की 2-3 दिसंबर की दरम्यानी रात को आज भी भारत के इतिहास के सबसे काले दिनों में गिना जाता है। आज ही के दिन भोपाल गैस त्रासदी हुई थी। इस दिन को याद कर आज भी भोपाल के लोग सहम उठते हैं, आज भी लोगों के मन से दर्द निकला नहीं है। सबसे बड़ी बात ये कि इस घटना के मुख्य आरोपी को कभी सजा ही नहीं हुई, जिसके लिए लोग राज्य सरकार और केंद्र सरकार पर यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन और उसकी मूल कंपनी के साथ साठगांठ करने का आरोप लगाते रहे हैं।





गैस लीक हुई और नींद में ही सो गए थे हजारों लोग





2 और 3 दिसंबर की रात हुए इस हादसे में करीब 45 टन खतरनाक मिथाइल आइसोसाइनेट गैस एक कीटनाशक संयंत्र से लीक हो गई थी, जिससे हजारों लोग मौत की नींद सो गए थे। यह औद्योगिक संयंत्र अमेरिकी फर्म यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की भारतीय सहायक कंपनी का था। लीक होते ही गैस आसपास की घनी आबादी वाले इलाकों में फैल गई थी और इससे 16000 से अधिक लोग मारे जाने की बात सामने आई, हालांकि सरकारी आंकड़ों में केवल 3000 लोगों के मारे जाने की बात कही गई।





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कई साल तक रहा गैस का असर, नई पीढ़ियों ने भी झेला दर्द





गैस संयंत्र से लीक हुई गैस का असर इतना भयंकर था कि इसके संपर्क में आए करीब पांच लाख लोग जिंदा तो बच गए,  लेकिन सांस की समस्या, आंखों में जलन और यहां तक की अंधापन तक की समस्या हो गई। इस जहरीली गैस के संपर्क में आने के चलते गर्भवती महिलाओं पर भी इसका असर पड़ा और बच्चों में जन्मजात बीमारियां होने लगी।





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मुख्य आरोपी एंडरसन को नहीं हुई सजा





यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन के अध्‍यक्ष वारेन एंडरसन इस त्रासदी के मुख्‍य आरोपी थे, लेकिन उन्हें सजा तक नहीं हुई। 1 फरवरी 1992 को भोपाल की कोर्ट ने एंडरसन को फरार घोषित कर दिया था। एंडरसन के खिलाफ कोर्ट ने 1992 और 2009 में दो बार गैर-जमानती वारंट भी जारी किया था, पर उसको गिरफ्तारी नहीं किया जा सका। 2014 में एंडरसन की स्‍वाभाविक मौत हो गई और इसी के चलते उसे कभी सजा नहीं भुगतनी पड़ी।





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तत्कालीन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री पर लगे वारेन एंडरसन को भगाने के आरोप





इस पूरे मामले के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को भगाने में आरोप लगे और चर्चा रही कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इशारे पर मध्य प्रदेश के उस वक्त मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह ने एंडरसन को हिरासत से छोड़ने का आदेश दिया था। हालांकि, अदालत में आरोपी को भगाने के षड्यंत्र का कोई केस तो नहीं चला, लेकिन जिन धाराओं में चार्जशीट दायर की गई, वह यह बताने के लिए काफी है कि सरकार का नजरिया हजारों मौतों के बाद भी संवेदनशील नहीं था। ये भी रिपोर्ट्स आईं कि राजीव गांधी को अमेरिकी उच्चाधिकारियों से एंडरसन को छोड़ने के लिए दबाव आ रहा था।





वहीं, भोपाल गैस त्रासदी के समय कलेक्टर रहे मोती सिंह ने अपनी किताब भोपाल गैस त्रासदी का सच में उस सच को भी उजागर किया, जिसके चलते वारेन एंडरसन को भोपाल से जमानत देकर भगाया गया। मोती सिंह ने अपनी किताब में पूरे घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए लिखा है कि एंडरसन को अर्जुन सिंह के आदेश पर छोड़ा गया था। वारेन एंडरसन के खिलाफ पहली एफआईआर गैर जमानती धाराओं में दर्ज की गई थी। इसके बाद भी उसे जमानत देकर छोड़ा गया।





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2014 में गुमनामी में हुई एंडरसन की मौत





जानकारी के मुताबिक, 9 फरवरी 1989 को सीजेएम कोर्ट ने एंडरसन के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था। उसे 1 फरवरी 1992 को भगोड़ा घोषित किया गया। कई गैर सरकारी संगठनों ने मुआवजे और एंडरसन को वापस लाने के लिए अमेरिका तक लड़ाई लड़ी, लेकिन वो कभी वापस नहीं लौटा। 29 सितंबर 2014 को अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित एक नर्सिंग होम में एंडरसन की मौत हो गई, जिसका एक महीने बाद खुलासा हुआ।











जांच आयोग का हुआ गठन, फिर भी रहस्य बरकरार





एंडरसन की रिहाई और दिल्ली के लिए विशेष विमान उपलब्ध कराने की जांच के लिए 2010 में एक सदस्यीय जस्टिस एसएल कोचर आयोग का गठन किया गया। आयोग के सामने तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी ने कहा था कि एंडरसन की गिरफ्तारी के लिए लिखित आदेश था, लेकिन रिहाई का आदेश मौखिक था। यह आदेश वायरलेस सेट पर मिला था। एंडरसन क्यों और कैसे भागा, किसने भगाया, ये सिर्फ बयानों और किताबों में दर्ज होकर रह गया।





देखा जाए तो एंडरसन को गिरफ्तार करके वापस हिंदुस्तान लाने की कभी सही तरीके से कोशिश ही नहीं की गई। यहां तक कि गैस कांड के जो जिम्मेदार भारत में रह रहे थे, उन्हे भी बहुत सस्ते में छोड़ दिया गया। हजारों मौतों के बदले 2010 में अदालत ने फैक्ट्री के कर्मचारियों को सिर्फ दो साल की सजा दी। उस पर भी मुख्य आरोपी बिना सजा के चला गया। 





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470 मिल‍ियन डॉलर का मुआवजा





हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर का मुआवजा दिया। हालांकि, पीड़ितों ने ज्‍यादा मुआवजे की मांग के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 7 जून को भोपाल की एक अदालत ने कंपनी के 7 अधिकारियों को हादसे सिलसिले में 2 साल की सजा सुनाई। उस वक्‍त UCC के अध्‍यक्ष वॉरेन एंडरसन मामले के मुख्‍य आरोपी थे, लेकिन केस के लिए पेश नहीं हुए।



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