Narsinghpur. जिले में विकास के काम ठप पड़े हैं, जो स्वीकृत हैं, उनके काम शुरू कराने के बजाय भूमिपूजन-शिलान्यास के पत्थरों में नाम जुड़वाने की कवायद हो रही है। इसका उदाहरण करेली शहर में प्रस्तावित 10 करोड़ की लागत वाले 50 बिस्तरीय सिविल अस्पताल है। जिसका भूमिपूजन छह माह के भीतर दूसरी बार किया गया है। खास बात ये है कि पहली मर्तबा जब भूमिपूजन किया गया था, तब शिलान्यास के पत्थर में सिर्फ नरसिंहपुर विधायक जालम सिंह का नाम था। वहीं दो दिन पहले भूमिपूजन के बाद लगे नए पत्थर में अब सांसदों समेत अन्य जनप्रतिनिधियों का भी नाम जोड़ा गया है।
पहले शिलान्यास में सिर्फ इनके नाम
करेली के सिविल अस्पताल का पहला भूमिपूजन व शिलान्यास बीती 5 मई को किया गया था। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नरसिंहपुर विधायक जालम सिंह पटेल थे। भूमिपूजन के बाद शिलान्यास का जो पत्थर लगाया गया था उसमें सीएमएचओ डॉ. अजय कुमार जैन, पुलिस आवास एवं अधोसंरचना विकास विभाग जबलपुर के परियोजना यंत्री जबलपुर सुधीर श्रीवास्तव, ब्लाक मेडिकल अधिकारी डॉ. विनय ठाकुर के नाम थे। इस भूमिपूजन के कार्यक्रम में जिला भाजपा के पदाधिकारियों से लेकर राज्यसभा-लोकसभा सांसद व अन्य नगरीय-पंचायत निकाय के जनप्रतिनिधियों ने दूरी बनाए रखी थी। इस भूमिपूजन को तब विधायक का वन मैन शो कहा गया था।
10 नवंबर को बढ़ गए नाम
बीती 10 नवंबर को इसी सिविल अस्पताल का छह माह बाद दूसरी बार अचानक भूमिपूजन किया गया। हालांकि इस बार मंच पर जिला भाजपा के बड़े नेताओं से लेकर सांसदद्वय तक मौजूद थे। बताया जा रहा है कि पहले भूमिपूजन के पत्थर को गुपचुप हटाने के बाद यहां पर नए सिरे से शिलान्यास का पत्थर लगाया गया। इसमें अबकि मुख्य अतिथियों के रूप में राज्यसभा सदस्य कैलाश सोनी, नर्मदापुरम के सांसद राव उदय प्रताप सिंह समेत नरसिंहपुर विधायक जालम सिंह पटेल को उत्कीर्ण किया गया। इसी पत्थर नए शिलान्यास के पत्थर से सरकारी अधिकारियों के नाम गायब थे। इनके स्थान पर जिला पंचायत अध्यक्ष ज्योति नीलेश काकोड़िया, करेली जनपद अध्यक्ष प्रतिज्ञा परिहार, नगरपालिका अध्यक्ष सुशीला ममार, जिला भाजपा अध्यक्ष अभिलाष मिश्रा के नाम लिखे गए। पत्थर से अबकि निमरण एजेंसी का नाम हटाकर उसकी जगह सनातनी मंदिर समिति को स्थान दिया गया।
पानी में बहे हजारों रुपए
सिविल अस्पताल की सौगात करेलीवासियों को कब तक मिलेगी, ये भले ही तय न हो, लेकिन इसे उपलब्धि बताने की होड़ लेने में जनप्रतिनिधि कभी पीछे नहीं रहे हैं। कोविडकाल में चाहे रैमडेसिवर इंजेक्शन हो या फिर ऑक्सीजन सिलिंडर उपलब्ध कराने आदि को लेकर जनप्रतिनिधि विभिन्न मंचों से श्रेय लेने में कभी पीछे नहीं रहे हैं। चूंकि अब मामला 10 करोड़ की लागत वाले अस्पताल का है तो नागरिक सवाल उठा रहे हैं कि दो-दो बार भूमिपूजन कराने के नाम पर हजारों रुपए बहाने का क्या औचित्य।
विधायक-सांसद के बयान भी अलग-अलग
दो बार भूमिपूजन की बात पर सांसद-विधायक यूं तो एक-दूसरे का समर्थन करते नजर आए, लेकिन उनके बयान भी अलग-अलग रहे। सांसद राव उदय प्रताप सिंह का कहना था कि 5 मई को भूमिपूजन नहीं हुआ था, बल्कि उस समय भूमि का चयन भर हुआ था। वास्तविक भूमिपूजन-शिलान्यास 10 नवंबर को किया गया है। वहीं नरसिंहपुर विधायक जालम सिंह का कहना था कि दूसरी बार भूमिपूजन तकनीकी त्रुटिवश किया गया। उनके अनुसार राम मंदिर की जमीन का कुछ मसला था, इसलिए नए सिरे से भूमिपूजन किया गया।